नरेंद्र मोदी का बरत

चीफ़ मिनिस्टर गुजरात नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में सद्भावना मिशन के नाम पर 3 रोज़ा बरत का आग़ाज़ किया ही। अपने दौर-ए-हकूमत में मुस्लिम कुश फ़सादात और इस के क़ौमी सतह पर मुरत्तिब होने वाले असरात को नजरअंदाज़ करते हुए एक ब्यान जारी करके ये तास्सुर देने की कोशिश की कि हिंदूस्तान में फ़िर्कावाराना और ज़ात पात के जुनून के वो मुख़ालिफ़ हैं। इन वाक़ियात से हिंदूस्तान में किसी को फ़ायदा हासिल नहीं होगा। नरेंद्र मोदी ने जिन पर 2002 -के फ़िर्कावाराना फ़सादाद के लिए शदीद तन्क़ीदें की जाती रही हैं अमन, इत्तिहाद और फ़िर्कावाराना हम आहंगी के लिए बरत रख रहे हैं। गुजरात फ़सादात पर इज़हार माज़रत के बजाय सिर्फ इज़हार तास्सुफ़ करने वाले नरेंद्र मोदी का ये दावा है कि इन के दौर-ए-हकूमत में गुजरात के अवाम को अमन-ओ-सुकून और तरक़्क़ी हासिल हुई ही। फ़िर्कापरस्ती और ज़ात पात की सियासत पर इज़हार-ए-ख़्याल करने वाले मोदी को ये शिकायत है कि गुजरात को फ़िर्कावाराना फ़सादात से ज़खमी करने वालों में अप्पोज़ीशन और शहरी समाज का एक गोशा शामिल है। मोदी के ब्यान और बरत का ऐलान क़ौमी सियासत को मद्द-ए-नज़र रख कर किया गया है। बी जे पी आने वाले 2014-के इंतिख़ाबात में वज़ारत-ए-उज़मा का उम्मीदवार किस को बनाएगी ये वाज़िह किए बगै़र पार्टी के एक गोशे की जानिब से इस बात की तशहीर की जा रही है कि नरेंद्र मोदी ही वज़ारत-ए-उज़मा के उम्मीदवार होंगे। इस का मतलब साफ़ है कि आने वाले दिनों में बी जे पी को इमकानी फूट का शिकार होना पड़ेगा। अगर दिल्ली के क़ाइदीन क़ौमी सतह पर अपना रोल अदा करने की ख़ाहिश को तक़वियत देते हैं तो फिर नरेंद्र मोदी को गुजरात के बाहर निकल कर दिल्ली तक पहूंचने के लिए कई रुकावटों से गुज़रना पड़ेगा। वज़ीर-ए-आज़म की कुर्सी पर मोदी के नज़र रखने से न डी ए की हलीफ़ बी जे पी को अपने मज़बूत हलीफ़ों से महरूम होना पड़ सकता ही। एन डी ए की सब से ताक़तवर हलीफ़ पार्टी जनतादल (यूनाईटेड) ने मोदी को बी जे पी का वज़ारत आज़मा का उम्मीदवार बनाने की मुख़ालिफ़त की ही। बिहार में इन डी ए ने अपने सैकूलर इमेज की दहाई दे कर अक़ल्लीयतों के वोट हासिल किए हैं। क़ौमी सतह पर अहम रोल अदा करने की आरज़ू रखने वाले मोदी को अपनी रियासत में इन की हुक्मरानी के तहत होने वाली नानसाफ़ीयों, ख़राबियों और नाराज़गियों का जायज़ा लेने में जानिबदाराना सियासत के घने जाल से बाहर निकलने की कोशिश करनी होगी। इन की रियासत में जहां इंसाफ़ का ख़ून होता है, शहरीयों के साथ इमतियाज़ बरता जाता है, तरक़्क़ी के नाम पर सिर्फ कारपोरीटघरानों को मुराआत दिए जाते हैं। ग़रीब और देही अवाम