नाइट शिफ़्ट में काम करने वालों को मुख़्तलिफ़ बीमारीयों का ख़द्शा

रात के औक़ात में मुलाज़मत करने वालों और दिन के वक़्त काम करने वालों की सेहत में काफ़ी फ़र्क़ पाया जाता है। इस लिए ख़ुशहाल ज़िंदगी गुज़ारने हमारे प्यारे नबी ने रात को जल्द सो जाने और सुबह जल्द उठ जाने का फार्मूला अता किया है। चुनांचे इस फार्मूला पर जो भी अमल करता है। वो दुनिया में कामयाब वक़्क़ा मिरान होता है।

इसी लिए ये मुहावरा बहुत मशहूर है जो सोया वो खोया सेहत वो तिब के लिहाज़ से भी देखा जाए तो रात की शिफ्टों में काम करने वालों को कई एक बीमारियों का ख़द्शा लगा रहता है। हालिया अर्सा के दौरान कई ऐसे तिब्बी जायज़ा और तहक़ीक़ सामने आई है जिन में इस बात का इन्किशाफ़ किया गया है कि रात की शिफ्टों में काम करने वालों पर नफ़्सियाती असर पड़ता है। नींद उन से रूठ जाती है। भूक की कमी का आरिज़ा उन्हें लाहक़ हो जाता है।

बदहज़्मी का वो शिकार हो जाते हैं। शूगर, अमराज़े क़ल्ब, ब्लड प्रेशर यहां तक कि कैंसर जैसे मूज़ी मर्ज़ में मुबतला हो जाते हैं। माहिरीने तिब्ब के ख़्याल में नाइट शिफ़्ट में काम करने वाले मर्द और ख़्वातीन के जिस्म का अंदरूनी निज़ाम बिगड़ जाता है। और इस निज़ाम के बिगड़ने से ख़ून के ख़लीयों में भी बिगाड़ पैदा हो जाता है।

नतीजे में कैंसर का ख़तरा बढ़ जाता है। माहिरीन का कहना है कि जिस्म का अंदरूनी निज़ाम हार्मोन्स के ज़रीए मुख़्तलिफ़ जिस्मानी हिस्सों को कंट्रोल में रखता है। जब कि रात के औक़ात में काम करने वाली ख़्वातीन के पिस्तान के कैंसर में में मुबतला होने का ख़द्शा पाया जाता है। ग़रज़ तिब्बी माहिरीन रात की शिफ़्ट में काम करने वालों को हमेशा ख़तरनाक बीमारीयों से मुतास्सिर होने का इंतिबाह देते रहे हैं।

ये भी कहा जाता है कि नाइट शिफ़्ट में काम करने वालों की सोच और फ़िक्र पर भी मन्फ़ी असर पड़ता है। चुनांचे 1.2 अरब से ज़ाइद आबादी के हामिल इस मुल्क में ब्रेस्ट कैंसर फाउंडेशन के मुताबिक़ पिस्तान के कैंसर से मुतास्सिरा ख़्वातीन की तादाद कम अज़ कम 2 लाख है।