(मौलाना पीर जुल्फिकार अहमद, नक्शबंदी) इंसान इस दुनिया में कई तरह की आजमाइशों में मुब्तला है। एक तरफ शैतान नेकी के रास्ते में बैठ कर उसे रोकता है और दूसरी तरफ नफ्स उसे फंदा डाला होता है कभी नफ्स की ख्वाहिशात और चाहते ऐसी होती हैं जो इंसान को अल्लाह तआला से दूर ले जाती है और कभी शैतान का बहकावा और मक्र ऐसा होता है जो इंसान को वरगलाता रहता है।
इस दुनिया में इंसान इम्तेहान की हालत में है। हर वक्त उसे खैर और शर की कुवतें बुलाती रहती हैं। क्योंकि शैतान और नफ्स के शर के साथ-साथ नेक लोग भी इंसान को नेकी की तरफ बुलाते हैं और शैतान और उसके नुमाइंदे लज्जते दुनिया की तरफ बहकाते है।
यही वजह है कि इंसान के इस भूल जाने की वजह से ही तो अल्लाह तआला फरमाते हैं कि ऐ मेरे बंदो! तुम किद्दर जा रहे हो? तुम्हारी मंजिल तो कहीं और थी और तुमने अपनी उम्मीदों का मुंतहा किसी और को बना लिया है। तुम ने अपना मकसूद और अपना माबूद किसी और को समझ लिया है।
तुम्हें तो अपने परवरदिगार की पूजा करनी चाहिए थी लेकिन तुम नफ्स की पूजा करने में लग गए। ‘ऐ बनी आदम! क्या हमने तुमसे अहद नहीं लिया था?’ कि ‘तुम शैतान की इबादत न करना।’ ‘वह तुम्हारा जाहिर बाहर दुश्मन है।’ ‘और तुम फकत मेरी इबादत करना’ यह बिल्कुल सीधा रास्ता है।
किस अंदाज से इंसान को मुतवज्जे किया गया कि तुम क्या कर रहे हो।
अल्लाह तआला की नेमतें:- अल्लाह तआला अपनी नेमतें याद करवा कर इंसान को झिंझोरते हैं ताकि यह सीधी राह पर आ जाए। इसलिए फरमाया कि ऐ इसांन! जब तू दुनिया में आया तो क्या हमने तुम्हारे लिए दो आंखे नहीं बनाईं? क्या हमने बोलने के लिए ज़ुबान नहीं दी होंट नहीं दिए? क्या हमने दो रास्तों की रहनुमाई नहीं कर दी। हक और बातिल को वाजेह नहीं कर दिया? ऐ बंदे! हमने तुम्हारे लिए आसमान नहीं बनाया, जमीन को फर्श नहीं बनाया और पहाड़ों को मीखो की तरह नहीं गाड़ा? क्या हमने तुम्हे एक गंदे कतरे से पैदा नहीं किया? तो अलम के साथ अल्लाह तआला ने अपनी तरफ मुतवज्जे करने के लिए अपनी नेमतों के तजकिरे किए।
नमाज के मामले में झूट:- इन नेमतों के अलावा आमाल में से सिर्फ नमाज ही को लीजिए। परवरदिगार ने अपने कलामे मजीद में एक दो बार या चार बार नहीं बल्कि सात सौ बार से ज्यादा फरमाया नमाज पढ़ो, नमाज कायम करो। इसके बावजूद भी अगर नमाज न पढ़ें तो सोचिए कि अल्लाह तआला को कितना गुस्सा आना चाहिए था मगर अल्लाह तआला की मेहरबानी है कि उसने फिर भी तौबा का दरवाजा खुला रखा कि ऐ मेरे बंदे! मौत से पहले तू अगर तौबा कर लेगा और कजा नमाजें पढ़ लेगा तो मैं तेरी कजा नमाजों को भी कबूल कर लूंगा।
हालांकि आदाबे शाही का तकाजा यह था कि एक बार फरमान जारी हो जाताऔर उसके बाद मखलूक पर हक होता कि वह शाही फरमान की पाबंदी करे। उस परवरदिगारे हकीकी की अजमत का तकाजा यह था मगर कुर्बान जाइए उनकी मेहरबानी पर, उनकी शफकतों पर और उनकी अताओं पर वह जानते थे कि यह भूलने वाला है, यह बहकने वाला है यह डोल जाने वाला है।
