‘नेहरू को सताता था तख्तापलट का खौफ’: वी. के. सिंह का नया खुलासा?

साबिक आर्मी चीफ वी. के. सिंह ने अपनी किताब में दावा किया है कि मुल्क के पहले वज़ीर ए आज़म जवाहरलाल नेहरू को फौजी तख्तापलट का ‘खौफ’ था और उन्हें सरहदों पर चीनियों की मौजूदगी से ज़्यादा उस वक्त के आर्मी चीफ जनरल थिमैया की मकबूलियत की फिक्र ज्यादा सताती रहती थी।

सिंह ने अपनी स्वानेह (Autobiography) ‘करेज ऐंड कन्विक्शन’ में लिखा है, ‘आजादी के बाद से मुल्क में आली सियासी कियादत फौजी तख्तापलट के खद्शे से डरा-सहमा रहा है। यह किसी से छुपा नहीं है कि नेहरू के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग फौजी तख्तापलट के बनिस्बत उनके खौफ का फायदा उठाते थे और सिविल और् फौजी रिश्ते की तरक्की होते वक्त उन लोगों ने इस रिश्ते में सेंध लगाना शुरू कर दिया।’ सिंह ने अपनी स्वानेह मुसन्निफ और फिल्मसाज कुणाल वर्मा के साथ लिखी है।

उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान के पहले डिफेंस मिनिस्टर के तौर पर सरदार बलदेव सिंह के इलेक्शन ने मुस्तकबिल के लिए हिंदुस्तान की मुहिम तय कीं। सिंह ने कहा कि सरदार बलदेव सिंह अपनी पॉलिटिकल महारत के लिए ज्यादा जाने जाते थे ना कि फौजी महारत के लिए। साबिक आर्मी चीफ ने यह भी कहा कि अगर सिर्फ नेहरू की चली होती तो फील्ड मार्शल के एम करिअप्पा कभी भी आर्मी चीफ नहीं बन पाते।

उन्होंने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी को अपने वालिद से न सिर्फ मुल्क की सत्ता मिली थी, बल्कि वह भी अपने उपर किसी को देख नहीं सकती थीं।

साबिक आर्मी चीफ ने लिखा है, ‘एक शख्स के तौर पर जनरल थिमैया की मकबूलियत की वजह से वज़ीर ए आज़म को सरहद पर चीनियों की मौजूदगी से ज्यादा बुरे ख्वाब आते थे। अक्तूबर 1962 में जब हमला हुआ तो हिंदुस्तानी फौजी ‘ऑपरेशन अमर’ में शामिल थी जहां वे मकान बनाने का काम कर रहे थे जबकि हमारे हथियारों के कारखाने कॉफी बनाने की मशीन बना रहे थे।’