नंदी और हासन तनाज़आत से समाज के मुतअस्सिब होजाने की निशानदेही: थरूर

नई दिल्ली। 3फरवरी (पी टी आई)। कमल हासन की फ़िल्म विश्वा रूपम और आशिष नंदी के मुबय्यना दलित मुख़ालिफ़ तबसेरा पर हालिया तनाज़आत से समाज के दिन बा दिन मुतअस्सिब होने की अक्कासी होती है। मर्कज़ी वज़ीर शशी थरूर ने कहा कि पिछ्ले हफ़्ते के इन तनाज़आत के दौरान सलमान रुशदी को कोलकता में दाख़िल होने की इजाज़त ना देने का भी वाक़िया पेश आया।

इस से हमारे बारे में कोई अच्छी शबेहा पैदा नहीं होती। उन्होंने पुरज़ोर अंदाज़ में कहा कि इज़हार-ए-ख़्याल पर ज़ोर देने के लिए मुहतात और मुतवाज़िन रवैय्या इख़तियार किया जाना चाहीए ताकि इस से किसी के जज़बात मजरूह ना होने पाएं और तशद्दुद पर उकसाया ना जाये।

शशी थरूर ने कहा कि मुल्क एक एसे मुक़ाम पर पहुंच गया है जहां आज़ादी तक़रीर को एक हक़ समझा जाना चाहीए, लेकिन इस हक़ से किसी के जज़बात मजरूह नहीं होने चाहिऐं। वो सी एन एन। आई बी एन पर करण थापर के प्रोग्राम डेविल्स ऐडवोकेट के तहत मुबाहिसा में शिरकत कररहे थे।

उन्होंने कहा कि मौजूदा मरहले पर हुकूमत यह कोई जज इस बात का तीन नहीं करसकता कि अमन आम्मा के लिए कौनसी बात ख़तरनाक साबित होसकती है। उन्होंने कहा कि हमारे लिए समाज को एक चैलेंज दरपेश है कि हमारे आज़ादी इज़हार के सिलसिले में रुजहानात दुरुस्त और मुतवाज़िन हो। उन पर कोई रद्द-ए-अमल पैदा ना होने पाए।

आशिष नंदी के मुबय्यना दलित दुश्मन तबसरों के बारे में सवाल का जवाब देते हुए वज़ीर ममलकत बराए फ़रोग़ इंसानी वसाइल शशी थरूर ने कहा कि अदम इत्तिफ़ाक़ की जायज़ वजूहात मौजूद हैं, लेकिन बाअज़ सियासी तबके की जानिब से उन की गिरफ़्तारी के मुतालिबा मुकम्मल तौर पर गैर ज़रूरी हैं।

ताहम उन्होंने एहसास ज़ाहिर किया कि नंदी को अपना तबसरा बेहतर अलफ़ाज़ में और बेहतर अंदाज़ में करना चाहीए था ताकि किसी के जज़बात मजरूह ना होने पाएं। कमल हासन की फ़िल्म विश्वा रूपम पर इमतिना की मुख़ालिफ़त करते हुए उन्होंने कहा कि सेंसर बोर्ड की तरफ‌ से इसे मंज़ूरी दी जा चुकी है।