नरेंद्र मोदी के अज़ाइम

मुल्क की सयासी पार्टीयों में इन दिनों साल 2014 के आम इंतेख़ाबात के बारे में ग़ौर-ओ-फ़िक्र इतना ज़्यादा नहीं है, जितना बी जे पी और स‍ंघ परिवार में चीफ़ मिनिस्टर गुजरात नरेंद्र मोदी को वज़ीर-ए-आज़म के उम्मीदवार की हैसियत से पेश करने और 2014 के इंतेख़ाबात मोदी के दम पर लड़ने पर शिद्दत से चर्चे हो रहे हैं।

बी जे पी की सदारत का मसला भी हाइल है। बाअज़ ग्रुप मौजूदा सदर नशीन गडकरी को दुबारा मुंतखिब करने के हामी हैं तो कुछ ने उन की मुख़ालिफ़त की है।आर एस एस भी चाहती है कि नितिन गडकरी को दूसरी मीयाद दी जाए क्योंकि नागपुर के इस कम मारूफ़ सियासतदां को अहम ओहदा पर बरक़रार रख कर नरेंद्र मोदी को दिल्ली पहुंचाया जाए।

2002 के मुस्लिम कश गुजरात फ़सादाद के मुक़द्दमात का सामना करने वाले नरेंद्र मोदी को सुप्रीम कोर्ट से गुलबर्ग सोसायटी केस में राहत मिलने के बाद बी जे पी क़ौमी क़ियादत उन्हें मौक़ा देने कोई भी सयासी मौक़ा खोना नहीं चाहती। नरेंद्र मोदी ने भी सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद अहमदाबाद में तीन रोज़ा सदभावना ब्रत रख कर वज़ारत-ए-उज़मा से मुताल्लिक़ अपने अज़म का इशारा दिया।

सुप्रीम कोर्ट की जानिब से गुजरात फ़सादाद की तहक़ीक़ात करने के लिए मुक़र्ररा एस आई टी ने भी मोदी को क्लीन चिट दी तो क़ौमी सियासत में बी जे पी के हौसले मज़ीद बुलंद हुए हैं, वो गुजरात के 2012 असेंबली इंतेख़ाबात के बाद दिल्ली के क़ौमी मंज़र पर छाने की कोशिश करेंगे। संघ परिवार में कट्टर फिर्कापरस्त लीडरों की कोई कमी नहीं है, मोदी इस फ़हरिस्त में अव्वल नंबर पर हैं।

लेकिन सवाल ये है कि बी जे पी जिस ने माज़ी में दरख़शां हिंदूस्तान के नारे पर इंतेख़ाब लड़ कर शिकस्त खाई थी, इस बार वो क़ौमी तर कुयात के नाम पर मुक़ाबला करते हुए मोदी को अपना वज़ारत-ए-उज़मा का उम्मीदवार बनाकर पेश करने में कामयाब होगी ? मुल्क की ताक़तवर लॉबी ख़ास बिज़नेस ग्रुप से वाबस्ता अफ़राद ने वज़ारत-ए-उज़मा के लिए मोदी की उम्मीदवारी की परज़ोर हिमायत की है। लेकिन वो ये भूल रहे हैं कि फिर्कापरस्त क़ाइदीन की वजह से ही मुल़्क की मआशी तरक़्क़ी ठप हो गई थी।

गुजरात फ़सादाद 2002 के बाद मुल्क से तरक़्क़ी-ओ-पैदावार को ग्रहण लग गया था। अगर मोदी को क़ौमी हीरो बनाकर लाया गया तो इस के मज़ीद भयानक नताइज बरामद होंगे, पूरा हिंदूस्तान गुजरात बन जाए तो इसके लिए कौन कुसूरवार होगा, इस पर नई बहस छिड़ेगी।

आम इंतेख़ाबात 2014 में वज़ारत-ए-उज़मा के उम्मीदवार की हैसियत से मोदी का खड़ा होना हैरत अंगेज़ बात होगी। क्यों कि जो लोग मोदी को जानते हैं वो ये भी अच्छी तरह समझते हैं कि नरेंद्र मोदी के क़ौमी सतह पर छा जाने से कई मसाएल पैदा होंगे और एन डी ए फूट का शिकार होगा।

