नोएडा की तर्ज पर रांची में भी चले सरकारी अस्पताल

यह एक तरह का कटाक्ष है कि कोई जम्हूरियत, जो सबके लिए एक ही सुलूक की बात करता है, वह अपने तमाम शहरियों को फ्री डॉक्टरी सहूलत देने में आनाकानी कर रहा है। फ्री तालीम व सेहत सहूलत जम्हूरियत इक्तिदार निज़ाम की जिम्मेवारियां हैं।

दूसरी तरफ झारखंड हुकूमत की मंसूबा फ्री डॉक्टरी अदारों के प्राइवेट करने की बात की है। सदर व म्यूनिसिपल अस्पतालों को पीपीपी मोड में देने के लिए यह दलील दिया जा रहा है कि सरकार के पास इसके एहटेताम के लिए मौजूदा फंड व कूवत नहीं है। सवाल यह है कि अपने अस्पतालों के चलाने में नकाबिल हुकूमत आखिर रियासत को बेहतर की ओर कैसे ले जायेगी, रियासत का ऑपरेशन कैसे होगा?

दुनिया के कई मुल्क अपने शहरियों को फ्री सेहत की सहूलत मुहैया कराना कानूनी ज़िम्मेदारी मानते हैं। लैटिन अमेरिकन गरीब मुल्कों के अलावा यूरोप के अमीर मुल्क भी ऐसा करते हैं। एक्वाडोर, क्यूबा, ब्राजील, थाइलैंड व कोस्टा रिका, स्विटजरलैंड, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया व यूनाइटेड किंगडम अपने शहरियों को बेहतर व सस्ती सेहत सहूलत देने को पाबंद हैं। अपने ही मुल्क में यूपी के नोएडा वाकेय डॉ भीमराव आंबेडकर मल्टी-स्पेशियलिटी हॉस्पिटल सरकारी अस्पताल एक मिसाल है। यह अस्पताल किसी तीन सितारा होटल जैसा है।

मरीजों के लिए यहां ओपीडी का रजिस्ट्रेशन फीस सिर्फ एक रुपये है। पैथोलोजी जांच फ्री है। अल्ट्रासाउंड के लिए सिर्फ सौ रुपये लिये जाते हैं। मरीजों के लिए यहां तीन सौ बेड हैं। इस अस्पताल के चीफ़ डॉक्टर ओहदेदार डॉ आरएनपी मिश्र ने पूछने पर बताया कि अस्पताल चलाना हो, तो फंड की कमी का रोना नहीं रोया जा सकता।

जब कभी हुकूमत का फंड कम पड़ा, उन्होंने आम लोगों से डोनेशन लेकर अस्पताल चलाया है। डॉ मिश्र का मानना है कि किसी काम को करने में ईमानदारी व लगन सबसे बड़ी चीज है। डॉ मिश्र से झारखंड में सरकारी अस्पतालों के प्राइवेट करने की बात बताने पर उन्होंने कहा कि उनके ख्याल से प्राइवेट करने से खास कर गरीबों को बेहतर व सस्ती सेहत सहूलत फराहम नहीं करायी जा सकती। प्राइवेट करने से अस्पताल में सहूलत बढ़ सकती है, पर यह सहूलत आम लोगों की पहुंच से बाहर हो जायेगी।

झारखंड में अस्पतालों का निजकारी

सदर (सुपर स्पेशियलिटी) अस्पताल, रांची के लिए सरकार व आइएफसी के दरमियान हुए करार के तहत इसे प्राइवेट हाथों में सौंपा जाता है, तो 20-30 फीसद बेड बीपीएल खानदानों की फ्री डॉक्टरी जांच के लिए रिजेर्व होने की बात भी बेमानी हो जायेगी। अगर गाइड लाइन का खिलाफवरजी होता है, तो सजा किसको और क्या होगी? गरीबों को प्राइवेट अस्पताल के मेन दरवाजे से दाखिल कराने के लिए वहां कौन खड़ा रहेगा? ये कुछ सवाल हैं, जिस पर झारखंड की नयी हुकूमत को सोचना होगा।