निज़ाम-ए- क़ज़ात काज़ियों के हाथों इस्तिहसाल का शिकार!

अब्बू ऐमल शहर में काज़ियों की जानिब से निकाह की फीस मनमानी वसूल किये जाने की शिकायतें आम हैं । यहां तक कि तलाक़-ओ-ख़ुला के वाक़ियात में भी काज़ियों की जानिब से फ़रीक़ैन का इस्तिहसाल किया जा रहा है । अवामी शिकायात को मद्द-ए-नज़र रखते हुए नुमाइंदा सियासत ने हक़ीक़ी सूरत-ए-हाल जानने की कोशिश की ताकि अवाम को काज़ियों की सरगर्मियों से वाक़िफ़ करवाया जा सके । हम ने इस मसला पर तहक़ीक़ शुरू की तो जो हक़ायक़ हमारे सामने आए उसे जान कर जहां सख़्त अफ़सोस हुआ वहीं हुकूमत वक़्फ़ बोर्ड और आला ओहदेदारों की मानी ख़ेज़ ख़ामुशी के बारे में भी कई सवालात हमारे ज़हन में उठ खरे हुए आप को ये जान कर हैरत होगी कि शहर में चंद क़ाज़ी साहिबान एसे भी हैं जो अपने स्याह(काली) करतूतों के बाइस कई मर्तबा जेल की हवा भी खा चुके हैं ।

काज़ियों के बारे में आम शिकायत ये है कि वो मुक़र्रर फीस निकाह से कहीं ज़्यादा वसूल कर रहे हैं । हम जब शहर के इंतिहाई मारूफ़ तीन इलाक़ा के एक क़ाज़ी के दफ़्तर पर पहूंचे तो देखा कि इन के दफ़्तर पर निकाह , तलाक़-ओ-खुला और दीगर कार्यवाईयों की मुख़्तलिफ़ फीस पर मुश्तमिल बाज़ाबता एक बोर्ड लगा हुआ है । इस बोर्ड पर नज़र पड़ी तो देखा कि ये क़ाज़ी साहब नक़ल साहेआ के लिये 250 रुपये नक़ल तसहीह के लिये 500 रुपये , दरख़ास्त ख़ुला के लिये 500 रुपये बाद क़बूलियत ख़ुला के दो हज़ार रुपये तसदीक़ और इंदिराज तलाक़ के लिये 1000 रुपये , तसदीक़ / इंदिराज खुला की फीस 1600 रुपये और फ़सख़ निकाह के लिये एक हज़ार रुपये फीस मुक़र्रर कर रखी है लेकिन पता चला कि ये सिर्फ़ दिखावा के लिये बल्कि क़ाज़ी साहब मुक़र्ररा फीस से कई गुना फीस वसूल करने को किसी किस्म का गुनाह तसव्वुर नहीं करते ।

जब हम एक और क़ाज़ी के दफ़्तर पर पहूंचे तो वहां इतना हुजूम था कि दफ़्तर वक़्फ़ बोर्ड पर भी उतना हुजूम नहीं रहता होगा । एक और क़ाज़ी के दफ़्तर को देखा तो सिक्रेयट्रीट में किसी अहम क़लमदान के हामिल वज़ीर (मंत्री)के इजलास का गुमान होने लगा । उन की आरामदेह और लकसररी कुर्सी पर नज़र पड़ते ही हम हैरत ज़दा रह गए हम यक़ीन से कह सकते हैं कि इस कुर्सी की कीमत कम अज़ कम 20 हज़ार रुपये होगी । इन क़ाज़ी साहब के इंतिज़ार में 15 ता 20 लोग बैठे हुए थे । ऑफ़िस में ऑफ़िस ब्वॉय , मुंशी साहब, मैनिजर औरदीगर स्टाफ़ भी मौजूद था वहीं पर क़ाज़ी साहब के इंतिज़ार में बैठे एक साहब ने बताया कि वो लोग ख़ुश नसीब हैं जिन्हें शादी या निकाह के बाद क़ाज़ी से दुबारा वास्ता नहीं पड़ता । जो भी इन काज़ियों से तलाक़ और खुला के लिये रुजू (संपर्क) होता है इस से उसे इसे काग़ज़ात और दस्तावेज़ात मंगवाए जाते हैं जिन्हें कोई भी पेश नहीं कर सकता ।

