दौलतमंदों के हर ऐश-ओ-आराम पर गरीब बच्चों के बचपन क़ुर्बान

रोज़नामा मिलाप के बानी आँजहानी युद्ध वीर जी की याद में क़ायम युद्ध वीर फाऊंडेशन की जानिब से आज 21 वां युद्ध वीर मेमोरियल एवार्ड सरज़मीन हैदराबाद की माया नाज़ दुख़तर पद्मश्री प्रोफेसर शांता सिन्हा चीयर परसन क़ौमी कमीशन बराए तहफ़्फ़ुज़ हुक़ूक़-ए- अतफ़ाल नई दिल्ली को अता किया गया।

ये एवार्ड 50,000 रुपये और तौसीफ नामा पर मुश्तमिल है। के एल एन प्रसाद ऑडीटोरियम फ़यापसी हाउज़ में मुनाक़िदा एक पुर असर तक़रीब में एवार्ड हासिल करने के बाद प्रोफेसर शांता सिन्हा ने ख़सारा तिफ़ल-ओ-हिंदुस्तानी जम्हूरियत पर लेक्चर देते हुए कहा कि हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में जो रमक़ है वो बच्चों की क़ुर्बानीयों की दैन है।

हमारे सुकून, आराम-ओ-ऐश-ओ-इशरत के लिए रोज़ाना लाखों बच्चे अपना बचपन क़ुर्बान करते हैं। उन्हों ने कहा कि आज उन्हें ये एवार्ड एक एसे दिन अता किया जा रहा है जो यौम मुख़ालिफ़ बच्चा मज़दूरी से मानून है और कल यानी यक्म मई को आलमी यौम –ए-मज़दूर है और उन की सरगर्मियों का महवर भी इंसिदाद बच्चा मज़दूरी है और इत्तिफ़ाक़ से ये दिन जनाब युद्ध वीर का यौम-ए-पैदाइश भी है।

उन्हों ने कहा कि मुल्क में गोरबा-के बच्चों की हालत-ए-ज़ार देखने के बाद एसा महसूस होता है कि वो किसी और स्यारा से ताल्लुक़ रखते हैं जबकि हमारी ज़िंदगी के ऐश-ओ-आराम का इन्हिसार उन्ही बच्चों की मेहन्तों पर है। आज हम जो चावल खाते हैं इस के हर दाना और जो तरकारी इस्तिमाल करते हैं इस के पीछे बच्चा मज़दूरों की महरूमीयाँ और बेबसी छिपी हुई है।

उन्हों ने कहा कि कपास के तख़ुम(बीज) की कंपनियों में सैंकड़ों बच्चे मोहलिक किमयाई मादों से अपने ज़िंदगी को ख़तरा में डालते हुए काम करते हैं। आज हम देखते हैं कि सड़क बिछाने के कामों में मज़दूरी पर काम करने वाली ख़वातीन के छोटे छोटे बच्चे बगैर साइबान के मंडलाते हैं इन का बचपन हमें आरामदेह सफ़र की सहूलत फ़राहम करने की नज़र हो रहा है।

बुलंद-ओ-बाला-ओ-ख़ूबसूरत मकानात-ओ-इमारात में इस्तिमाल होने वाली हर एण्ट भी बच्चों के इस्तेहसाल की दास्तान छुपाए हुए है। इन बच्चों की ज़िंदगी आप की और हमारी ज़िंदगी से बहुत करीबी तौर पर मरबूत है मगर हमें कभी उन के बचपन खो देने और महरूमियों के शिकार होजाने का ख़्याल नहीं आता।

प्रोफेसर शांता सिन्हा ने बताया कि ये नज़ारे हमें बचपन की कामिल महरूमि दास्तान सुनाते हैं। आंगन वाड़ी स्कूलस में माह जनवरी की गज़ा-माह अप्रैल में पहुंचती है। मुल्क के 46 फीसद बच्चे नाक़िस तग़ज़िया का शिकार हैं। उन्हों ने बताया कि हमारे दस्तूर साज़ों ने बच्चों के हुक़ूक़ का तहफ़्फ़ुज़ करने के हर जतन किए मगर मुल्क आज़ाद हुए 60 बरस से ज़ाइद का अर्सा गुज़र चुका है मगर आज भी हमारे मुल्क के बच्चे अपने हुक़ूक़ से महरूम हैं।

उन्हों ने कहा कि दस्तूर के आर्टीकल 25 में ये कहा गया था कि दस्तूर के नेफ़ाज़ के अंदरून 10 बरस मुल्क के तमाम बच्चों को लाज़िमी और मुफ़्त तालीम फ़राहम की जाय मगर इस के लिए क़ानूनसाज़ी करने 60 बरस दरकार हुए हैं। इसी तरह आर्टीकल 39 के तहत बच्चों के बचपन उन की सेहत और वेक़ार की ज़मानत दी गई मगर आज भी वो उन से महरूम हैं और इस्तिहसाल का शिकार हैं।

प्रोफेसर शांता सिन्हा ने कहा कि अगरचे दुनिया में सब से ज़्यादा 13 लाख सरकारी स्कूलस हिंदुस्तान में हैं, 13 करोड़ बच्चों को दोपहर का खाना फ़राहम किया जाता है, बच्चों की टीका अंदाज़ी सब से बड़े पैमाना पर की जाती है, 14 लाख आंगन वाड़ी सैंटरस हैं और हमें स्कालरशिपस, इक़ामती स्कूलस और हॉस्टलस की भी सहूलत फ़राहम हैं इस के बावजूद हमारे मुल्क के बच्चों का एक बड़ा तबक़ा उन से इस्तिफ़ादा करने से महरूम है।

इसी तरह हमारे मुल्क में बहुत सी अशिया जैसे पकवान गैस, पैट्रोल, बिजली वगैरह पर सब्सीडी दी जाती है जिस से मुतवस्सित तबक़ा फाइदा उठाता है मगर गरीब तबक़ा की इन मराआत तक रसाई नहीं है।

प्रोफेसर शांता सिन्हा ने उन की शख्सियत और सरगर्मियों-ओ-ख़िदमात का तज़किरा करते हुए दक्कनी ज़बान में पेश करदा नरेंद्र राय की ख़ूबसूरत तरीन नज़म का हवाला देते हुए कहा कि ये एक निहायत ही शीरीं ज़बान है और आम आदमी की ज़बान है जिस में अपनाईयत है।

सदर नशीन फाऊंडेशन-ओ-साबिक़ चीफ सेक्रेटरी मिस्टर नरेंद्र लूथर ने जनाब युध वीर की शख्सियत के मुख़्तलिफ़ गोशों पर रोशनी डाली जबकि वी नुमा वीर ने प्रोफेसर शांता सिन्हा का तआरुफ़ पेश किया। इस मौक़ा पर ट्रस्टी जनाब ज़ाहिद अली ख़ान, डाक्टर बजरंग लाल गुप्ता और मिस्टर युद्ध वीर के फ़र्ज़ंद-ओ-एडीटर हिन्दी मिलाप जनाब विनए वीर और दूसरे मौजूद थे।

इस मौक़ा पर हिन्दी मिलाप की जानिब से दीपावली की मुनासबत से अदब के मुख़्तलिफ़ अस्नाफ़ में मुनाक़िद किए जाने वाले मुक़ाबलों के इनाम याफ़तगान को भी इनामात से सरफ़राज़ किया गया।