ये नज़म मेरे दादा की है: जावेद अख़तर का दावा
नई दिल्ली: मुमताज़ नग़मा निगार और कलमकार जावेद अख़तर ने बताया है कि उनके दादा मुज़्तर ख़ैराबादी का मजमूआ कलाम बहुत जल्द शाय किया जाएगा , और ये इन्किशाफ़ किया कि जब वो अपने दादा की शायरी की तहक़ीक़ और तालीफ़ कर रहे थे तो पता चला कि ये मशहूर नज़म दरअसल ख़ैराबादी की तख़लीक़ है।
जावेद अख़तर ने बताया कि हम इस प्रोजेक्ट पर गुज़िशता 10साल से काम कर रहे हैं जिसके दौरान ये पता चला कि मशहूर ग़ज़ल ना में किसी की आँख का नूर हूँ , ना में किसी के दिल का क़रार हूँ जिसे कई फ़नकारों ने गाया है किसी और ने नहीं बल्कि मुज़्तर ख़ैराबादी की तख़लीक़ है।
जावेद अख़तर जोकि हिन्दुस्तानी आवाज़ के ज़ेर-ए-एहतेमाम अपनी शायरी के हिन्दी और अंग्रेज़ी में तर्जुमे पर एक इजलास से ख़िताब के लिए क़ौमी दार-उल-हकूमत आए हैं , उन्होंने कहा कि ये ख़ुश-फ़हमी है कि उर्दू ज़बान फ़रोग़ पज़ीर है इस के बरख़िलाफ़ आज का नौजवान उर्दू ज़बान से बे-एधतिनाई बरत रहा है जिसके बाइस उर्दू एक ज़बान की हैसियत से बरक़रार है लेकिन इस का रस्म-उल-ख़त मादूम हो रहा है। अगर आज का नौजवान उर्दू में बातचीत और उर्दू में गीत सुनता है और किताबें पढ़ता है लेकिन ये देवनागरी या रोमन रस्म-उल-ख़त में होता है।
उन्होंने बताया कि ये मसला सिर्फ उर्दू तक महिदूद नहीं है हत्ता कि हिन्दी, गुजराती और पंजाबी ज़बानें भी इस तरह के हालात से दो-चार हैं ताहम उन्होंने मौजूदा नसल की तहज़ीबी रिवायत से दिलचस्पी पर इज़हार सताइश किया।