न्यूक्लियर हथियार पहले इस्तेमाल ना करने की तजवीज़

वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने न्यूक्लियर हथियार पहले इस्तेमाल ना करने के मौज़ू पर आलमी कनवेनशन में ये तजवीज़ पेश करते हुए कहा कि आख़िर-ए-कार इस के नतीजे में जौहरी असलाह का ज़ख़ीरा ख़त्म होजाएगा। उन्होंने कहा कि अगर तमाम ममालिक जो न्यूक्लियर हथियार रखते हैं, तस्लीम करें कि इनका पहले इस्तेमाल ना किया जाये और उन्हें सिर्फ़ एक धाक की हैसियत दी जाये और एलान करें कि वो मुस्तक़बिल में न्यूक्लियर हथियार तैयार नहीं करेंगे तो इस के नतीजे में आख़िर-ए-कार न्यूक्लियर हथियार का ज़ख़ीरा ख़त्म होसकता है।

उन्होंने कहा कि कई तरीक़ों से इस से न्यूक्लियर हथियारों में बतदरीज कमी आएगी और आख़िर-ए-कार ये हथियार तलफ़ करदिए जाऐंगे। न्यूक्लियर हथियार कनवेनशन के ज़रीये ऐसा मुम्किन है। उन्होंने कहा कि एसे कनवेनशन को ज़रूरी जांच भी जारी रखनी चाहिए। उसे इस्तेहकाम को यक़ीनी बनाने सियासी इक़दामात करना भी ज़रूरी है ताकि न्यूक्लियर हथियारों का ज़ख़ीरा बहुत जल्द सिफ़र की सतह पर पहूंच जाये।

वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह न्यूक्लियर से पाक दुनिया& नज़रिये से हक़ीक़त तक के मौज़ू पर आई डी एस ए के समीनार से ख़िताब कररहे थे। उन्होंने कहा कि आज ज़्यादा से ज़्यादा आवाज़ें उठ रही हैं कि न्यूक्लियर हथियारों का वाहिद मक़सद ये है कि वो न्यूक्लियर हमले से तहफ़्फ़ुज़ फ़राहम करने के लिए मौजूद रहें।

मनमोहन सिंह ने कहा कि न्यूक्लियर हथियारों की एहमीयत में कमी करना भी बहुत अहम है। सिर्फ़ एक मुल्क एसा नहीं करसकता। इस के लिए कसीर जहती इत्तेफ़ाक़ ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि कसीर जहती चौखटे से इत्तेफ़ाक़ आज इंतेहाई अहम होगया है। इस इत्तेफ़ाक़ राय में तमाम ममालिक को शामिल किया जाना चाहिए जिन के पास न्यूक्लियर हथियार हैं।

न्यूक्लियर ख़तरात दूर करने के लिए हथियारों की तादाद में तख़फ़ीफ़ ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि हालाँकि हिन्दुस्तान न्यूक्लियर हथियारों से पाक दुनिया की ताईद करता है और इस ने अपने आप को न्यूक्लियर मुल्क क़रार दे रखा है क्योंकि सयानत का माहौल इंतेहाई सख़्त है। एक ज़िम्मेदार न्यूक्लियर ताक़त की हैसियत से हिन्दुस्तान न्यूक्लियर हथियारों से पाक दुनिया की ताईद में है।

उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान वाहिद मुल्क है जिस ने 1974 में अपनी सलाहीयत का मुज़ाहरा किया था लेकिन अपना ये मौक़िफ़ गुज़श्ता 25 साल से बरक़रार रखा है कि वो सख़्त सयान्ती माहौल के बावजूद सब्र-ओ-तहम्मुल इख़तेयार करसकता है। 1998 में मजबूरन न्यूक्लियर तजुर्बा किया गया था ताकि ख़ुद को न्यूक्लियर ताक़त क़रार दे सके।

उन्होंने कहा कि ऐटमी हथियारों के इस्तेमाल पर क़ाबू पाना ज़रूरी है। साथ ही साथ उन्होंने न्यूक्लियर तवानाई के फ़वाइद पर भी रोशनी डाली। उन्होंने कहा कि सियासी एतबार से बैन-उल-अक़वामी सयानत का शोबा ज़्यादा चैलेंजेस से भरपूर है। साईंसदानों और सयासी क़ाइदीन ने ये नज़रिया इख़तियार करना शुरू कर दिया है कि न्यूक्लियर हथियारों की ताक़त बेइंतेहा तबाहकुन है।

इस के अलावा उन्हें एहसास होगया है कि न्यूक्लियर तवानाई अवाम की फ़लाह के अच्छे इमकानात रखती है। वज़ीर-ए-आज़म ने कहा कि 2032 तक हिन्दुस्तान न्यूक्लियर तवानाई के ज़रीये 62 हज़ार मैगावाट बर्क़ी तवानाई तैयार करने का मंसूबा रखता है।