हैदराबाद 15 नवंबर: ऋण के भुगतान के सिवाए गैर मह्सूब रक़ूमात का गणना बताना मुश्किल होगा। भारत सरकार की ओर से 1000 और 500 के नोटों को रद्द किए जाने के तुरंत बाद गैर मह्सूब रक़ूमात रखने वाली संस्था और व्यक्तियों की ओर से रक़ूमात खर्च कर ने के कदम उठाए जाने लगे हैं और इसके लिए ऐसी धन जिसका हिसाब नहीं है वे रखने वालों ने विभिन्न क्लबस सदस्यता हासिल करनी शुरू कर दी है ताकि उनकी लागत को दिखाया जा सके लेकिन 9 नवंबर प्राप्त किए गए क्लबस सदस्यता वाहनों के पंजीकरण ‘बीमा नीतियां’ मेडि कलीम पालिसीयां वग़ैरा शुमार किया जाना मुम्किन नज़र नहीं अता क्युंकि एसा करने के मामले में भी 8 नवंबर की रात तक इस धन को उपयोगकर्ता के हाथ में मौजूद ‘कैश इन हैंड’ में ही गिना जाएगा।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि जिन लोगों ने ऋण ले रखा है उनकी ओर से रद्द नोटों के जरिए ऋण भुगतान संभव बनाए जाने पर ही उन्हें राहत मिलती और कोई ऐसी आकृति नहीं है जिससे इन गैर मह्सूब रक़ूमात की तरफ से किए गए भुगतान का लाभ उठाया जा सके।
हुकूमत के इस फ़ैसले ने मक़रूज़ अफ़राद-ओ-इदारों को अपने पास मौजूद ग़ैर मह्सूब रक़ूमात के ज़रीये कर्ज़ों की अदायगी का मौक़ा फ़राहम करते हुए उन्हें काफ़ी राहत पहुंचाई है। क़र्ज़ की अदायगी के लिए बैंकों तक पहुंचने वाली दौलत अगर काला धन भी है तो इस की तहक़ीक़ की गुंजाइश नहीं रहेगी क्युंकि जो शख़्स या इदारा ये रक़म जमा करवा रहा है वो बैंक का मक़रूज़ है।