हैदराबाद 28 मई -ख़िदमते ख़ल्क़ सब से बड़ी इबादत है जज़बा इंसानियत और हमदर्दी ही इंसान को मख़लूक़ में मुमताज़ बनाती है । बीमारों की इयादत उन की तीमारदारी गरीबों की मदद मुहताजों की इआनत भूकों के लिए खाने का इंतेज़ाम और नंगों के लिए कपड़ों की फ़राहमी ऐसे नेक काम हैं जिस से अल्लाह अज़्ज़ो वजल अपने बंदों से बहुत ख़ुश होते हैं।
आज हम ऐसे तीन नौजवानों से वाक़िफ़ करवाते हैं जो हर सुबह निलोफर सरकारी हॉस्पिटल पहुँचकर वहां मरीज़ों की तीमारदारी में मसरूफ़ ज़रूरतमंद और मुस्तहिक़ मर्द और ख़वातीन में नाश्तादान तक़सीम करते हैं।
इन नौजवानों को इस बात से कोई वास्ता नहीं कि नाश्तादान हासिल करने वाला किस मज़हब रंग और नस्ल और ज़ात-पात से ताल्लुक़ रखता है क्यों कि इन का मानना है कि बीमारियों , मुसीबतों और परेशानियों का कोई मज़हब रंग और नस्ल और ज़ात-पात नहीं होती बल्कि इंसान इन चीज़ों से मुतास्सिर होते हैं।
हालिया अर्सा के दौरान इस सरकारी हॉस्पिटल में इंतेज़ामात , गुंजाइश से ज़ाइद मरीज़ बच्चों को रुजू किए जाने और तिब्बी आलात की अदमे मौजूदगी के नतीजे में कई नवमौलूद और मासूम बच्चे फ़ौत हो चुके हैं।
निलोफर हॉस्पिटल की ऐसी हॉल ते ज़ार का जायज़ा लेने जब वहां सुबह पहूंचे तो देखा कि मर्द और ख़वातीन की एक तवील क़तार है और तीन नौजवान इस क़तार में ठहरे लोगों को गर्म-गर्म उपमा और करी डाल कर देते जा रहे हैं । हम नौजवानों के करीब पहूंच गए जो बिला किसी मुआवज़े के हर रोज़ 400 अफ़राद में नाश्तादान तक़सीम करते हैं।
हम ने प्रवीण , रंगास्वामी और दासरी श्रीनिवास नामी इन नौजवानों से बात की । शहर से ही ताल्लुक़ रखने वाले इन नौजवानों ने जो ज़रूरतमंदों में इंतिहाई ख़ुश अख़लाक़ी के साथ नाश्तादान तक़सीम कर रहे थे । बताया कि इस इंसानियत दोस्त काम के पीछे कोई और शख्सियत कारफ़रमा है और उन्हीं की हिदायत पर वो मरीज़ों की देख भाल करने वाले अफ़राद में सुबह का खाना तक़सीम करते हैं।
हमारे इसरार पर इन नौजवानों ने बताया कि दिल्ली में मुक़ीम साई दास गुप्ता , इस नेक काम के पीछे कारफ़रमा असल ताक़त है और हर रोज़ चार सौ लोगों को मुफ़्त नाशते की फ़राहमी के मसारिफ़ वही बर्दाश्त करते हैं हमारे इस सवाल पर कि आख़िर वो एसा क्यों करते हैं?
तीनों नौजवानों ने एक आवाज़ हो कर कहा कि साई दास गुप्ता जिन्हें वो लोग प्यार से बाबाजी कहते हैं किसी काम से शहर आए थे और इत्तिफ़ाक़ से नीलोफर हॉस्पिटल में भी इन का आना हुआ उस वक़्त उन्हों ने मरीज़ बच्चों के साथ रहने वाले मर्द और ख़वातीन की हॉल ते ज़ार देख कर फैसला किया कि हर रोज़ सुबह का नाश्तादान वो मुफ़्त में तक़सीम करेंगे।
आज शहर में उस्मानिया , गांधी , निलोफर हॉस्पिटलों के इलावा ज़चगीख़ाना ,कोरंटी , सरोजनी हॉस्पिटल जैसे मुक़ामात पर मुस्लिम तंजीमे गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद कर सकती हैं इस तरह के इक़दामात अब्नाए वतन को करीब करने का एक ज़रीया होते हैं काश हम कम अज़ कम किसी को ठंडा पानी पेश करते हुए इस के सूखे हलक़ को तर कर सकें।