नुक़्सान एक हक़ीक़त और फ़ायदा महेज़ एक ख़्याल, एक नज़रिया

2G स्पेक्ट्रम और कोयला बलॉक तख़सीसात , क़ीमत के ताय्युन पर तनाज़आत पर इज़हार-ए-ख़्याल केलिए बुनियादी उसोल से वाक़फ़ीयत(जानकारी ) ज़रूरी , चीफ़ जस्टिस हिंदूस्तान का ख़िताब हिंदूस्तान के चीफ़ जस्टिस होमी सरोश कपाडि़या ने आज कहा कि नुक़्सान एक हक़ीक़त का मामला है जबकि फ़ायदा या मुनाफ़ा की बात एक नज़रिया और ख़्याल पर मबनी है। इन के ये रिमार्कस क़ुदरती वसाइल की क़दर-ओ-क़ीमत(मूल्य तथा मूल्य निर्दिष्ट) मुशख़्ख़स करने पर पैदा शूदा तनाज़आत के तनाज़ुर(संदर्भ) में मंज़रे आम पर आए हैं।

उन्हों ने 2G इसपेकटरम की तख़सीसात पर होने वाले इमकान ख़सारा या कोयला ब्लॉक्स की तख़सीसात पर ख़ानगी कॉरपोरेट इदारों (स्वदेशी कॉर्पोरेट संस्थाओं )को है होने वाले फ़ायदे से मुताल्लिक़ सी ए जी की रिपोर्टस पर पैदा शूदा तनाज़आत(संदर्भ) का रास्त हवाला नहीं दिया बल्कि क़ीमत के ताय्युन पर पैदा शूदा तनाज़आत पर बज़ात-ए-ख़ुद अपनी तवज्जु मबज़ूल किया है।

चीफ़ जस्टिस औफ़ इंडिया ने मुल़्क की मआशी सूरत-ए-हाल पर वज़ीर-ए-आज़म के गुज़िश्ता रोज़ क़ौम से किए गए ख़िताब की सताइश(सराहना) की और कहा कि उन्हों ने (डाँक्टर मनमोहन सिंह) ने मुल्क को बदतरीन सूरत-ए-हाल से बाहर निकालने की कोशिश की है। अगर हम इस पर तवज्जु(ध्यान‌) ना देते तो हमारे नौजवान इस सूरत‍- ए‍- हाल(स्थिति ) से मुतास्सिर (प्रभावित)होसकते थे।

जस्टिस कपाडि़या ने कहा कि बसाऔक़ात हम बाअज़ (टी वी) प्रोग्राम्स देखते हैं और हम अपने नज़रियात क़ायम करलेते हैं जबकि हम में से ऐसे कितने हैं जो क़दर-ओ-क़ीमत के ताय्युन के उसूलों से वाक़िफ़ होते हैं। क़ीमतों के ताय्युन पर आज बेशुमार तनाज़आत(अनगिनत विवादों) पर बेहस-ओ-मुबाहिसे जारी हैं लेकिन क़ीमतों के ताय्युन का बुनियादी तरीका-ए-कार ये है कि ख़सारा एक हक़ीक़त पर मबनी मुआमला होता है जबकि फ़ायदा या मुनाफ़ा महिज़ एक ख़्याल-ओ-नज़रिया का मुआमला होता है।

उन्हों ने मज़ीद कहा कि चुनांचे अगर हम इन उसूलों को समझेंगे तो हम ऐसे मसाइल पर फ़ैसला करने के अहल होसकते हैं। आप ख़ुद इस उसूल पर तनाज़ग़ात को परखने की कोशिश करें। मैं मज़ीद कुछ कहना नहीं चाहते। इस सूरत-ए-हाल में हमारे नज़रियात मज़ीद ठोस होंगे और कहीं कोई झोल‌ नहीं होगा।

जस्टिस होमी सरोश कपाडि़या आज यहां एशिया के कॉरपोरेट माहौल में तबदीलीयां और इक़तिसादी तरक़्क़ी के ज़ेर-ए-उनवान एक बैन-उल-अक़वामी कान्फ़्रैंस से ख़िताब कररहे थे। इक़तिसादी ख़वांदगी की ज़रूरत पर वज़ाहत करते हुए उन्हों ने कहा कि एक आम आदमी को मालीयाती वफ़ाक़ीयत बमुक़ाबला वसाईली वफ़ाक़ीयत के दरमयान फ़र्क़ समझाने की ज़रूरत है।

चीफ़ जस्टिस ने कहा कि मुवासलात के इस जदीद दौर में अवामी बिरादरी को ये समझाने की ज़रूरत है कि आया बाज़ वसुलयात में कमी के तहत अशीया(वस्तुओं ) की भारी क़ीमतें इफ़रात-ए-ज़र में ज़्यादा इज़ाफ़ा की हैं या फिर इस से ज़्यादा भारी बजट ख़सारा का सबब बनती हैं। सब से अहम ये बात भी है कि आया। क़ानून की हुक्मरानी दरअसल मआशी तरक़्क़ी को फ़रोग़ देती है या इस में रुकावट बनती है।