जब मजबूर लोग काग़ज़ात पेश करने से क़ासिर रहते हैं तो यहां से सौदेबाज़ी शुरू होजाती है । शहर के एक समाजी कारकुन शेख फहीम ने बताया कि किसी की तवज्जा इस जानिब नहीं जाती कि इस तरह के बद उनवान और अवाम का इस्तिहसाल करने वाले काज़ियों के ख़िलाफ़ तहक़ीक़ाती कमीशन क़ायम किया जाय क्यों कि तहक़ीक़ाती कमीशन के क़ियाम से कई इन्किशाफ़ात हो सकते हैं । मुहम्मद मसऊद नामी एक शख़्स ने बताया कि एसा लगता है कि काज़ियों ने अपनी अलग ही दुनिया बना ली है । काज़ियों के लिये सब बड़े फ़ायदा का कारोबार तलाक़-ओ-ख़ुला के मुआमलात से निमटना होता है जो लोग खुला और तलाक़के रास्ते पर चल पड़ते हैं उन लोगों की मुसीबतों का सिलसिला क़ाज़ी से रुजू (संपर्क) होते ही शुरू होजाता है । इसी लिये अल्लाह के रसूल(स०अ०व०) ने तलाक़ के अमल को सख़्त ना पसंद किया है ।

अगर कोई शख़्स क़ाज़ी साहब के मकान के करीब से ये देखते हुए गुज़रे के वहां कई लोग बैठे हुए हैं तो वो यक़ीनन अल्लाह का शुक्र अदा करता होगा कि अल्लाह ने उसे इस मुसीबत से महफ़ूज़ रखा है । 12 जनवरी 2011 को हज हाउज़ नामपली में फीस निकाह और तलाक़-ओ-ख़ुला के उमूर पर ग़ौर-ओ-फ़िक्र के लिये एक इजलास मुनाक़िद हुआ था जिस में 90 से ज़ाइद सदूर क़ाज़ी साहिबान ने शिरकत की । इस इजलास में बाअज़ काज़ियों ने बताया था कि तलाक़-ओ-ख़ुला के लिये रुजू (संपर्क) होने वाले जोड़ों की दोता तीन माह कौंसलिंग की जाती है और बहुत मजबूरी की हालत में तलाक़-ओ-खुला की कार्रवाई होती है लेकिन मुख़्तलिफ़ काज़ियों के दफ़ातिर का दौरा करने पर ये इन्किशाफ़ हुआ कि क़ाज़ी साहिबान जोड़ों को तलाक़-ओ-ख़ुला दिलवाने में बड़ी जलदबाज़ी का मुज़ाहरा करते हैं क्यों कि तलाक़-ओ-ख़ुला करवाने पर क़ाज़ी साहिबान को 10 ता 20 हज़ार रुपये की आमदनी होजाती है ।

बाअज़ गरीब लोगों ने बताया कि वक़्फ़ बोर्ड ने काज़ियों को वाज़ेह हिदायत दी है कि वो मुस्तहिक़ और गरीब वालदैन से निकाह की फीस निस्फ़ वसूल की जाय या उन की माली हालत को देखते हुए फीस माफ़ करदी जाय लेकिन अफ़सोस आजकल क़ाज़ी साहिबान फीस के मुआमले में अमीर-ओ-गरीब को नहीं देखते बल्कि हर सूरत में फीस वसूल करते हुए अपनी जेबों में डाल लेते हैं । ये क़ाज़ी निकाह की फीस के तौर पर मनमानी फीस वसूल कर रहे हैं हालाँकि वक़्फ़ बोर्ड के इजलास में 1100 रुपये फीस वसूल करने का तै पाया था इस मुक़र्ररा फीस में से 600 रुपये दुल्हे वालों से और 500 रुपये दुल्हन के वालिद या सरपरस्त से वसूल किए जाने थे लेकिन इस बात की शिकायात आम हैं कि नायब क़ाज़ी हज़रात फ़रीक़ैन से मुक़र्ररा फीस से ज़ाइद वसूल कर लेते हैं । जब कि रजिस्टर्ड मेरे जिस और हिन्दू इदारों में जो शादियां अंजाम दी जा रही हैं वो हमारे लिये एक सबक़ की हैसियत रखती हैं ।

