गांधी मैदान में 15 फरवरी को मुनक्कीद कारकुनान कोन्फ्रेंस की तैयारी में लगे साबिक़ वजीरे आला नीतीश कुमार पर दोबारा सीएम बनने का दबाव बढ़ता जा रहा है। उन्हें यह यकीन दिलाने की कोशिश हो रही है कि कोन्फ्रेंस को अगर वह जदयू के आला लीडर की जगह वजीरे आला की हैसियत से खिताब करेंगे तो इसका कारकुनान पर बेहतर असर पड़ेगा ही, वहीं पार्टी हिमायतों के दरमियान भी ओपजिटिव इशारा जाएगा। नीतीश कुमार जिस अंदाज में इस कोन्फ्रेंस की तैयारी के लिए खुद से जुटे हैं, माना जा रहा है कि यह उनकी ताक़त का मुजाहिरा का मौका भी होगा।
गुजिशता कुछ माह में वजीरे आला जीतन राम मांझी अपने मुतनाज़ा बयानों की वजह से सुर्खियों में रहे हैं। इस वजह से पार्टी कियादत को हालात का सामना करना पड़ रहा है।
वहीं, लोकसभा इंतिख़ाब में नीतीश कुमार से बेहतर मुजाहिरा करने वाले लालू प्रसाद ने सूबे में खुद को एक अहम सियासी ताक़त के तौर में कायम कर लिया है। शायद यही वजह है कि नीतीश कुमार गुजिशता नवंबर माह से सीधे कारकुनान से मुखातिब हो रहे हैं। जिलों में कारकुनान कोन्फ्रेंस के बाद अब 15 फरवरी को रियासती सतह पर कारकुनान कोन्फ्रेंस की तैयारी में हैं। पार्टी लीडरो के अलावा विधानमंडल में जदयू के मेंबरों, मुखतलिफ़ कमीशन के ओहदेदारों , पार्टी सेल से जुड़े लीडरों के साथ अपने रिहाइशगाह पर बैठकें कर कोन्फ्रेंस की तैयारी के सिलसिले में हिदायत दे रहे हैं।
पार्टी ज़राये ने बताया कि इस दौरान गुजिशता तीन माह में नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी के बीच दूरी बढ़ती ही गई है। मांझी ने गुजिशता दिनों दलितों और महादलितों के दरमियान का अंतर खत्म करने की एलान कर नीतीश कुमार के फैसलों को भी पलटना शुरू कर दिया है। मांझी की दिनों दिन बढ़ती मक़्बुयलियत, खशकर रियासत के 16 फीसद दलितों में बढ़ती उनकी पैठ ने नीतीश कुमार पर दोबारा वजीरे आला बनने का दबाव बनाने वालों को फिर से सरगर्म कर दिया है।