एक बार कहने से हो सकता है कि उसके दिल में अहमियत न बैठे। उस जात की अपने बंदो पर जो कमाले शफकत थी, जो कमाले मोहब्बत थी, जो कमाले रहमत थी उसका तकाजा यही था कि बार-बार याद दिलाया जाए। सात सौ से ज्यादा बार याद कराने के बाद हक यह था कि मुअय्यना वक्त पर हर बंदा नमाज के लिए आ जाता। लेकिन नहीं बल्कि हुक्म दे दिया कि बंदो में से कोई खड़ा हो और रोजाना पांच बार याद दहानी करवादे कि आओ नमाज की तरफ, आओ फलाह की तरफ।
अब बताइए तमाम हुज्जत हो गया कि नहीं। इस कदर छूट और मेहरबानी के बावजूद नमाज के लिए नहीं आते। अब तो दरवाजा बंद हो जाना चाहिए था। हक तो यह था कि इतना कुछ कहने के बावजूद नमाज छोड़ बैठता उसके लिए हुक्म होता कि जो छोड़ बैठा वह छोड़बैठा, अब उसके लिए कोई रास्ता ही नहीं मगर मोहब्बत ने रास्ता फिर भी बंद न फरमाया बल्कि फरमाया कि बेनमाजी ही सही लेकिन किसी वक्त भी तौबा कर ले और कजा नमाजें लौटा ले तो हम तौबा को भी कुबूल कर लेंगे और कजा नमाजों के मसले बता दिए वरना तो कजा नमाज का तसव्वुर भी न होता।
इंसान की बेरूखी:- जब इतना मुतवज्जे करने के बाद और इतनी बड़ी छूट देने के बाद फिर भी इंसान ने रूख न बदला और उसने मौत से पहले पहले तौबा करके सीधे रास्ते को न अपनाया तो परवरदिगारे आलम को कहना पड़ा मारा जाए तो इंसान तूने कुफ्र किया। तुझे किस चीज से पैदा किया? गंदे कतरे से। फिर कदम बकदम अपनी नेमतें गिनवाई कि हमने यह भी दिया, यह भी यहां तक कि यहां तक फरमा दिया कि अगर तुम अल्लाह की नेमतों को गिनना चाहो तो तुम शुमार नहीं कर सकते।
इस सबके बावजूद तुम मेरे रास्ते को छोड़ जाते हो। मेरी तरफ आने के बजाए शैतान की तरफ भागते हो, मुझे अपना मकसूदे हकीकी बनाने के बजाए दुनिया की ख्वाहिशात में फंस जाते हो। और वाकई इंसान का हाल यह है कि अल्लाह तअला ने उसे माल दिया मगर माल से मुहब्बात करता है अल्लाह से मोहब्बत नहीं करता। अल्लाह तआला ने उसे जवानी दी मगर वह जवानी से मोहब्बत करता है, अल्लाह से मुहब्बत नहीं करता।
अल्लाह तआला ने उसे इज्जत दी अपनी इज्जत से मोहब्बत करता है, अल्लाह से मोहब्बत नहीं करता। परवरदिगारे आलम भी क्या सोचते होंगे कि यह मेरे कैसे बंदे है कि दी हुई भी मेरी नेमतें है यह उन नेमतों को पसंद करते हैं और देने वाले की तरफ मुतवज्जे ही नहीं होते।
कुत्ते की दस सिफात:- हैवान अपने मालिक का ज्यादा वफादार होता है जबकि इंसान अपने परवरदिगार का इतना वफादार नहीं होता। हजरत हसन बसरी (रह0) फरमाते थे कि कुत्ते के अंदर दस सिफात ऐसी है कि अगर उनमें से एक सिफत भी इंसान के अंदर पैदा हो जाए तो वह वली उल्लाह बन सकता है।
