पवीत्रता वीलायत की शरत हे

अल्लाह रब लईज्ज़त ने क़ुरान मजीद में नेक बंदों की सिफ़ात ब्यान करते हुए इरशाद फ़रमाया और जो जीना नहीं करते (सूरा फुर्क़ान।६) इस से मालूम हुवा कि औलिया अल्लाह जिना से बचते हैं।

तफ़सील ये कि हर सालिक नेकोकारी और परहेज़गारी पर इस्तिक़ामत इख़तियार करने की वजह से ही औलिया अल्लाह में शामिल होता है, जब कि औलिया अल्लाह को अल्लाह ताला अप्नी हिफ़ाज़त में ले लेता है और हर किस्म के कबीरा गुनाह से महफ़ूज़ फ़रमाता है। रहमत का तक़ाज़ा भी यही है और दोस्ती का हक़ भी यही है और अल्लाह ताला ही सब से ज़्यादा रहीम और सब से ज़्यादा बेहतरीन दोस्त है।
अहल अल्लाह अपनी सच्ची मुहब्बत की बिना पर मासिवा की तरफ़ आँख उठाकर देखना भी पसंद नहीं करते। अगर एक ग़रीब, लावारिस, यतीम और बेसहारा लड़की को वक़्त का बादशाह अपनी मलिका बना ले और उसे अपने महल में हर नेमत मुहैया करे, नौकर चाकर हों, पहनने ओढ़ने के लिए लिबास फ़ाखिरा हों, खाने पीने के लिए मुर्ग़ मुस्ल्लिम हों, जे़वरात और हीरे जवाहरात का ढेर हो, खज़ाने का मुंह इस के इशारे पर खोल दिया जाये, बादशाह अप्नी मलिका को ख़ूब मुहब्बत और इज़्ज़त-ओ-एहतिराम से रखे, ऐसे में कोई बदशकल भंगी अपने बदबूदार कपड़ों और बदबूदार जिस्म के साथ इस मलिका को बहकाने की कोशिश करे, जब कि बादशाह भी देख रहा हो तो वो मलिका इस भंगी की तरफ़ आँख उठाकर भी नहीं देखेगी। औलिया अल्लाह के दिल की यही कैफ़ीयत होती है कि एक तरफ़ अल्लाह रब उलईज्जत‌ के बेशुमार एहसानात उन पर होते हैं, हर लम्हा उन के दिलों पर अलताफ़ करीमाना की बारिश हो रही होती है, अल्लाह ताला की मदद-ओ-नुसरत का क़दम क़दम पर वो मुशाहिदा करते हैं। अल्लाह ताला दुनिया के ग़मों से उन को नजात देकर अपनी मुहब्बत-ओ-उलफ़त की शीरीनी उन्हें अता करते हैं। ऐसे में कोई ग़ैर मुहर्रम उन को गुनाह की तरफ़ मुतवज्जा करे तो वो एक पेशाब के लोटे की ख़ातिर अपने मालिक-ए-हक़ीक़ी को नाराज़ करने का सोच भी नहीं सकते।

हज़रत सुलेमान बिन यसार रहमत उल्लाह अलैहि मशहूर मुहद्दिस हैं। एक मर्तबा सफ़र हज पर रवाना हुए तो जंगल में एक जगह पड़ाउ डाला। इन के साथी किसी काम के लिए शहर गए तो वो अपने ख़ेमा में अकेले थे। इतने में एक ख़ूबसूरत औरत उन के ख़ेमा में आई और कुछ मांगने का इशारा किया। उन्हों ने कुछ खाना उस को देना चाहा तो इस औरत ने बरमला कहा कि मैं आप से वो सब कुछ चाहती हूँ, जो एक औरत मर्द से चाहती है। तुम जवान हो मैं ख़ूबसूरत हूँ, हम दोनों के लुतफ़ अंदोज़ होने के लिए तन्हाई का मौक़ा भी है। हज़रत सुलेमान बिन यसार ने ये सुना तो समझ गए कि शैतान ने मेरी उम्र भर की मेहनत ज़ाए करने के लिए इस औरत को भेजा है। वो ख़ौफ़ ख़ुदावंदी से ज़ार-ओ-क़तार रोने लगे। इतना रोये कि वो औरत शर्मिंदा होकर वापिस चली गई। हज़रत सुलेमान बिन यसार ने अल्लाह ताला का शुक्र अदा किया कि मुसीबत से जान छूटी। रात को सोए तो हज़रत यूसुफ़ अलैहि स्सलाम की ख़ाब में ज़यारत हुई। हज़रत यूसुफ़ अलैहि स्सलाम ने फ़रमाया मुबारक हो, तुम ने वली होकर वो काम कर दिखाया, जो एक नबी ने किया था।

