मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले में एक पंचायत ने अजीब फ़रमान जारी कर दिया . गांव वालों से कहा गया है कि वे दाल में बघार यानी तड़का न लगाएं. इस फ़रमान को न मानने वालों पर जुर्माना भी लगाया गया है.
पंचायत ने इसकी वजह बताते हुए कहा है कि दाल में बघार लगाने और मछली-मुर्गा पकाने से पालतू मवेशी मर सकते हैं. इसलिए मवेशियों को जिंदा रखने के लिए बघार और छोंक पर रोक लगा दी गई है.
लेकिन पंचायत के फ़रमान के बावजूद कुछ शौकीनों ने मछली पका ली तो उनसे जुर्माना वसूला गया.
ये मामला बैतूल से 25 किलोमीटर दूर घोड़ाडोंगरी ब्लॉक के मेंढापानी गांव का है जिसकी आबादी तकरीबन एक हज़ार है.
गांव में जब एक के बाद एक कई पालतू मवेशी मरने लगे तो फिक्रमंद गांव वालों में तरह-तरह की चर्चाएं होने लगीं. और ज़ाहिल लोगो ने इन्हें और बढ़ाया
तांत्रिक ने गांववालों से कहा, “सवा महीने तक मटन, मछली, अंडा पकाना बंद कर दो, दाल में बघार या तड़का मत लगाओ, तरकारी में छौंक लगाना बंद कर दो, नारियल मत फोड़ो और धूप मत दिखाओ.”
तांत्रिक की सलाह के बाद मेंढापानी ग्राम पंचायत की चौपाल ने हुक्म दिया कि सवा महीने तक न तो कोई गोश्त पका सकता है न ही दाल-सब्जी में छौंक लगा सकता है.
पंचायत के फ़रमान को नहीं मानने वालों पर पांच हज़ार इक्यावन रुपए का जुर्माना लगाने का इंतेज़ाम भी किया गया.
लेकिन जब चार घरों में मछली पकाए जाने की ख़बर पंचायत तक पंहुची तो उन पर जुर्माना लगाया गया.
मेंढ़ापानी के सरपंच राजेश धुर्वे , के अनुसार “गांव के नौजवान और बुजुर्ग, सबने मिलकर यह फैसला लिया था. हमें कुछ घरों में मछली पकाने की ख़बर मिली तो जुर्माना लगाना पड़ा, ताकि फ़ैसले पर कड़ाई से अमल हो सके.”
गांव के तीन लोगों दिलीप वरकड़े, सुरजन धुर्वे और गज्जू धुर्वे ने जुर्माना भर दिया है. इस पैसे को गांव की तरक्की में खर्च किया जाएगा.
गांव के साकिन धर्मदास ने बताया, “मारे गए जानवरों में आम अलामत पाए गए थे. मरने से एक हफ़्ते पहले वे खाना छोड़ देते थे. ऐसा क्यों हो रहा था, हमें पता नहीं लग रहा था. इसलिए ग्राम पंचायत ने भगत की सलाह पर अमल का फ़ैसला किया. इसका असर यह हुआ कि जानवरों के मरने का सिलसिला बंद हो गया.
सरपंच राजेश के मुताबिक “हमें नहीं मालूम कि दाल में बघार नहीं लगाने का असर है या Vaccination का, बहरहाल जानवरों का मरना बंद हो गया है. पंचायत का फ़ैसला 20 अगस्त तक लागू रहेगा.”