के हिस्सा में सिर्फ वाअदे मिलते हैं। अक्सरीयत और अक़ल्लीयत के दरमयान इमतियाज़ की हद अफ़सोसनाक हद तक नीचे पाई जाती हैं। गुज़श्ता एक दहा के दौरान गुजरात की अक़ल्लीयतों ने ख़ौफ़ के साया में ज़िंदगी गुज़ारी है। सच्चाई ब्यान करने वालों का गला घूँट दिया जाता ही। यही क़ौमी सतह की सियासत में क़दम रखने के बाद मुलक के हालात क्या होंगे इसे मोदी के 3 रोज़ा बरत के एजंडा के तनाज़ुर में देखें तो पता चलेगा। गुजरात फ़सादात के केस में सुप्रीम कोर्ट से राहत और वज़ारत अज़मा के लिए अमरीका से आशीर्वाद हासिल होने के बाद उन की दिल्ली कैफ़ीयत का अंदाज़ा करने में सैकूलर अवाम को देर नहीं होगी। नज़रियाती बुनियादों पर उन की पालिसीयां सब पर अयाँ हैं। मोदी हमेशा ख़बरों और सुर्ख़ीयों में रहने वाले चीफ़ मिनिस्टर हैं इस लिए मुलक के मुख़्तलिफ़ मकतब फ़िक्र के अवाम उन्हें मुख़्तलिफ़ ज़ावियों से देखते हैं। लेकिन सैकूलर हिंदूस्तान के सैकूलर अवाम का ज़ावीया निगाह एक ही कि नरेंद्र मोदी को सैकूलर किरदार का सदाक़तनामा नहीं मिल सकता। अवाम की अक्सरीयत का ख़्याल नोट करना ज़रूरी है कि नरेंद्र मोदी अपने महदूद और मनफ़ी सलाहीयतों के हवाले से बहुत छोटे लीडर हैं। वो क़ौमी सियासत में क़दम रखने के लिए ख़तरनाक-ओ-चालाक हर्बों से सहारा लेने की कोशिश करेंगे। एक हर्बा बरत है। इस बरत के लुगवी मानी की एहमीयत का अगर उन्हें अंदाज़ा है तो उन्हें अपने बरत के ज़रीया ख़ुद एहतिसाबी के दौर से गुज़रने का मौक़ा नसीब हो रहा है। इसलाह-ए-अहिवाल का तक़ाज़ा यही है कि वो अपनी 10 साल की हुक्मरानी का जायज़ा लें तो इस में कई ख़राबियां, ज़्यादतियां, जांबदारी, तास्सुब पसंदी और हक़तलफ़ी की तवील दास्तानें नज़र आयेंगी । मुस्लमानों के लहू से रंगी हुक्मरानी में अगर वो झांक कर देखें तो इस में ख़ून के आँसू रोता हुआ मुस्लिम समाज नज़र आएगा। बरत इंसान को तज़किया नफ़स का मौक़ा फ़राहम करता है लेकिन जब सियासतदां बरत का सहारा लेता है तो इस की इफ़ादीयत भी सयासी नौईयत की होती है। नफ़स को टटोलने या ख़ुद एहतिसाबी की तौफ़ीक़ नहीं होती। इस लिए मोदी ने बरत का आग़ाज़ करने से क़बल गुजरात फ़सादात पर माज़रत ख़्वाही, गुनाहों से तौबा, शीराज़ा बंदी, इंसाफ़, सच्चाई और ईमानदारी वग़ैर जांनिबदारी जैसे अलफ़ाज़ को अपनी ज़बान पर आने नहीं दिया। इस से ज़ाहिर हुआ कि मोदी सिर्फ एक सियासतदां हैं, मुदब्बिर नहीं, फ़िक्री सलाहीयतों का दायरा सिर्फ एक क़ौम के इर्दगिर्द गशत करे तो अवाम की बड़ी अक्सरीयत के ज़हनों में एहसास तहफ़्फ़ुज़ और मुल्की बक़ा के हवाले से शकूक उभरना यक़ीनी ही। साज़िशी फ़िक्र के साथ शुरू करदा बरत अवाम के लिए फ़िर्कावाराना हम आहंगी अमन ख़ुशहाली की नवेद का लज़ीज़ केक साबित नहीं होगा ।

