हैदराबाद 21 अक्तूबर (सियासत न्यूज़) 20 वीं सदी के निस्फ़ के बाद उर्दू की जुग़राफ़ियाई हदूद तो फैल रही हैं, लेकिन लिसानी सरहदें ख़ातिरख़वाह वुसअतें नहीं इख़तियार कर रही हैं, जिस की अहम वजूहात में से एक ये भी है कि उलूम जदीदा की नई इस्तिलाहात का तर्जुमा रिवाज नहीं पा रहा है ।
उर्दू की बक़ा और तरवीज के लिए आलमी सतह पर मुख़्तलिफ़ ज़ावियों से काम की ज़रूरत ही, वर्ना शायद उर्दू दोस्त अपने लिसानी और अदबी विरसे को नई नसल तक नहीं पहुंचा पाइंगी। इन ख़्यालात का इज़हार उर्दू के शहरा-ए-आफ़ाक़ उस्ताद प्रोफ़ैसर गोपी चंद नारंग ने जनाब ज़ाहिद अली ख़ां मुदीर सियासत और अल्लामा एजाज़ फ़र्ख़ के साथ एक मुशतर्का नशिस्त में किया। प्रोफ़ैसर गोपी चंद नारंग ने कहा कि उर्दू अपना मुस्तक़बिल ख़ुद नहीं संवार सकती, ये काम उर्दू के मुअम्मारों का है ।
उन्होंने कहा कि कोई फ़र्द या तन्हा-ए-किसी इदारा का इस मुहिम को सर करना मुहाल ही, इसके लिए सब को शाना बह शाना मुशतर्का जहद करना होगा और इस ज़िमन में महबान उर्दू को किसी किस्म का पस-ओ-पेश नहीं होगा। जनाब ज़ाहिद अली ख़ां ने कहा कि इबतिदाई सतह पर उर्दू की तालीम का ना होना भी इन हालात का ज़िम्मेदार है ।
उन्होंने कहा कि उर्दू जामिआ का क़ियाम बेमानी होकर रह जाएगा, अगर उस की तलब और रसद मुसावी ना हो। साथ ही ये भी ज़रूरी है कि उर्दू ज़रीया से तालीम हासिल करने वालों को रोज़गार से मरबूत किया जाये।
अल्लामा एजाज़ फ़र्ख़ ने कहा कि ये अमर हैरतअंगेज़ है कि मर्कज़ के सानवी तालीम के कोर्स सी बी ऐस ई में तो इख़तियारी मज़मून की हैसियत से उर्दू की तालीम की गुंजाइश रखी गई है, लेकिन आंधरा प्रदेश में उर्दू को दूसरी सरकारी ज़बान की हैसियत हासिल होने के बावजूद रियास्ती हुकूमत ने ऐस एससी में ऐसी कोई गुंजाइश फ़राहम नहीं की है।
उन्होंने जनाब ज़ाहिद अली ख़ां को मुतवज्जा करते हुए कहा कि उर्दू दां तबक़ा के दरमयान अख़बार सब से ज़्यादा पढ़ा जाने वाला जरीदा है। चुनांचे आलमी उफ़ुक़ से नुमाइंदा ऐडीटर और उर्दू स्कालरस की एक कान्फ़्रैंस सियासत के ज़ेर-ए-एहतिमाम मुनाक़िद होनी चाहीए और इस की क़रारदादों पर मंज़ूरी के लिए इक़दाम किए जाने चाहिए।
जनाब ज़ाहिद अली खान ने अल्लामा की तजवीज़ से इत्तिफ़ाक़ करते हुए इस कान्फ़्रैंस का नवंबर के आख़िरी हफ़्ता मैं इनइक़ाद का फ़ैसला किया। इस ज़िमन में इंतिज़ामी कमेटी की तशकील ज़ेर-ए-ग़ौर है।