परवेज़ मुशर्रफ़ के अज़ाइम

पाकिस्तान के साबिक़ सदर परवेज़ मुशर्रफ़ ने तवक़्क़ो ज़ाहिर की कि इन के मुल्क में फ़ौजी बग़ावत नहीं होगी। उन्हों ने 1999 में नवाज़ शरीफ़ हुकूमत के ख़िलाफ़ किसी खूनखराबे के बगै़र फ़ौजी बग़ावत के ज़रीया इक़तेदार हासिल किया था अब वो ये तवक़्क़ो क्यों कर करते हैं कि फ़ौजी बग़ावत के आसार नहीं हैं जबकि पाकिस्तान में हर जमहूरी हुकूमत के बाद एक वक़्त फ़ौजी हुक्मराँ का भी होता है।

तारीख़ शाहिद है कि पाकिस्तान में जमहूरी क़दरों को कमज़ोर करने वाले अवामिल के ज़रीया फ़ौजी इक़तेदार को मजबूरन या ज़रूरतन लाया गया है। इस मर्तबा जनरल इशफ़ाक़ परवेज़ क्यानी की ज़ेर क़ियादत फ़ौज बग़ावत का इरादा नहीं रखती।
हो सकता है कि परवेज़ मुशर्रफ़ की राय और ख़्याल दरुस्त हो मगर पाकिस्तान के हालिया वाक़ियात और सयासी तबदीलीयों से अंदाज़ा होता है कि फ़ौज को एक बार फिर अहम रोल अदा करने के लिए बीरकस से बाहर निकलने की नौबत आएगी या फिर मौजूदा सयासी क़ाइदीन फ़ौज को बाहर निकलने के लिए मजबूर कर देंगे।

पाकिस्तान में इस वक़्त दहश्तगर्दी कमज़ोर मआशी सूरत-ए-हाल, महंगाई में इज़ाफ़ा, अमन-ओ-अमान की नाक़िस कैफ़ीयत के साथ नौजवानों में बढ़ती बेरोज़गारी, कबायली इलाक़ों में बदअमनी, ख़ूनख़राबा, बर्क़ी की कमी, ग़ियास की क़िल्लत जैसे कई मसाइल ने अवाम को अपने ही मुल्क में बे यार-ओ-मददगार बना दिया है।

हुकूमत और सियासतदानों पर ये भारी ज़िम्मेदारी आइद होती है कि वो अवाम से किए गए वादों को बरवक़्त पूरा करें लेकिन गुज़श्ता चंद बरसों से पाकिस्तान के अवाम को बेहतर नज़म-ओ-नसक़ और एक अच्छी हुक्मरानी का शिद्दत से इंतिज़ार ही रहा है। परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपने दौर‍ ए‍ इक्तेदार में दाख़िली तौर पर कई सैशन पैदा कर लिए थे।

ख़ारिजी सतह पर उन की पालिसी इतनी वसीअ तर नहीं रही जिस से कि उन्हें एक कामयाब हुक्मराँ के तौर पर याद किया जा सके वो एक अर्सा से जिलावतनी की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं उन्हें वतन वापिस होकर सयासी ज़िंदगी से वाबस्तगी का शौक़ सत्ता रहा है। क्रिकेटर से सियासतदां बनने वाले इमरान ख़ान को हालिया दिनों में अवाम की ज़बरदस्त ताईद हासिल हुई है।

मुशर्रफ़ भी तहिरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी की मक़बूलियत का कुछ फ़ायदा हासिल करना चाहते हैं। बज़ाहिर वो इमरान ख़ान से हाथ मिलाने की बात खुल कर करना नहीं चाहते मगर इत्तिहाद के बगै़र पाकिस्तान में सियासत करने का ख़ाब पूरा नहीं होसकता। पाकिस्तान पीपल्ज़ पार्टी को कई पार्टीयों का साथ लेकर ही एक बड़ा इत्तेहाद बनाकर हुकूमत करना पड़ रहा है।

