नबी करीम (स०अ०व०) की नाफ़रमानी करने का अंजाम ज़िल्लत-ओ-रुसवाई

नबी करीम (स०अ०व०) की नाफ़रमानी करने का अंजाम ज़िल्लत-ओ-रुसवाई
बनी इसराईल की सब से बड़ी ख़ामी ये थी कि वो अपने वक़्त के नबी करीम (स०अ०व०) को नबी मान कर भी नाफ़रमानी करते थे और अपनी ख़ाहिशात की पैरवी करते थे जिसका अंजाम क़ुरआन ए मजीद की मुख़्तलिफ़ आयात में अल्लाह पाक ने वाज़िह (साफ) तौर पर बता दिया कि हर मोड़ पर इनका अंजाम बुरा हुआ , ज़िल्लत-ओ-शर्मिंदगी और रुसवाई उन पर मुसल्लत कर दी गई और उन के दुश्मनों को खुली छूट दे दी गई थी ।

इन ख़्यालात का इज़हार मौलाना सैयद मुहम्मद तलहा क़ासिमी नक़्शबंदी ने इदारा मज़हर उल-उलूम आटो नगर निज़ाममाबाद में मुनाक़िदा (आयोजित) ख़ुसूसी नशिस्त में शरीक उल्मा ए किराम, हफ़्फ़ाज़ ए किराम की एक कसीर(ज़्यादा) तादाद से ख़िताब करते हुए किया। उन्होंने कहा कि मज़कूरा आयत की रोशनी में हमें ये देखना चाहीए कि हम अपने नबी ई की संतों को तर्क करके कितना दिल दिखाते हैं हालाँकि ये उम्मत बड़ी मेहनत से बनी है हमारे नबी करीम (स०अ०व०) ने तो इस उम्मत के लिए ख़ूँन बहाया है हम अपने नबी करीम (स०अ०व०) के वारिसैन यानी उल्मा ए किराम की तौहीन भी करते हैं तो नबी के दिल को तकलीफ़ होती है ।

क़ियामत के क़रीब दज्जाल आएगा जिस को ख़त्म करने के लिए अल्लाह के नबी हज़रत ईसा (अ०) आयेंगे । आज ज़रूरत इस बात की है कि हम अवाम व ख़वास उल्मा तलबा (छात्रों) सब ही दिल से नबी करीम (स०अ०व०) से मुहब्बत करें और अमल से भी इस का सबूत दें।

ख़ुसूसी नशिस्त का आग़ाज़ हाफ़िज़ शेख़ असलम मुताल्लिम मदरसा हज़ा की तिलावत से हुआ। मौलाना अबदुल क़दीर हुसामी व हाफिज़ तुराब उद्दीन साहिब ने नातों का नज़राना पेश किया। हाफ़िज़ मुहम्मद अफ़्सर बोधन ने एक जामि हम्द सुनाई । अबदुल क़य्यूम शाकिर अलक़ा सिमी उस्ताद मदरसा हज़ा ने निज़ामत के फ़राइज़ अंजाम दिए ।

मौलाना सैय्यद वली अल्लाह क़ासिमी नाज़िम मदरसा मज़हर उल-उलूम ने तमाम मेहमानों और मुआवनीन का शुक्रिया अदा किया। हज़रत मेहमान ख़ुसूसी की (खाश) दुआ पर जलसा का इख़तताम( खत्म) अमल में आया। इस मौक़ा पर अतराफ़ वाकनाफ़ और शहर के उल्मा‍ ओ‍ हाफिज़ कसीर (ज़्यादा) तादाद में मौजूद रही ।

मोअज़्ज़िज़ीन शहर भी बड़ी तादाद में इस्तेफ़ादा ( फायदे लेने) की ग़रज़ से हाज़िर जलसा ( मौजूद)थे।