नए साल का आग़ाज़ बेहयाई के साथ ना करें

मौलाना मुहम्मद ताहिर अली शाह नूरी आरफ़ी सदर मुत्तहदा एहले सुन्नत उलजमाअत सांगरेड्डी ने कहा कि इस्लाम एक पाकीज़ा मज़हब है, मुसलमानों को अच्छे काम करने का पाबंद करता है, उसकी अपनी पहचान है।

मुसलमान इस का तर्जुमान है। इस्लाम इतना ग़ैरत मंद है कि दूसरों के तरीक़ों और आदतों से अपने मानने वालों को बचने का हुक्म देता है।

साल नौ मनाना यहूदी और ईसाई कल्चर है, इस्लामी तहज़ीब नहीं है, न्यू इय‌र नाईट (शब साल नौ) में जो कुछ दूसरी कौमें करती हैं, वो हया की हदों को पार करदेती हैं, इस्लाम इस का मुख़ालिफ़ है, इस से सख़्त नफ़रत करता है।

क़ुरआने करीम का वाज़िह बयान हैके जो लोग मोमिनों में बेहयाई फैलाना चाहते हैं, उनके लिए दुनिया-ओ-आख़िरत में दर्दनाक अज़ाब है और अल्लाह ताआला जानते हैं तुम नहीं जानते। (सूरा-ए-नूर : 19)एक मौके पर फ़रमाया गया आप स०अ०व०फ़र्मा दीजिए कि अल्लाह ताआला बेहयाई का हुक्म नहीं देता। (सूरा-ए-आराफ़ : 28) नबी करीम स०अ०व० ने फ़रमाया हया ईमान का हिस्सा है। (बुख़ारी-ओ-मुस्लिम ) और एक जगह फ़रमाया कि जो आदमी जिस क़ौम की नक़ल करेगा, इस का हश्र इसी क़ौम के साथ होगा। (अब्बू दाव‌द, मस्नद अहमद)। माह जनवरी इस्लामी महीना नहीं है, लेकिन मुसलमानों का ग़ैर क़ौमों की तरह उसकी आमद पर ख़ुशी मनाना, साल नौ का आग़ाज़ होते ही बेहयाई-ओ-फ़ह्हाशी, रक़्स-ओ-सुरूर, आतशबाज़ी, नौजवानों लड़कों और लड़कीयों के नाजायज़ ताल्लुक़ात, शराबनोशी, नशा आवर ड्रिंक्स के इस्तेमाल, फ़हश एस एम एस वग़ैरा में मुबतला हैं जो ख़ालिस ग़ैरों की नक़्क़ाली है।

इस्लाम इन सब से बचने का सख़्ती से हुक्म देता है। अब मुसलमान ये तए करें कि क्या वो हेप्पी न्यू इय‌र मनाते हुए बेहयाई फैलाकर अज़ाब इलाही के मुस्तहिक़ होना चाहते है ओर यहूदो नसारा के साथ अपना हश्र कराना चाहते हैं! सब मोमिन भाई बहनों से गुज़ारिश हैके वो नए साल का आग़ाज़ बेहयाई (अल्लाह की नाफ़रमानी) के साथ ना करें और अज़ाब ख़ुदावंदी का शिकार ना बनें।