मुंबई, 02 मार्च: कहते हैं इंसान को जीने के लिए खाना चाहीए खाने के लिए नहीं जीना चाहीए, लेकिन बाज़ लोगों की आदत ऐसी होती है कि वो जीने के लिए भी खाने से गुरेज़ करते हैं। आप को ऐसे कई लोग मिल जाऐंगे जिन्हें नाश्ता करने की आदत ही नहीं होती, जबकि उस वक़्त हमारे पेट को ग़िज़ा की सख़्त ज़रूरत होती है।
जैसा कि कहावत है ख़ुदा भूका उठाता है भूका सुलाता नहीं। यानी हम रात का खाना खाकर सोजाते हैं तो नींद के दौरान हाज़मे का अमल जारी रहता है और सुबह होने तक हमारा पेट फिर ख़ाली होजाता है। ऐसे वक़्त में पेट को ख़ाली ही छोड़ देना ना सिर्फ़ पूरे जिस्म पर ज़ुल्म के मुतरादिफ़ है बल्कि हम ख़ुद अपनी ख़राबी सेहत को दावत देते हैं।
हालाँकि बैड टी को बैड हैबिट( ख़राब आदत) कहा जाता है, लेकिन सरमाया दारों के ख़ानदानों और मग़रिबी तहज़ीब में ये तरीका-ए-कार आम है कि सुबह उठते ही मुँह धोने से पहले ही चाय की एक प्याली नोश की जाती है। इस के बाद बरश और ग़ुसल के बाद नाश्ते का बा क़ायदा एहतिमाम होता है जो फ्राई और उबले हुए अंडों टोस्ट मक्खन जूस पराठों और दीगर लवाज़मात पर मुश्तमिल होता है। ये ग़िज़ाएं सेहत अफ़्ज़ा होती हैं, और दिन की शुरूआत अगर इन ग़ज़ाओं से की जाये तो इंसान दोपहर तक हश्शाश बश्शाश रहता है। लिहाज़ा ज़रूरत इस बात की है कि सुबह उठने के बाद नाश्ते को नज़र अंदाज़ ना किया जाये।