नई दिल्ली: न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच अलग रेखा खींचते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि अदालतें कार्यपालिका कार्रवाई हेतु निर्देश जारी कर सकती हैं लेकिन कार्यकारिणी की कार्रवाई के लिए न्यायपालिका का काम नहीं है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सख्ती से बनाए रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर कार्यपालिका अपनी कार्रवाई में असमर्थ रहे तो अदालतें उसे ऐसा करने का निर्देश दे सकती हैं लेकिन खुद भी कार्यकारिणी के कर्तव्यों का पालन नहीं दे सकतीं। अरुण जेटली के पास केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री का कलमदान भी है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया टीएस ठाकुर की ओर से इस बयान पर कि न्यायपालिका तभी हस्तक्षेप करती है जब कि कार्यपालिका अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ रहे।
अरुण जेटली मुख्य न्यायाधीश के उस बयान पर प्रतिक्रिया कर रहे थे। उन्होंने उड़ता पंजाब के मुद्दे पर फैली हुई नाराज़गी के दौरान कहा कि फिल्म प्रमाणन के पैमाना अधिक दरियादिल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगले कुछ ही दिनों में फिल्म प्रमाणन प्रणाली में बुनियादी परिवर्तन की घोषणा की जाएगी। केंद्रीय बोर्ड फॉर फिल्म प्रमाणन फिल्म उड़ता पंजाब पर रोक लगा दी थी।
जेटली ने कहा कि बोर्ड ने कुछ परिवर्तन की इच्छा थी लेकिन बॉलीवुड के फिल्म निर्माता इस पर राजी नहीं हुए। जिसकी वजह से फिल्म निर्माताओं, सेंसर बोर्ड और राजनीतिक दलों के बीच पांति की स्थिति पैदा हो गई। इस बीच मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने उड़ता पंजाब पर रोक के संबंध में आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छिपा रूप में इस अवरोध को सुनिश्चित बनाया था। अखिल भारतीय कांग्रेस ने अपने बयान में कहा कि वह रोक सुनिश्चित करने में कुशल थे और अदृश्य रूप में इस फिल्म पर रोक सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने अपना योगदान दिया है।