और यूं मालूम होता हैके कुफ़्फ़ार पुसला दें गे आप को अपनी (बद) नज़रों से जब वो सुनते हैं क़ुरआन और वो कहते हैं कि ये तू मजनून है। हालाँकि वो नहीं मगर सारे जहानों के लिए वजह अज़ोशरफ़। (सूरत उल-क़लम।५१,५२)
कुफ़्फ़ार के दिलों में हुज़ूर नबी करीम (स०अ०व०) का बुग़ज़-ओ-इनाद कोट कोट कर भरा हुआ था, ख़ुसूसन उस वक़्त तो वो आपे से बाहर हो जाते, जब हुज़ूर (स०अ०व०) क़ुरआन-ए-करीम पढ़ कर सुना रहे होते और वो एसी ग़ज़बनाक नज़रों से घूर घूरकर देखते, यूं महसूस होता कि अगर इन का बस चले तो कच्चा चबा जाएं और आपऐ की शम्मा हयात को बुझा दें।
उनकी इसी नापसंदीदा अदा का यहां ज़िक्र किया जा रहा है। अल्लामा ज़मख़शरी लिखते हैं कि कुफ़्फ़ार अदावत और बाअज़ भरी आँखों से हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) को यू टिकटिकी बांध कर और घूर घूरकर देखते, गोया वो आप(स०अ०व०)को अपनी जगह से फुसला देना चाहते हैं या हलाक करदेना चाहते हैं।
अरब कहते हैं कि फ़ुलां ने मेरी तरफ़ इस तरह देखा कि अगर इस का बस चलता तो वो मुझे गिरा देता या खा जाता। इस आयत का एक मफ़हूम ये भी बयान किया गया है कि वो आप(स०अ०व०) को अपनी नज़र-ए-बद से तकलीफ़ पहुंचाना चाहते हैं।
बनी असद क़बीला में कई लोग ऐसे थे, जिन की नज़र-ए-बद कभी ख़ता ना जाती। अगर वो किसी शख़्स को या किसी जानवर को हलाक करना चाहते तो तीन दिन फ़ाक़ा करते और फिर उस चीज़ के पास आकर कहते कि कितनी ख़ूबसूरत और उम्दा चीज़ है, एसी चीज़ तो आज तक हम ने कभी नहीं देखी।
इतना कहने की देर होती कि वो चीज़ तड़पने लगती और थोड़ी देर के बाद दम तोड़ देती। अल्लामा इबन कसीर ने इस ज़िमन में मुतअद्दिद अहादीस लिखी हैं, जिन से साबित किया है कि नज़र-ए-बद का असर होता है।
हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) अपने दोनों नवासों सय्यदना हुस्न और सय्यदना हुसैन रज़ी अल्लाह ताली अन्हुमा को ये पढ़ कर दम किया करते थे: आउज़ु बिक़लिमतिलअल्लाहि लत्तअम्मअति मिन कुलि्इ शयतअन् व्वहअम्मति वुमिन कुलि्इ ऐन लअम्मति