फरमाते हैं 1. कुत्ते के अन्दर कनाअत होती है, जो मिल जाए यह उसी पर कनाअत कर लेता है, राजी हो जाता है, यह कानईन या साबिरीन की अलामत है।
2. कुत्ता अक्सर भूका रहता है, यह सालेहीन की निशानी है।
3. कोई कुत्ता उस पर जोर की वजह से गालिब आ जाए तो यह अपनी जगह छोड़ कर दूसरी जगह चला जाता है, यह राजईन की अलामत है।
4. उसका मालिक उसे मारे भी सही तो यह अपने मालिक को छोड़ कर नहीं जाता, यह मुरीदाने सादिकीन की निशानी है।
5. अगर उसका मालिक बैठा खाना खा रहा हो तो यह बावजूद ताकत और कुवत के उससे खाना नहीं छीनता, दूर ही बैठ कर देखता रहता है, यह मसाकीन की अलामत है।
6. जब मालिक अपने घर में हो तो यह दूर जूतों के पास बैठ जाता है अदना जगह पर राजी हो जाता है, यह मुतवाजईन की अलामत है।
7. अगर उसका मालिक उसे मारे और यह थोड़ी देर के लिए चला जाए और फिर मालिक दोबारा उसे टुकड़ा डाल दे तो दोबारा आकर खा लेता है उससे नाराज नहीं होता, यह खाशईन की अलामत है।
8. दुनिया में रहने के लिए उसका अपना कोई घर नहीं होता, यह मुतवक्किलीन की अलामत है।
9. रात को यह बहुत कम सोता है, यह मुहिब्बीन की अलामत है।
10. जब मरता है तो उसकी कोई मीरास नहीं होती, यह जाहिदीन की अलामत है। गौर करें कि क्या इन सिफात में से कोई हममें भी मौजूद है?
उसी का खाकर उसी के शिकवे:- हमारा यह हाल है कि उसी का दिया खाकर उसी का शिकवा करने बैठ जाते है कि जी बड़ी दुआएं मांगी है वह तो हमारी सुनता ही नहीं। ऐसे शिकवे भरे अल्फाज जबान से निकालते हैं।
इसीलिए फरमाया गया – बेशक इंसान अपने रब का नाशुक्रा है और वह उसके ऊपर खुद गवाह है। और उसके दिल में माल की बड़ी मुहब्बत है और वाकई हालत यह है कि इंसान के खा खाकर दांत टूट जाते है और जबान से शिकवे नहीं जाते।
बड़ा अच्छा कारेाबार हो तो पूछे कि सुनाएं कारोबार कैसा है? तो कहता है जी बस गुजारा है। अल्लाह तआला को कितना गुस्सा आता होगा कि मेरा तो इतना फजल व करम है उस पर, और इतना अता किया गया मगर उसकी ज़ुबान इतनी छोटी हो गई कि मेरी तारीफ में शुक्रिये का एक जुमला भी उसकी जबान से नहीं निकलता।
क्या यह नहीं कह सकता था कि मेरे रब का बड़ा फजल व करम है। मेरे अल्लाह का मेरे ऊपर बड़ा इनाम है। बहुत होता अगर यही अल्फाज कह देता। यकीन जानिए कि हम बाज अवकात अपनी जबान से ऐसे अल्फाज कह देते है जो उसके अजाब को दावत देने वाले होते है।
चार दिन की जो जिन्दगी है उसको वह फुर्सते गुनाह समझ रहा है। अंदाजा कीजिए बंदे का कि परवरदिगार के एहसानात कितने और बंदे की सोच कैसी। कहता है अल्लाह तआला ने अगर गुनाह का मौका भी दिया है तो वह भी सिर्फ चार दिन है।
परवरदिगार का बस यही हौसला है अब बताइए कि हो भी बंदा और जबान से परवरदिगार की शान में यह कहे, यह कितनी बड़ी जुर्रत है।
