पकिस्तान- हज भी बना महंगाई का शिकार, लोगों ने पूछा- कप्तान साहब, आखिर तब्दीली कब आएगी

पाकिस्तान में इमरान खान तब्दीली के नारे बीस साल से लगा से रहे हैं और इसी की बुनियाद पर वह सत्ता में भी आए. लेकिन सत्ता में आने पर भी वह तब्दीली लाने के वादे ही कर रहे हैं. मीडिया ही नहीं, आम जनता भी सवाल कर रही है कि कप्तान साहब, आखिर तब्दीली आएगी कब. लोग राहत चाहते हैं, लेकिन इमरान खान के पास वादों और इरादों के अलावा कुछ नहीं है.

अर्थव्यवस्था का बंटाधार है, महंगाई ने जनता का तेल निकाल दिया है और अब तो हज करना भी महंगा हो गया है. पाकिस्तान सरकार ने हज पर आने वाले खर्च में 63 फीसदी इजाफे का ऐलान किया है, जिसे लेकर सरकार को काफी खरी-खोटी सुननी पड़ रही है.

हज पर हंगामा

रोजनामा दुनिया लिखता है कि हज के खर्चों में 63 फीसदी इजाफे पर विपक्ष सरकार को आड़े हाथ ले रहा है जबकि सरकार सफाई दे रही है कि खर्चों में इजाफे पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है.

इसके लिए पाकिस्तानी रुपए के मूल्य में आई भारी गिरावट, हवाई किरायों में वृद्धि और सऊदी अरब में होने वाले खर्च में वृद्धि को जिम्मेदार बताया गया है. अखबार कहता है कि सरकार की बात को किसी हद सही माना जा सकता है कि खर्चों में इजाफा हुआ है, लेकिन इजाफा इतना भी नहीं हुआ है जितना सरकार ने कर दिया है. अखबार ने भारत, ईरान और बांग्लादेश का हवाला देते हुए लिखा है कि सभी जगह हज पर जाने वालों को सब्सिडी दी जाती है, इसलिए पाकिस्तान में भी एक हद तक सब्सिडी को बरकार रखा जाए.

पाकिस्तान में इमरान खान तब्दीली के नारे बीस साल से लगा से रहे हैं और इसी की बुनियाद पर वह सत्ता में भी आए. लेकिन सत्ता में आने पर भी वह तब्दीली लाने के वादे ही कर रहे हैं. मीडिया ही नहीं, आम जनता भी सवाल कर रही है कि कप्तान साहब, आखिर तब्दीली आएगी कब. लोग राहत चाहते हैं, लेकिन इमरान खान के पास वादों और इरादों के अलावा कुछ नहीं है.

अर्थव्यवस्था का बंटाधार है, महंगाई ने जनता का तेल निकाल दिया है और अब तो हज करना भी महंगा हो गया है. पाकिस्तान सरकार ने हज पर आने वाले खर्च में 63 फीसदी इजाफे का ऐलान किया है, जिसे लेकर सरकार को काफी खरी-खोटी सुननी पड़ रही है.

हज पर हंगामा

रोजनामा दुनिया लिखता है कि हज के खर्चों में 63 फीसदी इजाफे पर विपक्ष सरकार को आड़े हाथ ले रहा है जबकि सरकार सफाई दे रही है कि खर्चों में इजाफे पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है.

 

इसके लिए पाकिस्तानी रुपए के मूल्य में आई भारी गिरावट, हवाई किरायों में वृद्धि और सऊदी अरब में होने वाले खर्च में वृद्धि को जिम्मेदार बताया गया है. अखबार कहता है कि सरकार की बात को किसी हद सही माना जा सकता है कि खर्चों में इजाफा हुआ है, लेकिन इजाफा इतना भी नहीं हुआ है जितना सरकार ने कर दिया है. अखबार ने भारत, ईरान और बांग्लादेश का हवाला देते हुए लिखा है कि सभी जगह हज पर जाने वालों को सब्सिडी दी जाती है, इसलिए पाकिस्तान में भी एक हद तक सब्सिडी को बरकार रखा जाए.

 

रोजनामा उम्मत का इसी विषय पर संपादकीय है. रियायती नहीं, सस्ता हज चाहिए. अखबार लिखता है कि सरकार ने हज के खर्चों में इजाफे पर विपक्ष की आलोचना का जबाव देते हुए कहा है कि गरीबों के पैसों पर किसी को मुफ्त में हज नहीं कराया जाएगा. जिसके पास पैसा होगा, वही हज करेगा. अखबार कहता है कि सत्ता में आने के बाद से अब तक प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाकिस्तान को मदीना जैसी रियासत बनाना तो दूर, सामान्य दुनियावी कल्याणकारी रियासत बनाने के लिए भी कोई कोशिश नहीं की है.

