न सिर्फ खाना देने पर बल्कि खाने पर भी शुक्र खुदावंदी

पिछले साल हमारे एक मालदार बुजुर्ग दोस्त का एक मुख्तसर बीमारी के बाद इंतेकाल हुआ। वह बड़े ही इल्म दोस्त और दीन पसंद थे। अल्लाह ने उन्हें हर तरह से नवाजा था, किसी चीज की उनके यहां कमी नहीं थी। खुद भी हमेशा अच्छा खाते उससे अच्छा और उम्दा दूसरों को खिलाते।

पिछले साल हज से वापस आए और घर पहुंचकर ऐसे बीमार पड़े कि उसी में चंद हफ्तों के बाद उनका इंतेकाल भी हो गया। वफात से कुछ दिन पहले मैं उनकी अयादत/ इयादत के लिए उनके घर गया। बीमारी की जिस हालत व कैफियत में उनको मैंने पाया उससे मेरी तबीयत ही बुझ गई।

जिस बीमारी में वह मुब्तला/ मुब्तिला थे उसमें डाक्टरों के मुताबिक उनको खाने-पीने से एलर्जी और चिढ़ हो जाती थी किसी मशरूब को इस हालत में अपने से वह करीब भी नहीं आने देते। उनके घर वालों से मालूम हुआ कि कई दिन से उनको एक गिलास दूध पिलाना मुश्किल हो रहा है। जबकि हर तरह के फल उनके बेडरूम में लाए जा रहे थे घर वाले वक्फे वक्फे से ठंडी, गरम, नमकीन फीकी और मीठी चीजें उनकों दे रहे थे लेकिन वह थे कि छोटे बच्चे की तरह मुसलसल इंकार ही कर रहे थे।

उनकी यह हालत देखकर मुझे याद आया कि अल्लाह के रसूल (स०अ०व०) ने सिर्फ खाना देने पर अल्लाह के शुक्र पर इक्तिफ़ा नहीं किया है बल्कि खिलाने और मुंह से पेट में पहुंचाने पर अलग से शुक्र अदा करने का हुक्म दिया है।

मान लीजिए, अल्लाह ने देने को तो सब कुछ दिया लेकिन मुंह खाने के लिए नहीं खुलता, लुकमा चबाया नहीं जा सकता, हाज्मा उसको कुबूल नहीं करता, तो ऐसे किस्म-किस्म के खानों का क्या हासिल? और इसके मौजूद होने का क्या फायदा? मालूम हुआ कि रिज्क व गिजा और माकूलात व मशरूबात का अल्लाह की तरफ से इनायत होना, अलग एहसान है और उसको खिलाना, मुंह में पहुंचाना और वहां से पेट में ले जाना और सेहत के लिए मुफीद बनाना दूसरा बड़ा एहसान है।

इसीलिए अल्लाह के रसूल (स०अ०व०) ने फरमाया कि सिर्फ खाना देने पर नहीं बल्कि खाने पर भी अल्लाह का शुक्र अदा करें। आपने तालीम दी कि हम खाना खाने पर अल्लाह का शुक्र इस तरह अदा करें कि ऐ अल्लाह तू ने अपने फजल से न सिर्फ हमें रिज्क दिया बल्कि खिलाया भी और पिलाया भी। इस पर तेरी ही जात तारीफ के काबिल है। हम ने तेरा दिया हुआ खा पी कर तेरी नाशुक्री नहीं की। तेरी बगावत करते हुए शिर्क व कुफ्र नहीं किया बल्कि तेेरे करम से हम मुसलमान भी हैं। इस पर भी हम ऐ अल्लाह तेरा ही शुक्र अदा करते हैं। (मौलाना मोहम्मद इलियास नदवी)

———–बशुक्रिया: जदीद मरकज़