अलीगढ़ शहर की पहचान ताला उद्योग के रूप में पिछले तीन सदी से बनी हुई है। लेकिन केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले से इस उद्योग को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। ताला उद्योग की हालात इस कदर ख़राब हो चुकी है कि यहाँ के लाखों मज़दूर परिवार खाने तक के लिए हाथ फ़ैलाने को मज़बूर हैं।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से महज 150 किमी दूर अलीगढ़ में देश के कुल ताला उत्पादन का 75 फीसदी उत्पादन होता है इसलिए शहर को ताला नगरी भी कहा जाता है। अलीगढ़ के ताले उच्च गुणवत्ता की पहचान बन चुके हैं। अब निष्क्रिय हो चुके संगठन अखिल भारतीय ताला उत्पादक संघ के पूर्व अध्यक्ष तथा सपा विधायक जफर आलम ने बताया, गैर पंजीकृत इकाईयों समेत 90 फीसदी छोटी और घरेलू इकाईयां या तो बंद हो चुकी हैं या बंद होने की कगार पर हैं। उन्होंने आगे बताया, इस नगदी आधारित कारोबार को चलाने में शहर के लगभग एक लाख लोग सक्रिय तौर पर शामिल हैं और यह सोचकर ही सिहरन आती है कि तब क्या हालात होंगे जब रोजगाररहित ये लोग उद्देश्यहीन होकर भटकेंगे।
तालानगरी औद्योगिक विकास संगठन के महासचिव सुनील दत्त ने बताया, उद्योग को खड़ा करने के लिए बैंक पैसा देने की स्थिति में नहीं हैं और नगदी आधारित अर्थव्यवस्था को इतने कम समय में प्लास्टिक मनी आधारित अर्थव्यवस्था में बदलना संभव नहीं है। तालों और तांबे के अन्य उत्पादों का निर्यात करके यह उद्योग सालाना 210 करोड़ रूपये की कमाई करता है। लगभग 6,000 घरेलू और मझौली ताला इकाईयों के साथ ताला उद्योग शहर की आर्थिक बुनियाद बनाता है। लेकिन पूर्वी एशियाई देशों मसलन चीन, ताईवान और कोरिया में बनने वाले सस्ते तालों के बाजार में आने और धातु की कीमतों में दोगुना इजाफा होने से यहां का ताला उद्योग संकट के दौर से गुजर रहा है।
छेरत इण्डस्टियल एरिया डेवलपमेंट एसोसिएशन के महासचिव मीर आरिफ अली ने कहा कि उन्हें नहीं पता है कि विमुद्रीकरण के क्या दीर्घकालिक परिणाम होंगे, लेकिन मौजूदा हालात बेहद भयावह हैं और अलीगढ़ में तालों का 80 प्रतिशत काम नकदी की किल्लत के कारण रुका हुआ है।अलीगढ़ में तालों तथा पीतल उत्पादों का सालाना कारोबार 210 करोड़ रुपये से ज्यादा का है और यह जिले की आर्थिक बुनियाद भी है। जिले में छह हजार से ज्यादा लघु तथा मध्यम उद्योग इकाइयां ताला निर्माण कार्य में लगी हैं। हालांकि चीन, ताइवान और कोरिया निर्मित अपेक्षाकृत सस्ते तालों की बाजार में आमद से देशी ताला उद्योग को नुकसान हुआ है। इन विदेशी ब्राण्ड के तालों के साथ प्रतिस्पर्धा में हारे छोटे ताला निर्माता अपना कारोबार बंद करने को मजबूर हुए। वहीं, बड़े ताला उत्पादकों ने संकट से निपटने के लिये नयी प्रौद्योगिकी की तरफ रुख कर लिया।
अलीगढ़ के ताला निर्माताओं ने शहर में अपने लिये एक स्पेशल इकोनामिक जोन :एसईजेड: बनाने की मांग की थी। वित्त मंत्रालय की सैद्धान्तिक सहमति के बावजूद यह परियोजना आगे नहीं बढ़ सकी। अलीगढ़ में मुगलकाल से ही तालों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। शुरू में यह असंगठित उद्योग था लेकिन बाद में अंग्रेजों ने इसे संगठित करके प्रमुख आर्थिक गतिविधि में तब्दील किया।