रजिस्टर्ड मैरेज सिर्फ़ 13 रुपये में अंजाम पाती है जब कि काची गौड़ा आरेआ समाज के दफ़्तर में अंजाम पाने वाली शादियों की फीस सिर्फ़ 5 रुपये ली जाती है हद तो ये है कि इन दोनों मुक़ामात पर बाज़ाबता रसीद की इजराई अमल में आती है और हमारे क़ाज़ी साहिबान रसीद देने से शरमाते हैं । चंद काज़ियों से मुलाक़ात हुई तो हम ने देखा कि इन से जो जोड़े मुलाक़ात कर रहे हैं वो उन के मसाइल नहीं बल्कि माली इस्तिताअत(हालत) पर नज़र रखे हुए हैं । जब एक क़ाज़ी से ये सवाल किया गया कि कभी आप ने निकाह की फीस लिये बगैर निकाह पढ़ाया है । उन्हों ने बिना किसी हिचकिचाहट के जवाब दिया कि आज के ज़माने में कोई गरीब भी है । लाखों रुपये की शादी करते हैं और हमें ग्यारह सौ रुपये देने के लिये बहस-ओ-तकरार की जाती है । वाज़ेह रहे कि फीस निकाह पहले सिर्फ 150-200 रुपये मुक़र्रर की गई थी । आप को बतादें कि हमारे शहर में हर साल अल्हम्दुलिल्ला हज़ारों शादियां अंजाम पाती हैं ।

क़िला मुहम्मद नगर के तहत जो शादी ख़ाने या इलाक़ा आते हैं इन में सालाना तक़रीबन दस हज़ार शादियां अंजाम पाती हैं और तलाक़-ओ-ख़ुला के रोज़ाना ओस्ता 10 केस आते हैं इसी तरह शरीयत पनाह बलदा शाह अली बंडा में यौमिया 8 ता 10 केसेस तलाक़-ओ-ख़ुला के होते हैं और इस क़ज़ात के तहत सालाना तक़रीबन 4000 शादियां होती हैं । ग़ाज़ी बंडा ज़ोन में सालाना अंजाम पाने वाली शादियों की तादाद 3 ता 4 हज़ार है । इसी तरह मुख़्तलिफ़ मुक़ामात प्रिया ज़ोनस में सालाना हज़ारों शादियां अंजाम पाती हैं और सैंकड़ों की तादाद में तलाक़-ओ-ख़ुला के वाक़ियात पेश आते हैं । इस से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि काज़ियों की आमदनी क्या होगी लेकिन जहां क़ाज़ी साहिबान निज़ाम क़ज़ात को अपने इस्तिहसाल का शिकार बनाए हुए हैं वहीं ख़ुद काज़ियों में मनमानी फीस की वसूली और अवाम के इस्तिहसाल को लेकर काफ़ी इख़तिलाफ़ात पाए जाते हैं । चंद नेक दिल क़ाज़ी साहिबान ने बताया कि वो ख़ुद मनमानी फीस की वसूली के ख़िलाफ़ हैं ।

दिलचस्पी और और हैरत की बात ये भी है कि ये क़ाज़ी साहिबान अपने मफ़ादात के लिये कई मर्तबा शादी ख़ानों को लड़ाई झगड़ों के ज़रीया दंगल भी बना चुके हैं । क़ाज़ी साहिबान से मुलाक़ात के दौरान हम ने खासतौर पर ये बात नोट की कि वो एकदूसरे की शिकायात का कोई मौक़ा हाथ से जाने नहीं देते । एक दूसरे के ख़िलाफ़ उसे इसे इन्किशाफ़ात इन काज़ियों ने किये कि उसे तहरीर में नहीं लाया जा सकता । एक क़ाज़ी साहब से हम ने बात की तो बताया कि चंद दिन पहले निकाह पढ़ा कर आरहे हैं हम ने जब उन की फटी हुई शेरवानी और अजीब-ओ-गरीब हालत पर तवज्जा दिलवाई तो कहने लगे दूसरे क़ाज़ी ने ये कहते हुए उन पर हमला कर दिया था कि तो ने मेरे हलक़ा में कैसे निकाह पढ़ाया । बहरहाल अवाम का कहना है कि निज़ाम क़ज़ात को लालच-ओ-हिर्स की बीमारी में मुबतला चंद काज़ियों के हाथों इस्तिहसाल का शिकार होने से बचाना ज़रूरी है , इस के लिये सदर नशीन वक़्फ़ बोर्ड ख़ुसरो पाशा सख़्त से सख़्त क़दम उठाएं तो अवाम राहत की सांस लेंगे ।।