वाकई अगर हम इस बात पर गौर करें कि हमारी जिन्दगी कैसी गुजर रही है और इस जिन्दगी पर परवरदिगार ने फिर भी कितनी नेमतों से हमें नवाजा है तो अजीब हैरानी होती है कि हमारी नाफरमानियों का यह हाल और उस परवरदिगार की नवाजिशों का यह मामला।
कितनी अजीब बात है कि परवरदिगार फिर भी इतनी मेहरबानियां फरमाते है। हम अपनी हालत देखे और अपने गुनाहों का जायजा लें तो नदामत से सर झुक जाएगा कि हमने तो अपने परवरदिगार के एहकाम को बिल्कुल बेवकअत बना दिया और जिन्दगी के दिन नहीं, हफ्ते नहीं बल्कि बरसो गुजर जाते है और परवरदिगार फिर भी हमारे ऐबों पर पर्दा डाले रखते हैं।
इसीलिए एक आरिफ फरमाते है ऐ दोस्त! जिसने तेरी तारीफ की उसने दरहकीकत तेरे परवरदिगार की सत्तारी की तारीफ की।
इसके बरअक्स हम अपनी हालत पर गौर करें। हम अगर किसी आदमी को कोई काम कहें, एक बार कहें दो बार कहें, तीन बार कहें और इसके बावजूद वह कान न द्दरे और काम न करें तो हमें कितना गुस्सा आता है। बच्चा बात न माने तो उसकी पिटाई कर देते हैं कि मैंने तुझे दो चार बार कहा, तू सुनता ही नहीं। बीवी को कोई काम दो चार बार कह दिया जाए और वह भूल जाए तो कहते है कि तुझे कितनी बार कहा।
कोई मातहत काम न करे तो उसे नौकरी से निकाल देते हैं। गोया हमारा यही हौसला है कि दो चार बार कहने के बावजूद अगर कोई हमारी बात न माने और नजरअंदाज कर जाए तो हमारे गुस्से की इंतिहा हो जाती है।
एक शराबी पर अल्लाह तआला का लुत्फ व करम:- एक बुजुर्ग दरिया के किनारे पर जा रहे थे। एक जगह देखा कि दरिया से एक कछुआ निकला और किनारे के करीब पानी की सतह पर आ गया। किनारे से एक बिच्छु ने दरिया के अन्दर छलांग लगाई और कछुए के पीठ पर सवार हो गया। कछुए ने तैरना शुरू कर दिया। वह बुजुर्ग बड़े हैरान हुए।
उन्होंने उस कछुए का पीछा करने की ठान ली। इसलिए दरिया में तैर कर उस कछुए का पीछा किया। वह कछुए दूसरे किनारे पर जाकर रूक गया। और बिच्छू उसकी पीठ से छलांग लगाकर दूसरे किनारे पर चढ़ गया और आगे चलना शरू कर दिया। वह बुजुर्ग भी उसके पीछे चलते रहे। आगे जाकर देखा कि जिस तरफ बिच्छू जा रहा था उसके रास्ते में एक आदमी सोया हुआ था।
उस बुजुर्ग ने सोचा कि अगर यह बिच्छू उस नौजवान को काटना चाहेगा तो मैं करीब पहुंचने से पहले ही उसे अपनी लाठी से मार डालूंगा। लेकिन वह चंद कदम आगे बढे ही थे कि उन्होंने देखा दूसरी तरफ से एक अजदहा तेजी से उस नौजवान को डसने के लिए आगे बढ़ रहा था। इतने में बिच्छू भी वहां पहुंच गया।
उस बिच्छू ने ऐन उसी हालत में सांप को डस दिया जिसकी वजह से बिच्छू का जहर सांप के जिस्म में दाखिल हो गया और वह अजदहा वहीं ढेर हो गया। इसके बाद वह बिच्छू अपने रास्ते पर वापस चला गया।
