चंडीगढ़: पंजाब की नकारात्मक पहचान की एक वजह वहाँ ड्रग्स का इस्तेमाल है। पंजाब में चुनाव से पहले नशेड़ियों को नशीली वस्तुओं की आपूर्ति की जा रही है ताकि उम्मीदवार उनके वोट हासिल कर सकें।
डीडब्ल्यू डॉट कॉम के अनुसार पंजाब में ड्रग्स का धंधा आम है। गली मोहल्लों में ड्रग्स विक्रेताओं के अड्डे और ढेर हैं। कई मकानों के अंदर अवैध शराब बनाने की भट्टियाँ भी हैं। पंजाब उन पांच राज्यों में से एक है, जहां चार फरवरी को विधानसभाओं के चुनाव के पहले चरण का मतदान हो रहा है।
चुनाव प्रक्रिया को पंजाब में वे लोग बहुत पसंद करते हैं, जिन्हें नशे की लत है। उनका मानना है कि चुनाव का मौसम सबसे अच्छा है क्योंकि एक एक वोट के लिए राजनीतिक उम्मीदवार अपने अपने क्षेत्र के हर नशेड़ियों को मुफ्त ड्रग्स प्रदान करते हैं। इस कारण हर नशेड़ी को चुनाव का इंतजार है क्योंकि उसे, उसका मनपसंद नशा मुक्त और सुविधा के साथ अक्सर घर पर ही उपलब्ध हो जाता है।
नशे की लत का शिकार ऐसा ही एक व्यक्ति राजेंद्र है, जो चुनाव अभियान से पहले अफीम की खोज में मारा मारा फिरता था लेकिन आजकल उसे हर दिन घर पर ड्रग्स प्रदान की जा रही है ताकि उसका वोट बर्बाद न हो। राजेंद्र जैसे हजारों लोग हैं जो खेत खलिहानों में मेहनत मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट भरने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं।
पूर्व चीफ इलेक्शन कमिश्नर एस वाई कुरैशी बताते हैं कि आयोग को 2012 में महसूस हुआ था कि पंजाब में चुनाव प्रचार के दौरान ड्रग्स का असाधारण इस्तेमाल किया जाता है। कुरैशी के अनुसार एक बार चुनाव प्रचार के एक महीने के दौरान 55 किलो हेरोइन और 430 किलोग्राम सूखे पोपी या कच्ची अफीम बरामद की गई थी। सन 2015 में चुनाव आयोग के सर्वेक्षण के अनुसार 27 लाख की राज्य जनसंख्या में अफीम की लत से पीड़ित तीन लाख बीस हजार से अधिक लोगों की पहचान की गई थी।
राज्य में सबसे लोकप्रिय नशा हीरोइन है और फिर अफीम की मांग है। अफीम कई गांवों में भी खेतों में काम करने वाले मजदूर तैयार कर लेते हैं। बतौर ड्रग्स अफीम की तैयारी के लिए राज्य सरकार की ओर से परमिट भी जारी किए जाते हैं और इसकी आड़ में अवैध धंधे का सिलसिला भी ढके छिपे शैली में जारी रखा जाता है। इस क्षेत्र में देसी शराब की मांग भी अधिक है।