नुमाइंदा ख़ुसूसी-हैदराबाद शहर की सक़ाफ़्ती और मआशी तरक़्क़ी यक़ीनन निज़ाम साबह मीर उसमान अलीख़ां बहादुर की मरहून-ए-मिन्नत है । उन के दौर अह्द में मआशी और सक़ाफ़्ती शोबा के फ़रोग़ के लिए किए गए इक़दामात के समरात से आज तक हैदराबाद मुस्तफ़ीद होते आरहे हैं । हुज़ूर निज़ाम मीर उसमान अली ख़ां ने अपनी रियासत में इलम-ओ-हुनर को काफ़ी अहमियत दी थी और तालीमी शोबा की हौसला अफ़्ज़ाई में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी । आला हज़रत ने अपनी दूर अंदेशी से हैदराबाद को दुनिया के जदीद तरीन शहरों की फ़हरिस्त में शामिल करवाया । उन के दौर-ए-हकूमत में रियासत हैदराबाद ने हर शोबा हाय हयात में तरक़्क़ी की और माली एतबार से भी रियासत काफ़ी मुस्तहकम थी ।
उस की एक मिसाल 1938 में उस्मानिया ग्रैजूएटस एसोसी उष्ण की जानिब से शुरू करदा नुमाइश मसनूआत मुल्की है जो अब कुल हिंद सनअती नुमाइश की हैसियत से जानी जाती है । ये नुमाइश मईशत और सक़ाफ़्त का बहतरीन इमतिज़ाज है जो मीर उसमान अली ख़ां बहादुरने अपनी रियाया की सहूलत और फ़नकारों की मेहनत को ज़हन में रखते हुए बेमिसाल मंसूबा बंदी के साथ शुरू की थी क्यों कि आला हज़रत अपनी रियाया के हमदरद ही नहीं बल्कि फ़नकारों के क़द्रशनास भी थे । इस नुमाइश का मक़सद रियासत हैदराबाद दक्कन मेंतय्यार होने वाली सनअती एशिया-ए-को अवाम की नज़र में लाना और इस से होने वाली आमदनी को क़ौम की तालीम पर सिर्फ करना था ।
यक्म जनवरीता 15 फरवरी जारी रहने वाली नुमाइश अपने आग़ाज़ के वक़्त महिज़ 10 यौम तक जारी रहती थी । साल 1938 में शुरू की गई थी इस नुमाइश को अब 73 साल का अर्सा मुकम्मल होने जा रहा है । इसतवील अर्सा में इस सनअती नुमाइश ने दुनिया के तूल-ओ-अर्ज़ में मक़बूलियत हासिल करली और आज शहर हैदराबाद की सक़ाफ़्ती पहचान बनी हुई है । सनअती नुमाइश देढ़ माह के मुख़्तसर अर्सा तक क़ायम रहती है । इबतिदाई सालों में इस नुमाइश मसनूआत मुल्की को एसा फ़रोग़ मिलने लगा कि सारे मुल्क में इस की शौहरत फैल गई । ये नुमाइश इबतिदाई चंद सालों तक बाग़ आम्मा में मुनाक़िद की जाती थी लेकिन बाद में मुअज़्ज़मजाहि मार्किट के करीब एक वसीअ-ओ-अरीज़ 23 एकड़ अराज़ी पर क़ायम की जाने लगी और इस जगह का नाम नुमाइश मैदान से मौसूम होगया ।
दूसरी तरफ़ सारे मुल्क में शौहरत की वजह से ये नुमाइश आहिस्ता आहिस्ता कुल हिंद सनअती नुमाइश से मौसूमहोगई जिस में रियासत के अज़ला के इलावा मुख़्तलिफ़ रियासतों जैसे उत्तरप्रदेश , कश्मीर , राजिस्थान और मद्रास वगैरह के कारीगरों की जानिब से तय्यार करदा दस्ती एशिया-ए-औरदीगर मसनूआत के स्टालस लगाए जाते हैं । आज से तक़रीबा 73 साल क़बल बाग़ आम्मामें शुरू की गई इस नुमाइश में सब से पहले मुख़्तलिफ़ एशिया-ए-के 50 स्टालस लगाए गए थे । रफ़्ता रफ़्ता इस नुमाइश ने कुल हिंद सनअती नुमाइश की शक्ल इख़तियार करलीताहम साल 2009 में फिर से उसे साबिक़ नाम नुमाइश से मौसूम कर दिया गया ।
कसीर तादाद में लोगों के आने की वजह से नुमाइश मैदान तफ़रीही मुक़ाम भी बन गया जहां खेल कूद और करतब बाज़ी के मुज़ाहिरे से भी लोगों को महज़ूज़ किया जाता है । नुमाइश के दौरान ख़वातीन के लिये एक दिन मुख़तस रहता है । इस दिन मर्दों के दाख़िला पर पाबंदी रहती है चूँकि मसनूआत मुल्की का हमारी मशरिक़ी तहज़ीब से बड़ा गहिरा ताल्लुक़ है इस लिए ये सालाना नुमाइश हमारी मुशतर्का तहज़ीब का जुज़ बन चुकी है । इस साल नुमाइशमें 2400 स्टालस लगाए जा रहे हैं । बताया जाता है कि इस साल अवाम की ज़ाइक़ादारडिश को ज़हन में रख कर नुमाइश में हलीम का भी स्टाल लगाया जाएगा ।
इलावा अज़ींसलामती के नुक़्ता-ए-नज़र से 23 कैमरे नसब किए गए हैं और सेकोरेटी रुम में तैनातअमला सारी नुमाइश पर नज़र रखेगा । नुमाइश में दाख़िला के लिए टिकट की कीमत 10 रुपय रखी गई है । तातीलात के दौरान ये कीमत 20 रुपय होगी । तीन साल से कमउमर बच्चों का दाख़िला मुफ़्त रहेगा जब कि नुमाइश के औक़ात शाम 4 बजे से रात 10-30 बजे तक होंगे । तातीलात के मौक़ा पर नुमाइश रात 11 बजे तक जारी रहेगी । इस तारीख़ी नुमाइश का हर रोज़ 50 हज़ार अफ़राद मुशाहिदा करते हैं जिन में मुक़ामी अवाम के इलावागैर मुल्की स्याह भी शामिल हैं ।
नुमाइश सोसाइटी अपने अव्वलीन मक़सद यानी समाज में तालीम को आम करने के तहत नुमाइश का सिलसिला जारी रखे हुए है । सरे दसत इस के तहत 23 तालीमी इदारे और 3 बी एड कॉलिज बड़ी कामयाबी के साथ चलाए जा रहे हैं । बहरहाल हुज़ूर निज़ाम नवाब मीर उसमान अली ख़ां की जानिब से रियासत के अवाम के लिए शुरू करदा इस नुमाइश से आज मुक़ामी अवाम के साथ गैर मुल्की स्याह भी मुस्तफ़ीद होरहे हैं । मीर उसमान अली ख़ां बहादुर की ख़िदमात नाक़ाबिल फ़रामोश हैं जिन्हों ने अपनी ग़ैरमामूली दूर अंदेशी का मुज़ाहरा करते हुए आज अपनी गैर मौजूदगी में भी अपनी रियाया की ख़िदमात का सिलसिला जारी रखा है ।।