जर्मनी और इस्राएल घनिष्ठ साझेदार हैं, लेकिन ईरान के मुद्दे पर दोनों के बीच मतभेद हैं। जर्मनी चाहता है कि ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को बरकरार रखा जाए। वहीं इस्राएल ईरान के साथ हुई डील का विरोध करता रहा है। अमेरिका इस डील से बाहर निकल चुका है।
इस्राएल को आशंका है कि परमाणु समझौते की आड़ में ईरान परमाणु हथियार बनाने की क्षमता हासिल कर लेगा। इस्राएल चाहता है कि जर्मनी ईरान के साथ जारी कारोबार को बंद करे।
बर्लिन में इस्राएली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने दावा किया कि प्रतिबंधों में ढील देने से ईरान को जो पैसा मिल रहा है, वह पैसा तेहरान इलाके में विवादों को भड़काने में खर्च कर रहा है।
नेतन्याहू से बातचीत के बाद पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा कि जर्मनी इस्राएल की चिंताओं से वाकिफ है। मैर्केल के मुताबिक जर्मनी और इस्राएल दोनों चाहते हैं कि ईरान परमाणु हथियार विकसित न करे।
जर्मन चांसलर पहले ही कह चुकी हैं कि संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में हुए परमाणु समझौते से पहले ईरान परमाणु हथियार विकसित करने के करीब पहुंच चुका था। डील होने के बाद से ईरान के परमाणु कार्यक्रम में ज्यादा पारदर्शिता आई है।
साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस्राएली प्रधानमंत्री ने जर्मन चांसलर के इस रुख का खंडन किया। नेतन्याहू ने कहा कि डील के जरिए तेहरान को भविष्य में असीमित यूरेनियम संवर्धन की अनुमति मिल गई है।
इस्राएली प्रधानमंत्री ने इस परिस्थिति को अस्वीकार्य बताया। पत्रकारों के बीच सामने आए इन मतभेदों के बावजूद नेतन्याहू ने कहा कि जर्मनी और ईरान के संवाद से इस्राएल को कोई समस्या नहीं है।
मैर्केल ने माना कि ईरान डील के चलते बर्लिन और तेल अवीव एक दूसरे से आंखें नहीं मिला पा रहे हैं। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि सीरिया के संघर्ष में ईरान की भूमिका को लेकर दोनों चिंतित हैं, हर मुद्दे पर समझौता नहीं किया जाता, लेकिन हम दोस्त हैं और दूसरे की स्थिति को समझने की इच्छा मौजूद है।
नेतन्याहू ने इस्राएल की सुरक्षा और यहूदी विरोध की भावना से लड़ने के लिए जर्मनी की वचनबद्धता की तारीफ की। लेकिन इस्राएली प्रधानमंत्री ने फिर कहा कि दुनिया के सामने इस वक्त सबसे बड़ा खतरा “कट्टरपंथी इस्लाम” है।
नेतन्याहू ने आरोप लगाया कि ईरान लगातार इस्राएल की बर्बादी का आह्वान कर रहा है। उनके मुताबिक ईरान इस्लामिक जगत के भीतर “धार्मिक युद्ध” शुरू करना चाहता है।
अगर ऐसा हुआ तो यूरोप एक बार फिर जान बचाने की कोशिश करते शरणार्थियों की बड़ी संख्या से जूझेगा। शरणार्थी संकट के चलते अंगेला मैर्केल खुद अपने ही देश में राजनीतिक रूप से चुनौतियों का सामना कर रही हैं।
प्रेस वार्ता के दौरान एक इस्राएली पत्रकार ने मैर्केल से पूछा कि जर्मनी में अब तक येरुशलम को इस्राएल की राजधानी के तौर पर मान्यता क्यों नहीं दी है? इसके जवाब में जर्मन चांसलर ने कहा कि जर्मनी मध्यपूर्व में दो देशों वाले फॉर्मूले का समर्थन करता है, एक इस्राएल और दूसरा फलस्तीन। मैर्केल के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय संधियां येरुशलम को इस्राएल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने से रोकती हैं।
इसी दौरान एक जर्मन पत्रकार ने नेतन्याहू से पूछा कि इस्राएल कब गजा पट्टी में फलीस्तीनी इलाकों पर कब्जा छोड़ेगा? इसके जवाब में नेतन्याहू ने कहा, इस्राएल यह नहीं चाहेगा कि अतिरिक्त फलीस्तीनी इलाके का इस्तेमाल हमारे खिलाफ हो। शांति न होने की असली वजह यह है कि फलीस्तीनी यहूदी राष्ट्र को मान्यता देने से इनकार करते हैं।