नौजवानों में जज़बा हुब्ब-उल-व्तनी बेदार करने की ज़रूरत

कड़पा, २० दिसम्बर: (सियासत डिस्ट्रिक्ट न्यूज़) जद्द-ओ-जहद आज़ादी के अज़ीम हीरो शहीद अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान की 84 वीं बरसी के मौक़ा पर आवाज़ कमेटी कड़पा की जानिब से दफ़्तर आवाज़ पुराना बस स्टैंड में इजलास मुनाक़िद किया गया। इस मौक़ा पर शहीद अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान की तस्वीर की गुलपोशी की गई। इजलास से ख़िताब करते हुए सदर ज़िला आवाज़ कमेटी मस्तान वली ने कहा कि आज के नौजवानों को जद्द-ओ-जहद आज़ादी में मुस्लिम रहनुमाओं की तारीख़ से वाक़फ़ीयत की ज़रूरत है। शहीद अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान ने जद्द-ओ-जहद आज़ादी में हिस्सा लेते हुए फांसी पर चढ़ने शहीद होने को पसंद किया। उन्हों ने हुकूमत से मुतालिबा किया कि ऐसे अज़ीम सूरमा के कारनामों से मौजूदा नसल को वाक़िफ़ कराने केलिए तालीमी निसाब में इन की शख़्सियत और कारनामों को शामिल किया जाना चाहीये। मिस्टर मस्तान वली ने कहा कि शहीद भगत सिंह की तारीख़ से सब ही वाक़िफ़ हैं जबकि भगत सिंह अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान की तक़लीद करते और उन से हौसला हासिल करते थे। पहले अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान को फांसी दी गई। बादअज़ां भगत सिंह को फांसी हुई। उन्हों ने कहा कि आज़ादी के अज़ीम रहनुमा की तारीख़ और कारनामों से मौजूदा नसल को वाक़िफ़ कराने मौजूदा नसल में भी मलिक के ताल्लुक़ से शहीद होने का जज़बा पैदा करने के लिए हुकूमत को चाहीए कि इन के हुब्ब-उल-व्तनी और जज़बात-ओ-कारनामों को तालीमी निसाब में रखा जाई।

आज मुल्क में सिंह परिवार फ़िकरो परस्त ज़हनीयत के लोग जिन्हों ने जद्द-ओ-जहद आज़ादी में हिस्सा ही नहीं लिया, आज मुस्लमानों की हुब्ब-उल-व्तनी पर अंगुश्तनुमाई कर रहे हैं। मुस्लमानों के कारनामों को घटा कर पेश करते हुए जद्द-ओ-जहद आज़ादी के असली सुरमाओ की तारीख़ को मसख़ करना चाहती है। ऐसे हालात में सैकूलर हुकूमत को चाहीए कि वो जद्द-ओ-जहद आज़ादी के मुस्लिम रहनमाओं और शहीदों की तारीख़ से अवाम को वाक़िफ़ कराई। आवाज़ कमेटी ज़िला सैक्रेटरी मक़बूल बाशाह ने अपने ख़िताब में मुस्लमानों से अपनी तारीख़ से वाक़फ़ीयत हासिल करने आगे आने की ख़ाहिश करते हुए कहा कि आज फ़िकरो परस्त ताक़तें जद्द-ओ-जहद आज़ादी में मुस्लमानों की क़ुर्बानीयों को छुपाना चाहती हैं। मुस्लमानों के कारनामों को कम करके पेश कर रही हैं। ऐसे हालात में हुकूमत की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो अज़ीम मुस्लिम रहनुमाओं की तारीख़ से मौजूदा नसल को वाक़िफ़ किराए और तालीमी निसाब में उसे शामिल किया जाये। ख़ुसूसन शहीद अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान के जज़बा हुब्ब-उल-व्तनी को अवाम पर उजागर करने की ज़रूरत है।

मिस्टर मक़बूल बाशाह ने अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान की मुख़्तसर तारीख़ ब्यान करते हुए कहा कि 22 अक्टूबर 1900 को उत्तरप्रदेश के शाहजहां पुर मैं शफ़ी उल्लाह ख़ान ज़मींदार के घर पैदा हुये। ये घराना आला तालीम-ए-याफ़ता होने की वजह से अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान ने भी आला तालीम हासिल की। एक मालदार ख़ानदान के सपूत होने के बावजूद उन्हों ने जद्द-ओ-जहद आज़ादी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और बखु़शी फांसी का फंदा अपने गले में डाल कर शहीद हो गये। उन्हों ने मौत की काल कोठरी से हिन्दू मुस्लिम इत्तिहाद का पैग़ाम देते हुए नौजवानों कुमलक की आज़ादी केलिए अपनी जानों का नज़राना पेश करने की तलक़ीन की। 19 दिसम्बर 1927 को उन्हें फांसी दे दी गई। इस मौक़ा पर यूनाईटेड मुस्लिम फ़ोर्म के सदर अशरफ् अली ख़ान ने नौजवानों से शहीद इशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान की तारीख़ से वाक़फ़ीयत हासिल करने पर ज़ोर देते हुए कहा कि उन्हों ने बखु़शी मलिक के लिए शहीद होना पसंद किया। ऐसे अज़ीम क़ुर्बानीयों को फ़िर्क़ा परस्तों ने दबा दिया। सिर्फ चंद ही मुजाहिदीन आज़ादी के नाम गिनाए जाते हैं। अज़ीम मुस्लिम रहनुमाओ की क़ुर्बानीयों को छुपा दिया गया।

ऐसे हालात में मुस्लमानों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो अपने आबा-ओ-अज्दाद के कारनामों से दुनिया को वाक़िफ़ कराईं। ये तब ही मुम्किन है जब मुस्लमान ख़ुद अपनी तारीख़ से आगही हासिल करें। अशरफ अली ख़ान ने कहा कि अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान एक मालदार घराने से ताल्लुक़ रखने के बावजूद जद्द-ओ-जहद आज़ादी में ना सिर्फ शरीक हुए बल्कि शहादत भी हासिल की। बहुत कमउमर में उन्हों ने अज़ीम कारनामे अंजाम दिये। डायरैक्टर मदीना इंजीनीयरिंग कॉलिज सिराज बुख़ारी ने अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान की तारीख़ी किताबों को मुफ़्त तक़सीम करने केलिए अपनी जानिब से 10 हज़ार रुपय देने का ऐलान किया। इस मौक़ा पर कई क़ाइदीन ने शिरकत करते हुए अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान के कारनामों पर रोशनी डाली