नोटबंदी की मार कमोबेश सभी उद्द्योगों को झेलनी पड़ी है। दिल्ली के सरदर बाज़ार से ले कर अलीगढ़ का ताला उद्योग बुरी तरह नोटबंदी की चपेट में आगया है। देश की पूरी अर्थव्यस्था संभालने वाला व्यपारी वर्ग ले से कर दिहारी मजदूर के लिए नोटबंदी कयामत साबित हुई है।
देश भर में विख्यात भिवंडी का पावरलूम सेक्टर इन दिनों नोटबंदी की मार झेल रहा है। आर्थिक मंदी के कारण पहले से ही मुसीबत का सामना कर रहे पावरलूम करखानों में नोटबंदी का बहुत बुरा असर पड़ा है। शहर की हजारों पावरलूम ईकाइयां बन्द होने की कगार पर आ गई हैं।
मुंबई से सटे भिवंडी शहर की पहचान टेक्सटाइल उद्योग की वजह से है. यहां तकरीबन 8 लाख पावरलूम कारखाने हैं। यहां की लगभग 90 फीसदी आबादी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लूम कारोबार से जुड़ी है, जिसके चलते इसे कभी एशिया का मैनचेस्टर तो कभी महाराष्ट्र का मैनचेस्टर जैसे विशेषण दिए जाते हैं। सरकार के पांच सौ और एक हजार के पुराने नोट बंद किए जाने के बाद उपजी नगदी की समस्या से लूम कारोबारी परेशान हैं।
पावरलूम में काम करने वाले अधिकतर मजदूर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के रहने वाले हैं। नोटबंदी की सबसे ज्यादा मार इन्हीं मजदूरों पर पड़ी है। कारोबारियों के पास मजदूरी देने के लिए नगदी नहीं है इसलिए यहाँ कार्यरत मजदूरों को रहने, खाने की दिक्कतें आने लगी हैं। कारोबारी चाह कर भी इन मजदूरों की मदद नहीं कर पा रहे हैं। जैसे जैसे दिन बीतता जा रहा है, मजदूर निराश होकर अपने गांवों को लौटने लगे हैं।
कारोबारियों को आशंका है कि मजदूरों का पलायन अगर जल्द ना रोका गया, तो भिवंडी का पूरा कपड़ा उद्योग ही बर्बाद हो जाएगा। पावरलूम एवं सायजिंग उद्योग से जुड़े पूर्व विधायक अब्दुल रशीद ताहिर मोमिन का कहना है कि एक बार अगर मजदूर अपने घरों को लौट जाते हैं तो 3-4 महीने से पहले लौट के नहीं आते। यानी अगले चार महीने के लिए कारोबार पूरी तरह ठप्प हो जायेगा।
भिवंडी में पावरलूम के अलावा उससे जुड़े वारपिन, ट्विस्टिंग, सायजिंग, डाइंग एवं प्रोसेसिंग इकाइयां और सैकड़ों की संख्या में मोती कारखाने हैं। बंद होते लूम का असर इन लघु उद्योगों पर भी पड़ रहा है। डाइंग एवं प्रोसेस इकाइयां भी बंद होने लगी हैं. इसमें काम करने वाले हजारों मजदूरों को रोजगार की चिंता सताने लगी है।