पकवान गैस पर सब्सीडी

पैट्रोल की क़ीमत में मुसलसल इज़ाफ़ा के बाद यूपी ए हुकूमत का वज़ारती ग्रुप ख़ानगी कंपनीयों को फ़ायदा पहूँचाने की कोशिश कररहा है इसी लिए पकवान गैस पर सब्सीडी बर्ख़ास्त करने की तजवीज़ पेश की जाने वाली है। गैस सलेंडर की क़ीमत को दोगुनी करदेने की तजवीज़ या पकवान गैस की सरबराही महिदूद करने के फ़ैसला को मोख़र करते हुए हुकूमत ने अपनी हलीफ़ पार्टीयों की नाराज़गी को दूर करने की कोशिश की है। यू पी ए को अपनी बक़ा की फ़िक्र है इस लिए आम आदमी पर बोझ डालने की कोशिश इस के लिए मुश्किल खड़ी करदेगी। तृणमूल कांग्रेस और डी ऐम के ने गैस सलेंडर की सब्सीडी शरह पर सरबराही की तादाद सालाना 4 ता 6 करदेने की मुख़ालिफ़त की है। अप्पोज़ीशन पार्टीयों ने हालिया इज़ाफ़ा शूदा पैट्रोल की क़ीमत को वापिस लेने का मुतालिबा किया है। अवाम के लिए ये बहुत मुश्किल सूरत-ए-हाल है उन्हें हुकूमत की मनमानी की सज़ा भुगतनी पड़ रही ही। अंदेशा इस बात का है कि अगर हुकूमत ने साल में सिर्फ 6 सलेंडर सब्सीडी के ज़रीया सरबराह करने का फ़ैसला किया तो आम आदमी पर 6 सलेंडरस की ख़रीदी के लिए इज़ाफ़ी रक़म का बोझ आइद होगा। हुकूमत अपने इक़दाम के ज़रीया 12 हज़ार करोड़ रुपय की बचत करना चाहती है। यू पी ए ने अपने दूसरे दौर की हुक्मरानी में ज़ाती मुफ़ादात का ख़ास ख़्याल रखा है। कांग्रेस की 3 अहम हलीफ़ पार्टीयों तृणमूल कांग्रेस, डी ऐम के और उन सी पी ने फ़िलहाल पकवान गैस पर अपना मौक़िफ़ सख़्त रखा है लेकिन क़ीमतों में इज़ाफ़ा की सिफ़ारिश करने वाला वज़ारती ग्रुप आज नहीं तो कल अपनी तजवीज़ पर अमल करने के लिए हुकूमत को मजबूर करेगा। बी जे पी, बाएं बाज़ू पार्टीयों ने हुकूमत की क़ीमतें बढ़ाॶ पालिसी को अवाम दुश्मन क़रार दिया ही। सिर्फ एहतिजाज या बयानबाज़ी से हुकूमत पर दबाॶ नहीं डाला जा सकता। अप्पोज़ीशन की हैसियत से बी जे पी और दीगर पार्टीयों ने अब तक की इज़ाफ़ा शूदा क़ीमतों के ख़िलाफ़ कोई सख़्त मौक़िफ़ इख़तियार नहीं किया जिस के नतीजा में हुकूमत आए दिन पैट्रोल और पकवान गैस की क़ीमतों में इज़ाफ़ा कररही है। क़ीमतों में इज़ाफ़ा की पालिसी को बैरूनी मुल्कों की मार्किट से मरबूत करनेवाली यू पी ए हुकूमत को अपने मुल़्क की दाख़िली सूरत-ए-हाल का भी जायज़ा लेना ज़रूरी है। क़ीमतों में इज़ाफ़ा ग़रीब अवाम के साथ नाइंसाफ़ी है इस नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए अवाम को मुनज़्ज़म तौर पर मुत्तहदा जद्द-ओ-जहद करनी होगी। अगर यू पी ए हुकूमत ने अवाम के दौर को समझने में कोताही की तो उसे आम इंतिख़ाबात के बाद इक़तिदार से महरूमी का दर्द लाहक़ होगा।