बरेली: जिन बच्चों को उर्दू पड़ने, सीखने और बोलने का शौक है, उन बच्चों के लिए बरेली का श्मशुल हक अदब मदरसा एक मरकज़ है. जो बच्चे अपने स्कूल और शिक्षण संस्थानों में उर्दू नहीं सीख पाते हैं, उन्हें उर्दू से जोड़ने के लिए श्मशुल हक अदब मदरसा ने अपने दरवाजे खोल दिए हैं.
प्रदेश 18 के अनुसार, श्मशुल हक अदब मदरसा शहर की आड़ी तिरछी के बीच नीम की चढ़ाई मुहल्ले में स्थित मदरसा में लगभग चौदह से पंद्रह गैर मुस्लिम बच्चे भी उर्दू सीखने आते हैं.
नसरीन शमशी एक प्राथमिक स्कूल में शिक्षक हैं, लेकिन शिक्षा देने के उनके जुनून का आलम यह है कि छुट्टी होने के बाद वह मदरसे में बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती हैं, चाहे उनके मदरसे में पढ़ने वाला बच्चा किसी भी स्कूल के छात्र हो.
छात्र उर्दू पढ़ने के साथ साथ हिंदी, अंग्रेजी, और गणित या फिर किसी भी पाठ्यक्रम की मुश्किलों का हल पूछ सकते हैं .नसरीन शमशी ने हिंदी लिपि में ‘हिंदी उर्दू संगम’ नामक एक किताब लिखी है, जिसके जरिए हिंदी पढ़कर बच्चे उर्दू भाषा सीख रहे हैं.
इस किताब की खास बात यह है कि इसमें हिंदी और उर्दू भाषा को इस तरह से शामिल किया गया है कि पढ़ने में हिन्दी – उर्दू एक ही सिक्के के दो पहलू लगते हैं. हिंदी और उर्दू शब्दों में समान आवाज मिलाने की भी कोशिश की गई है.
नसरीन शमशी को इस दुर्लभ प्रयास के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से ‘मलाला’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.खास बात यह है कि बरेली के नसरीन सौर सभी धर्मों के बच्चों को धार्मिक एकता के धागे में पिरोने की कोशिश करते हुए अपने मदरसे में उर्दू सिखा रही हैं.
लग भग दर्जन भर गैर मुस्लिम बच्चे उर्दू सीखने में विशेष रुचि ले रहे हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह शैक्षिक काम बिल्कुल मुफ्त किया जा रहा है.