लखनऊ: उत्तर प्रदेश की दारुल हुकूमत में मुजरिमाना वाकियात को ताबड़तोड़ अंजाम दिया जा रहा है. इन वाकियात से रियासत की दारुल् हुकूमत और नवाबों का शहर लखनऊ उत्तर प्रदेश का ‘क्राइम कैपिटल’ बन गया है.
शहर के पुलिस कैप्टन हालांकि कानून निज़ाम का हालात में पहले से सुधार तो बताते हैं. लेकिन अपोजिशन का इल्ज़ाम है कि वज़ीर ए आला ऐसे वाकियात की तरफ अपनी आंखें बंद किये हुए हैं.
वज़ीर ए आला अखिलेश यादव अखबारों में छपे इश्तेहारात में यह दावा करने से नहीं चूक रहे कि उनके दौर ए इक्तेदार में कानून निज़ाम की हालत में वसीअ तौर पर सुधार आया है, लेकिन गुजश्ता तीन महीनों में यहां 42 क़त्ल, 20 बड़ी डकैतियां, एक बैंक में सेंधमारी जिसमें तीन लोगों की मौत जैसी वारदात उनके दावों की पोल खोलती हैं.
वहीं, पुलिस आफीसर शहर में पुलिस की पूरी सरगर्मी का दावा करते हैं. लखनऊ के सीनीयर पुलिस सुप्रीटेडेंट यशस्वी यादव ने दावा किया कि कानून निज़ाम की हालत में वास्तव में सुधार आया है. शहर के आईजी ने हालांकि लखनऊ में जुर्म में इज़ाफे को कुबूल किया और कहा कि उन्हें रोकने के लिए हर कोशिश की जा रही हैं.
दिगर पुलिस ओहदेदारों के मुताबिक, क्राइम ग्राफ के बढ़ने के बावजूद यशस्वी यादव वज़ीर ए आला अखिलेश यादव के ‘खासमखास’ बने हुए हैं.
गुजश्ता तीन साल में समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार के दौरान रियासत में कानून निज़ाम के हालत बेहद खराब रही है. दारुल हुकूमत में जुर्म में अचानक आए उछाल से पार्टी के वफादार भी हैरान हैं.
कई मामलों को सुलझाने में पुलिस नाकाम रही है और हालात पर काबू पाने के लिए सीएम की तरफ से दी गई टाइम लाइन का आफीसरों पर कोई असर नहीं पड़ा है. एक सीनीयर पुलिस आफीसर ने आईएएनएस से कहा कि, “लखनऊ में पुलिसिंग का कोई मतलब नहीं रह गया है और जो भी हो रहा है, बस खानापूरी है.”
पुलिस महकमा के अंदरूनी ज़राये यशस्वी यादव पर अपने साथियों पर रोब जमाने और तंज़ीमी ढ़ाचे तोड़ने का इल्ज़ाम लगाते हैं. एक आफीसर ने कहा कि, “नतीजा तो आप देख ही रहे हैं.” रिकॉर्ड के मुताबिक, दिगर जुर्म के अलावा क़त्ल के 30 कोशिश हुए, एटीएम से करोड़ों रुपये की डकैती और 125 चोरियां हो चुकी हैं.
गुजश्ता मंगल के रोज़ को पुलिस डायरेक्टर जनरल के दफ्तर के पास एक नाले से एक शख्स का धड़ बरामद हुआ, जबकि रियासत के सचिवालय के एक मुलाज़िम को गोली मारकर क़त्ल कर दिया गया.
इसी तरह की स्थितियों के लिए वरिष्ठ पुलिसकर्मियों को या तो निलंबित कर दिया गया, या फिर उन्हें किनारे लगा दिया गया. लेकिन यशस्वी यादव पर कोई आंच नहीं आई.
यशस्वी यादव ने हालांकि जुर्म का ग्राफ बनने के इल्ज़ामात से इनकार किया. उन्होंने कहा कि, “हम सही सिम्त में चल रहे हैं. शहर में कानून निज़ाम में खासा सुधार हुआ है और ट्रैफिक निज़ाम भी पहले से सुधरी है. एक पेशेवर के तौर पर इस कामयाबी से मुझे खुशी है.”
लेकिन यादव की इस बचाव-मुद्रा से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) इत्तेफाक नहीं रखती.
भाजपा के तरजुमान विजय बहादुर पाठक ने कहा, “वज़ीर ए आला ने खराब होते कानून निज़ाम पर अपनी आंखें बंद कर ली हैं और अपने पालतू ओहदेदारो को पनाह दे रहे हैं.” वहीं बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, “क्रिमनल लोग लखनऊ में बेखौफ हो गए हैं.”