इस माह के अवाख़िर में पाकिस्तान आने की तैयारी करने वाले परवेज़ मुशर्रफ़ को अपनी आमद से क़बल ही पाकिस्तान की फ़ौज और सयासी क़ाइदीन के दरमयान कुछ दूरी पैदा होती है तो फिर हालात का वो सामना किस तरह करेंगे। वज़ीर-ए-आज़म पाकिस्तान यूसुफ़ रज़ा गिलानी ने सुप्रीम कोर्ट और फ़ौज के ताल्लुक़ से जो लब-ओ-लहजा इख्तेयार किया है इस से पैदा होने वाली तल्ख़ी को तब ही दूर कर लिया जाएगा जब फ़ौज पाकिस्तान की दिफ़ा के लिए अपनी भारी ज़िम्मेदारीयों को रूबा अमल लाने के लिए हरकत में आ जाएगी।

फ़ौजी बग़ावत के बाद पाकिस्तान का अच्छा से अच्छा लीडर भी लब कुशाई से गुरेज़ करेगा। इस वक़्त इमरान ख़ान यह परवेज़ मुशर्रफ़ पाकिस्तान की सियासत पर जिस तरह के तबसरे कररहे हैं वो सयासी पुख़्ताकार क़ाइदीन की नज़र में बचकाना हैसियत रखते हैं। इक़तिदार में बरतरी का जो कोई लीडर जज़बा पैदा करेगा उसे इक़तिदार की सीढ़ीयों तक पहूंचने में कामयाबी नहीं मिलेगी। इमरान ख़ान के साथ मिल कर काम करने के बजाय परवेज़ मुशर्रफ़ इमरान ख़ान को साथ लेकर काम करना चाहते हैं लेकिन पाकिस्तान के अवाम इमरान ख़ान और परवेज़ मुशर्रफ़ में काफ़ी फ़र्क़ महसूस करते हैं।

2008  में आम इंतेख़ाबात में शिकस्त होने के बाद परवेज़ मुशर्रफ़ जिलावतनी की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। और नई मख़लूत हुकूमत ने इन का मुवाख़िज़ा करने का फ़ैसला करलिया था अब उन की वतन वापसी पर गिरफ़्तारी की बातें हो रही हैं गोया सऊदी अरब को मुदाख़िलत करनी पड़ेगी। अगर पाकिस्तान का मुस्तक़बिल परवेज़ मुशर्रफ़ हैं तो फिर पाकिस्तान तबाही के दहाने पर पहूंच जाएगा। मगर फ़ौज इस बात को यक़ीनी बनाएगी कि इस का मुलक सयासी बोहरान की नज़र ना हो जाये।

इस में दो राय नहीं कि पाकिस्तान को जुनूबी एशियाई मुल़्क की हैसियत से एक मुनफ़रद मुक़ाम हासिल है । इस ने हिंदूस्तान के साथ कई मुआहिदों पर दस्तख़त किए हैं इस के साथ साथ वो बैरूनी मुदाख़िलत, और दरअंदाज़ी के ख़िलाफ़ अपने मुक़तदिर आला का भी तहफ़्फ़ुज़ कररहाहै। हिंदूस्तान के लिए भी पाकिस्तान के दाख़िली हालात का बेहतर रहना बेहद ज़रूरी है।

पाकिस्तान की सूरत-ए-हाल पर तबसरा करने वाले मुख़्तलिफ़ राय ज़ाहिर करते हैं। एक साबिक़ अमेरीकी सफ़ीर की सोवीट यूनीयन के ताल्लुक़ से की गई पेश क़ियासी या उन के अंदेशों का हवाले देते हुए पाकिस्तान के मुस्तक़बिल पर भी इस तरह की राय ज़नी की जा रही है। इस वक़्त के अमेरीकी सफ़ीर बराए सोवीयत यूनीयन ने इस मुल़्क की सूरत-ए-हाल पर रास्त तबसरा करने से गुरेज़ करते हुए कहा था कि ये तो वक़्त ही बताएगा।

पाकिस्तान के मुस्तक़बिल के बारे में यही बात कही जा रही है कि वहां की सूरत-ए-हाल तशवीशनाक है। मगर बहैसीयत एक क़ौम और मुल्क पाकिस्तान को कोई धक्का नहीं पहूंचेगा। परवेज़ मुशर्रफ़ या इमरान ख़ान में इत्तेहाद हो या ना हो पाकिस्तान के अवाम इस का मुस्तक़बिल बहरहाल परवेज़ मुशर्रफ़ या इमरान ख़ान के हवाले नहीं करेंगे।