हज़रत जुनैद बग़्दादी रहमत उल्लाह अलैहि के दौर में एक अमीर शख़्स था, जिस की बीवी रशक क़मर और परीपेकर(बहूत खूबसूरत) थी। इस औरत को अपने हुस्न पर बड़ा नाज़ था। एक मर्तबा बनाव‌ सिंगार करते हुए इस ने नाज़ नख़रे से अपने ख़ावींद को कहा कि कोई शख़्स ऐसा नहीं, जो मुझे देखे और मेरी तमह (उम्मीद) ना करे। ख़ावींद ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि हज़रत जुनैद बग़्दादी रहमत उल्लाह अलैहि को तेरी परवाह भी नहीं होगी। बीवी ने कहा मुझे इजाज़त हो तो जुनैद बग़्दादी को आज़मा लेती हूँ कि वो कितने पानी में हैं। ख़ावींद ने इजाज़त दे दी।
वो औरत बन स्वंकर हज़रत जुनैद बग़्दादी रहमत उल्लाह अलैहि के पास आई और एक मसला पूछने के बहाने चेहरे से निक़ाब खोल दिया। जुनैद बग़्दादी रहमत उल्लाह अलैहि की नज़र पड़ी तो उन्हों ने ज़ोर से अल्लाह के नाम की ज़रब लगाई। इस औरत के दिल में ये नाम पैवस्त हो गया, इस के दिल की हालत बदल गई, वो अपने घर वापिस आई और सारे नाज़ नख़रे छोड़ दिए। ज़िंदगी की सुबह-ओ-शाम बदल गई, सारा दिन क़ुरान मजीद की तिलावत करती और सारी रात मूसल्ले पर खड़े होकर गुज़ार देती। ख़शीयत इलाहि और मुहब्बत इलाहि की वजह से आंसू की लड़ीयाँ इस के रुख़सारों पर बेहती रहतीं। इस औरत का ख़ावींद कहा करता था कि मैंने हज़रत जुनैद बग़्दादी का क्या बिगाड़ा था कि उन्हों ने मेरी बीवी को राहिबा बना दिया और मेरे काम का ना छोड़ा।

हज़रत बाय‌ज़ीद बूस्तामी रहमत उल्लाह अलैहि फ़रमाया करते थे कि जब नूर निसबत मेरे सीने में मुंतक़िल हुवा तो एसी बातिनी ठंडक नसीब हुई कि बावजूद अपनी भरपूर जवानी के मेरे लिए औरत और दीवार के दरमयान फ़र्क़ ख़त्म‌ हो गया।

उपर लीखीत‌ वाक़ियात से इस बात की तस्दीक़ होती है कि ओलीया कामीलीन‌ को मुहब्बत ईलाहि की ऐसी हलावत नसीब होती है कि फिर नफ़सानी और शहवानी लज़्ज़तें उन की ख़ातिर में हेच हो जाती हैं। गोया औलिया-ए-अल्लाह की निशानीयों में से एक निशानी ये है कि वो पाकदामनी की ज़िंदगी गुज़ारते हैं। अगर बिलफ़र्ज़ बतकाजा ए बशरियत उन से कोई ख़ता सरज़द हो जाय तो वो जब तक सच्ची तौबा के ज़रीया उस को माफ़ नहीं करवा लेते, उन को चीन नहीं आता।