गांव के आदिवासी तीन तरह के बंदूकों के बीच फंस गये हैं। मगरीबी सिंहभूम जिले का सबसे ज्यादा नक्सल मुतासीर ब्लॉक में से एक ब्लॉक सोनुवा से अलग हुए गुदड़ी का मिसाल इस बात का गवाह है कि आदिवासी लोग नक्सलवाद से कितने ज्यादा मजबूर हैं। इस इलाके में दो नक्सली संगठन-भाकपा (माओवादी) और पीएलएफआइ के दरमियान चल रहे वर्चस्व की लड़ाई में आदिवासियों की मुसलसल कत्ल की गयी।
नमन कंडुलना, जय मसीह बरजो, सोमनाथ, लक्ष्मण वगैरह की कत्ल हो चुकी है। आदिवासियों ने माओवादी प्रसादजी, निर्मल और वरुण पर आदिवासी लड़कियों का जिंसी इश्तेहाल का भी इल्ज़ाम लगाया है। 2009 में अलग ब्लॉक बने गुदड़ी में नक्सलियों के डर से अब तक ब्लॉक दफ्तर नहीं खुला। अब दोनों तंजीमो ने गुदड़ी ब्लॉक के हर गांव से पांच-पांच नौजवानों की मांग की है।
मतलब हर गांव से इन तंजीम के लिए 10 आदिवासी नौजवान चाहिए, जो आगे जाकर नक्सली तंजीम के वर्चस्व की लड़ाई का हिस्सा बनेंगे और अपने ही इलाके में खौफ पैदा करेंगे, एक दूसरे की कत्ल करेंगे, अपने ही लोगों का ज़िंदगी तबाह करेंगे। यह सब आदिवासियों को उनका हक़ और इंसाफ दिलाने के नाम पर होगा। आखिरकार आदिवासी ही सब कुछ गवायेंगे। अब आदिवासियों को यह समझ में आ गया है, इसलिए वे लोग दोनों तंजीम से दूर भाग रहे हैं।