नितीश कुमार ज़ेर क़ियादत जनता दल यू, बीजू जनता दल लीडर नवीन पटनायक और अना डी एम के लीडर जया ललीता ने फ़िलहाल मोदी के हक़ में आवाज़ उठाई है और ये आवाज़ वक़्त आने पर दब सकती है। बी जे पी के अंदर ही जब मोदी की मुख़ालिफ़त करने वाले हों तो संघ परिवार को मुश्किलात का सामना होगा।

अरूण जेटली और सुषमा स्वराज क़ौमी सतह पर किसी लीडर को अपने बराबर खड़ा करने तैयार नहीं हैं। संघ परिवार में हालिया होने वाली सरगर्मीयों से ज़ाहिर होता है कि 2014 के इंतेख़ाबात में ताईद हासिल करने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। मर्कज़ की यू पी ए हुकूमत की बदउनवानीयों के बाइस क़ौमी सतह पर ख़ुद को मज़बूत होता देखने वाली बी जे पी को कई मसाएल की यकसूई के साथ पार्टी क़ियादत का मसला भी हल करना है।

कांग्रेस ज़ेर क़ियादत यू पी ए हुकूमत की बाअज़ ख़ामीयों, रिश्वत की धांदलियों और स्क़ाम्स की वजह से अवाम का भरोसा उठता जा रहा है। दूसरी मीयाद में कांग्रेस हुक्मरानी की कारकर्दगी और सयासी पेशरफ़त इस तास्सुर की तस्दीक़ कर रही है कि नरेंद्र मोदी को वज़ारत-ए-उज़मा का उम्मीदवार बनाकर बी जे पी क़ौमी सतह पर कांग्रेस के ख़राब मौक़िफ़ का फ़ायदा उठाना चाहती है।

अगर ऐसा सब कुछ ठीक हो जाए तो ये सैकूलर हिंदूस्तानियों के लिए एक सानिहा से कम नहीं होगा। मुसलमानों के क़त्ल-ए-आम के लिए ज़िम्मेदार चीफ़ मिनिस्टर को क़ौमी सियासत का हीरो बनाया गया तो क्या, क्या बदतरीन तब्दीलीयां होंगी इस ख़्याल से ही मुल्क का सैक्यूलर शहरी फ़िक्रमंद होता जा रहा है।

अगर सैक़्यूलर क़ाइदीन, पार्टीयां और अवाम में ताल मेल पैदा हो जाए तो 2014 के इंतेख़ाबात और इस से क़ब्ल 2012 के गुजरात असेंबली इंतेख़ाबात में ही बी जे पी को अपनी हमाक़त की सज़ा-ए-मिलेगी। बेगुनाहों का ख़ून एक दिन रंग ज़रूर लाएगा। रोशन ख़्याल और सैक्यूलर दानिश्वरों का सानिहा ये है कि वो क़ौमी सियासत में तब्दीलीयों के लिए बेताब बी जे पी आगे चल कर किया गुल खिलाएगी, इस बारे में मूसिर लायेहा-ए-अमल इख्तेयार करने से क़ासिर हैं।

दस्तूर हिंद की रूह से आगही रखने के बावजूद गुजरात के चीफ़ मिनिस्टर ने अपनी सरकारी मिशनरी को मुसलमानों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया है तो अब इस मिशनरी को ये समझाने की ज़रूरत है कि हुकूमत के पास कोई मुतबादिल रास्ता नहीं है। इसलिए अवाम ही फ़ैसला कर ले कि उन्हें क्या करना होगा। बरसर मैदान बुराई का सामना और मुक़ाबला है।

कांग्रेस अगर सैक़्यूलर हलीफ़ पार्टीयों की इंतेख़ाबी मुहिम का जायज़ा ले तो पता चलेगा कि मुस्लमानों के वोट सयासी खाता के तौर पर इस्तेमाल करने का क्या हश्र होता है। यू पी ए हुकूमत की कमज़ोरीयों ने इलाक़ाई क़ियादत के बारे में सरगर्मीयों का मौक़ा फ़राहम किया है लेकिन हक़ीक़त तो ये है कि गुजरात के होलनाक फ़सादाद मोदी का आख़िर तक तआक़ुब करते रहेंगे।