निज़ाम-ए-दकन के फ़ौजी कमांडर मोनीवर रेमंड की क़ब्र के करीब मंदिर

हमारे तारीख़ी शहर हैदराबाद फ़र्ख़ंदा बुनियाद ने जहां दुनिया की मुख़्तलिफ़ तहज़ीबों की नुमाइंदगी करने वाली सैंकड़ों शख्सियतों को अपने दामन में पनाह दी वहीं उन्हें मुहब्बत-ओ-मुरव्वत अमन-ओ-अमान दोस्ती-ओ-वफ़ा , अख़लाक़-ओ-किरदार रहमदिली-ओ-मिलनसारी , इस्सार-ओ-क़ुर्बानी गंगा जमनी तहज़ीब-ओ-तमद्दुन सख़ावत-ओ-दरिया दिल्ली इलम-ओ-अमल की इस सरज़मीन पर हमेशा हमेशा के लिये बस जाने का मौक़ा दिया ।

एक ज़माना एसा भी था जब लोग दुनिया में दौलतमंद तरीन हुक्मराँ तस्लीम किए जाने वाले दक्कन के हुकमरानों और उन के रहन सहन पर रशक किया करते थे और उन हुकमरानों के दरबारों से वाबस्तगी उन के लिये इफ़्तिख़ार का बाइस हुआ करती थी ।

हाँ हम बात कर रहे हैं जनरल माईकल जोशेम मेरी रेमंड की 25 सितंबर 1755 को फ़्रांस के सरेगनाक गा सकोनी में पैदा हुए उस फ़्रांस जनरल का 25 मार्च 1798 को हैदराबाद में इंतिक़ाल हुआ और उन्हें आसमान गढ़ ( आसमान घर ) मलक पेट दिलसुख नगर के करीब वाक़ै मोनीवर रेमंड माउंट जो अब मेसरम टेकरी कहलाता है पर दफ़नाया गया ।

ये टीला आसमान गढ़ के जुनूब में वाक़ै है और उस की सतह अतराफ़ की ज़मीन से सौ फिट ऊंची है । बाअज़ तारीख़ी कुतुब में रेमंड की मौत के बारे में कहा जाता है कि उन्हों ने 1793 में इस दुनियाए फ़ानी से कूच क्या ।

उन की क़ब्र एक पत्थर के बुरज की शक्ल में है जो 33 फ़िट ऊंची है इस क़ब्र के चबूतरा की लंबाई 180 फ़ुट और चौड़ाई 85 फ़ुट है इस क़ब्र पर कोई कुतबा नहीं हालाँकि इस के चारों तरफ़ कुतबा की लौहें रखी हुई हैं ।

जिन पर सिर्फ़ जी आर कुंदा है । क़ब्र के सामने तक़रीबन 8 मीटर के फ़ासले पर एक छोटा सा पलेट फ़ार्म बनाया गया जिस पर एक मुसत्तह सक़्फ़ 28 छोटे छोटे सतूनों पर खड़ी हुई है । उस की शक्ल यूनानी गिरजाघर की तरह लगती है ।

इस में क़ब्र की आरास्तगी का कुल अस्बाब मसला फ़ानुस रखा जाता है । लेकिन रेमंड की क़ब्र भी महिकमा आसार क़दीमा के तसाहुल का शिकार बनी हुई है और शरपसंद उस की जुमला 7.5 एकड़ अराज़ी के एक हिस्सा पर मौजूद चट्टान को ज़ाफ़रानी रंग करते हुए पूजापाट शुरू करदी गई है ।

ज़रूरत इस बात की है कि आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया होश में आए ख़ाब-ए-ग़फ़लत से बेदार हो ताकि हमारे कीमती-ओ-लाजवाब आसार का तहफ़्फ़ुज़ होसके ।

अब यहां शहर के दानिश्वर आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया से ये सवाल कर रहे हैं कि आख़िर शरपसंदों को तारीख़ी आसार को तबाह करने की इजाज़त किस बुनियाद पर दी जा रही है और अगर इजाज़त नहीं दी जा रही तो फिर हर तारीख़ी आसार के करीब गैर कानूनी तौर पर मंदिरों की तामीरको क्यों नहीं रोका जा रहा है ।

आसमान गढ़ की एक बुज़ुर्ग शख्सियत का कहना है कि एसा लगता है कि आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ज़ाफ़रानी रंग में रंग गया है जिस के नतीजा में इस के ओहदेदार तारीख़ी इमारतों के करीब नाजायज़ तामीरात को रोकने में ग़फ़लत बरत रहे हैं ।।