ये ठोस हक़ीक़त है कि मुल्क में ऐन इंतिख़ाबात से क़ब्ल क़ियादत रवैय्या में तबदीली ला लेती है लेकिन मिज़ाज में तबदीली पहली बार देखने में आई है। गुजरात के दरयाए साबरमती के किनारे मुस्लिम तिजारती कान्फ़्रैंस में चीफ़ मिनिस्टर नरेंद्र मोदी का लबो लहजा और आवाज़ में ख़ुशी कम मजबूरी ज़्यादा के मुतरादिफ़ तो नहीं इस लिए कि आज हर ख़ास और आम की सियासी हालात पर नज़रें टिकी हुई हैं।
टी वी पर मोदी की तक़रीर के साथ ही अवाम बिलख़ुसूस अक़लीयतों में उन की तक़रीर के चर्चे सुनाई दे रहे हैं। आज अख़बारात का भी बहुत दिलचस्पी से मुताला करते हुए क़ारईन को देखा गया। ऐसा लगता है कि मोदी बदल गए या हालात ने उन्हें बदल दिया।
ताहम क़ानून का आहिनी पंजा उन के अज़ाइम को नाकाम बनाने के लिए मुतहर्रिक हो तो कोई भी हालात को नहीं बिगाड़ सकता। ताहम आज अक्सर मुक़ामात पर नरेंद्र मोदी की हालिया तक़रीर ज़ेरे बहस रही। वैसे-
“लौट कर नहीं आता क़ब्र से कोई लेकिन
प्यार करने वालों को इंतेज़ार रहता है”।
इस तरह चीफ़ मिनिस्टर वज़ीरे आज़म बनने का इंतेज़ार कर रहे हैं।