थोड़ी देर बाद वह आदमी बेदार हुआ तेा उस बुजुर्ग ने उसे बताया कि अल्लाह तआला ने तेरी हिफाजत के लिए उस बिच्छू को कहां से भेजा। वह नौजवान अजदहे को देखकर हैरान रह गया। उसकी आंखों से आंसू निकल आए। वह अल्लाह तआला के हुजूर फरियाद करने लग गया ऐ अल्लाह! मैं शराबी कबाबी मगर तेरा इतना लुत्फ व करम, तेरी इतनी मेहरबानी, ऐ बेकसों के दस्तगीर, ऐ टूटे दिलों को तसल्ली देने वाले परवरदिगार ऐ जख्मी दिलों को मरहम अता करने वाले आका, गुनहों के बावजूद अपने बंदो पर एहसानात करने वाले ऐ अल्लाह, मैं आज से सच्ची तौबा करता हूं तू मुझे माफ फरमा दे।
जानवरों से भी बदतर लोग:- अल्लाह तआला की तरफ से गुनाहगारों पर इस कदर नवाजिशात के बावजूद आप के सामने एक हकीकत वाजेह कर दी जाए कि जो इंसान तौबा न करे और गफलत में पड़ा रहे तो जानवरों से भी बदतर हो जाता है।
इसलिए कुरआने मजीद में आता है – ‘इंसानों और जिन्नो में से अक्सर लोग ऐसे होंगे जो जहन्नुम में डाल दिए जाएंगे। इसलिए उनके पास दिल तो थे मगर वह उन्हें अक्ल नहीं सिखाते थे, उनके पास आंखे तो थी मगर इबरत की निगाह से देखने से कासिर थी। उनके पास कान तो थे लेकिन वह उनसे सुनी अनसुनी कर देते थे।
वह तो जानवरों से भी बदतर थे क्योंकि वह गफलत में पडे रहते थे। बल्कि हकीकत तो यह है कि अहले कशफ लोगों को नजर आ रहा होता है कि कौन किस शक्ल में है। कोई किस्मत वाला ही उनको इंसानियत के रूप में नजर आता है।
हजरत मौलाना अहमद अली लाहौरी अपने बयानात में एक अजीब बात इरशाद फरमाया करते थे। फरमाते कि मैं एक बार बाजार जा रहा था वहां मुझे एक मजजूब नजर आए। मैंने उनके करीब होकर सलाम किया। उन्होंने सलाम का जवाब दिया और पहचान कर पूछा-अहमद अली! इंसान कहां बसते हैं? मैंने हैरान होकर भरे बाजार की तरफ इशारा करके कहा हजरत! यह सब इंसान ही तो हैं।
जब यह कहा तो उन्होंने हैरान होकर इद्दर उद्दर देखा और हसरत भरे लहजे में कहा- यह सब इंसान है। उनकी तवज्जे की तासीर ऐसी थी कि जब मेरी निगाह मजमे पर दोबारा पड़ी तो मुझे बाजार में कुत्ते, बिल्ले और सुअर चलते हुए नजर आए।
जब वह कैफियत खत्म हुई तो मैंने देखा कि वह मजजूब जा चुके थे। यह वाक्या अपने बयानात में सुनाकर हजरत फरमाते थे – मालिक तो सबका एक मालिक का कोई एक, लाखों में न मिलेगा करोड़ों में तो देख। जी हां, करोड़ों में से कोई एक ही होगा जो सर के बालों से लेकर पांव के नाखूनों तक अपने आप को परवादिगार के हवाले कर दे और कह दे कि ऐ अल्लाह! मैं तेरा बंदा हूं मेरी आइंदा जिंदगी तेरे हुक्मों के मुताबिक गुजरेगी।
हम तो अपनी मर्जी के मालिक बने फिरते हैं। हम दोस्तों में बैठकर कहते हैं हम काम तो वह करेंगे जिसके लिए हमारा दिल कहेगा और फिर अल्लाह तआला की तरफ से खास रहमतें भी तलब करते हैं। याद रखिए कि जब तक हम अपने आप को अल्लाह तआला के सुपुर्द नहीं करेंगे तब तक अल्लाह तआला की तरफ से खास रहमते नाजिल नहीं होंगी।
ब्शुक्रिया: जदीद मरकज़