बेरोज़गारी और मायूसी से ख़ुदकुशी के बढ़ते हुए ग्राफ़ से तमाम परेशान हैं, लेकिन कुछ लोग हैं कि ऐसे माहौल में मायूसी को धत्ता बताते हुए ज़िंदगी को नयी मंजिलों से रोशनास करा रहे हैं और निकम्मे लोगों के लिए सबक़ बन कर उभरे हैं। बात उन लोगों की है, जिनसे क़ुदरत ने बहुत क़ीमती आज़ा छीने हैं। कोई अपने हाथों से महरूम है तो कोई पैरों से, लेकिन जि़न्दगी की इन कड़वाहटों को उन्होंने मीठे रंगों में तबदील करने की कामयाब कोशिश की है। वो मुँह और पैरों से तस्वीरें बनाते हैं।
माऊथ ऐंड फूट फेन्टिंग आर्टिस्ट का साल 2014 का कैलिंडर सामने है। सफे अव्वल पर चट्टान और झील के पास सब्ज़ पत्तियों और खिले फूलों को देख कर नई उम्मीद जगती है।
जनवरी का सफ़ा गांव की एक सुब्ह से शुरू होता है, जहां किसान अपने खेतों की तरफ़ निकल पड़े हैं। बहुत ख़ूबसूरत बैल बंडियाँ, जिसे देखकर शहर की फर्राटे भरने वाली मोटर गाडेियों की चकाचोंद फीकी पड़ जाती है। जॉर्ज बर्नाड शाह के इस ख़्याल के साथ की जो लोग अपने ख़्यालात को तबदील नहीं कर सकते वो कुछ नहीं बदल सकते। तसावीर एच के कोहली ने मुँह से बनायी है।
फरवरी नया जोश भरता है, जी . निवेन्का भी होटों से तस्वीर बनाती हैं। मुसव्विर का पसंदीदा मौज़ू और तवानाई की अलामत घोड़ा अपनी ही धुन में दौड़े जा रहा है। विनसेन्ट चर्चिल के इस ख़्याल के साथ कि कामयाबी कई नाकामियों के बाद आती है, लेकिन इन लम्हों में अपना जोश नहीं खोना चाहिए।
इक़बाल ने कहा था –
नशेमन पर नशेमन इस क़दर तामीर करता जा
कि बिजली गिरते गिरते आप ख़ुद बेज़ार हो जाये
मार्च का सफ़ा एक ख़ूबसूरत तस्वीर से सजा हुआ है, जिसमें दो ख़वातीन हैं . एक को चावल में से कंकर निकालने की जल्दी है तो दूसरी कोई ख़ूबसूरत चीज़ बुनने में मसरूफ़ है। इस के लिए भी आर्टिस्ट ने ब्रश का इस्तिमाल मुँह से ही किया है।
अप्रैल का महीना कोई नया काम करने की हौसला अफ़्ज़ाई करता है। हरी घास के दरमयान तवील मूछों वाला एक बिलावड़ अपनी बड़ी बड़ी आँखों से देख रहा है। जंगली फूल खिल उठे हैं। आर्थर अशय के इस सोच के साथ कि कि जहां से आप चाहें , जब चाहें , जो कुछ पास है उतने ही से अपना काम शुरू कर सकते है। .
हर चीज़ में ख़ूबसूरती है, लेकिन हर कोई उसे देख नहीं सकता। इक़्तिबास के साथ मई माह की तस्वीर जनार्धन केशवन की है। ये ख़ूबसूरत तस्वीर भी मुँह से ही बनाई गई है। नीले आसमान के नीचे एक छोटी सी झोपडी के सामने बैठी एक कुम्हारन अपने घडे रंग रही है। एक कलाकार दूसरे तख्लीखकार के लिए कितना ख़ूबसूरत तसव्वुर कर सकता है, यह तस्वीर में साफ़ झलकता है।
जून का सफ़ा मौसम से रू ब रू कराता है। अगरचे मैदानी इलाक़ों में अभी घास पीली है, लेकिन सब्ज़ दरख़्तों के दरमियान एक मकान और उस के इर्दगिर्द फूलों से लदे पौधे और पास ही एक पानी हौ़ज में बतख कई सारी बातें कहने की कोशिश तस्वीर में की गयी है। ये तस्वीर जी चुन लाओ ने पैरों की उंगलियों में ब्रश पकड़ कर बनायी है। वाट ड़जनी का ख़्याल इस तस्वीर के मानी को मज़ीद उसअत देता है, यही कि तमाम ख्वाब सचच हो सकते हैं, लेकिन उन ख्वाबों को पूरा करने का हौसला दिल में ज़िंदा रहना चाहीए।
जुलाई का सफ़ा ख़िज़ां की याद दिलाता है। दरख़्तों के पत्ते झड गयेे हैं। कुएं से पानी ले जाती औरतें, हरी घास चरती गाय, अपनी बैलबंडी के चाक जोड़ता किसान. गरज एक तस्वीर में काफ़ी सारी मालूमात है, बल्कि पेंटर का अपने मौज़ू का गहिरा मुताला रंगों में पेश है। अगस्त में बहार आई है। सुर्ख़ सफ़ैद गुलाब खिल उठे हैं। कुछ पत्तियां नीचे जमा पानी में तैर रही हैं। रोनालडो सैन्टोस की ये तसावीर भी पैरों की उंगलियों से बनायी गयी है।
सितंबर में मौसम और निखर गया है। तालाब के किनारे भी बहुत ख़ूबसूरत हो गए हैं। उस पानी में कश्तियाँ आ गई हैं। दरख़्त फूलों से लद गए हैं। अक्तूबर के सफ़े में. कुछ क़बाइली ख़वातीन सुराहियों के साथ बैठी हैं। दिसंबर डूबते सूरज की पानी में झलकती किरणों के साथ रुख़स्त होने को तैयार है। इस मश्वरे के साथ कि ज़िंदगी के रास्ते को पार करने के लिए एक आध दोस्त तो होना ही चाहीए।
माऊथ ऐंड फूट पेंटिंग अरटिस्ट्स की ये कोशिश मुल्क भर मेव 100 से जायद मा़ज़ूर फनकारों को मदद करती के लिए क़ाबिले तारीफ है।