अखबार लिखता है जो लोग थोड़ा-थोड़ा पैसा हज के लिए जमा करते हैं, उनकी मायूसी में हर साल उस वक्त इजाफा हो जाता है, जब बढ़ती महंगाई के कारण उनकी जमा पूंजी हज के लिए कम पड़ जाती है. अखबार लिखता है कि भारत, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देश अपने हज यात्रियों के लिए हवाई टिकट में रियायत देते हैं और वहां रहने के लिए सहूलियतों का ऐलान करते हैं, लेकिन पाकिस्तानी दूतावास के लोग अपने हाजियों के लिए सऊदी अरब से कोई रियायत हासिल करने के बजाय सिर्फ अपने स्वार्थों को साधने में लगे रहते हैं.

खस्ताहाल पाकिस्तान

रोजनामा पाकिस्तान लिखता है कि सत्ता में आने के बाद इमरान खान लगातार यही कह रहे हैं कि उनकी सरकार जनता की जिंदगी में तब्दीली लाने के लिए कदम उठा रही है, लेकिन इन कदमों का कोई नतीजा अब तक तो नजर नहीं आ रहा है. अखबार के मुताबिक बिजली और गैस की कीमतों में इजाफे और पाकिस्तानी रुपए के मूल्य में गिरावट की वजह से देश में महंगाई का तूफान आया हुआ है, जिससे लोगों की जिंदगी में तब्दीलियां तो आ रही हैं, लेकिन नकारात्मक तब्दीलियां.

 

अखबार कहता है कि लोगों की आमदनी कम हो गई है, बेरोजगारी बढ़ गई है और आम जरूरत की चीजें पहुंच से दूर हो रही हैं. अखबार लिखता है कि कई सालों में पहली बार ऐसा हुआ है जब पाकिस्तान का कृषि उत्पादन घट गया है और औद्योगिक उत्पादन में कोई इजाफा नहीं हुआ है. अखबार कहता है कि अगर सरकार लोगों की जिंदगियां सुधारने के लिए कुछ कर रही है तो उसका असर भी नजर आना चाहिए, लेकिन बदकिस्मती से ऐसा हो नहीं रहा है.

रोजनामा नवा ए वक्त के संपादकीय का शीर्षक है: सरकार लोगों को राहत नहीं दे पाई तो उनका भरोसा बरकार रखना मुश्किल होगा. अखबार कहता है कि पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ के सत्ता में आने के बाद से सिर्फ महंगाई का तूफान नहीं आया है बल्कि एडहॉक और कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वालों को हटाने की सरकारी पॉलिसी की वजह से बेरोजगारी भी बढ़ी है.

अखबार का कहना है कि पाकिस्तान की सरकार कुछ मुस्लिम मित्र देशों की मदद से अर्थव्यवस्था को संभालने की कोशिश कर रही है लेकिन अगर महंगाई और बेरोजगारी के पाटों में पिस रही जनता को राहत नहीं दी गई तो लोगों में मायूसी बढ़ेगी जिसके नतीजे में तीव्र प्रतिक्रिया होगी और इसे संभालना किसी भी सरकार के लिए मुश्किल होता है. अखबार लिखता है कि सरकार विपक्ष की आलोचना को तो नजरअंदाज कर सकती है लेकिन जनता की परेशानियों को नजरअंदाज करने की कोशिश ना करे.

 

महंगे रमजान और ईद

रोजनामा जंग ने अपने संपादकीय में सरकार से महंगाई रोकने की गुहार लगाते हुए लिखा है कि 2018 के आखिर में पाकिस्तान में छह महीने से महंगाई की दर 6.21 फीसदी थी जो नए साल के पहले महीने में बढ़ कर 7.19 प्रतिशत हो गई. अखबार के मुताबिक यह बात इसलिए भी चिंताजनक है कि अगर यही हालात रहे तो आने वाले महीने जनता और खासकर नौकरीपेशा लोगों के लिए बहुत परेशानी वाले होंगे.

अखबार कहता है कि आने वाले दो तीन महीने इसलिए भी सख्त होंगे क्योंकि रमजान और ईद अपने साथ महंगाई का तूफान लेकर आएंगे. अखबार लिखता है कि गर्मी से पहले बिजली के दामों में और बढ़ोत्तरी को लेकर सुगबुगाहट भी सुनने में आ रही है, ऐसे में जरूरी है कि सरकार को महंगाई रोकने वाले कदम उठाने चाहिए.

साभार- फर्स्ट पोस्ट