कोलकाता। पश्चिम बंगाल के राज्यसभा चुनावों में आजादी के बाद यह पहला मौका है जब लेफ्ट फ्रंट का कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं है। मैदान में उतरे एकमात्र सीपीएम उम्मीदवार का पर्चा भी तकनीकी आधार पर खारिज हो गया।
वर्ष 1952 से होने वाले इन चुनावों में हर बार लेफ्ट के कई-कई उम्मीदवार रहते थे। लेकिन इस बार मैदान में उतरे एकमात्र सीपीएम उम्मीदवार विकास भट्टाचार्य का पर्चा भी तकनीकी आधार पर खारिज हो गया। पहले इस सीट पर सीताराम येचुरी के मैदान में उतरने की बात थी। लेकिन पार्टी की केंद्रीय समिति ने यह प्रस्ताव खारिज कर दिया।
वामपंथी हलकों में इस फैसले को एक और ऐतिहासिक भूल माना जा रहा है। दरअसल, येचुरी ‘दक्षिण बनाम उत्तर लॉबी’ के झगड़े का शिकार बन गये। अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी के भूपेश गुप्ता वर्ष 1952 में बंगाल से राज्यसभा के लिए चुने जाने वाले पहले वामपंथी नेता थे।
कभी लालकिला के नाम से मशहूर बंगाल में लेफ्ट के बुरे दिन तो वर्ष 2011 में हुए विधानसभा चुनावों के पहले से ही शुरू हो गए थे। उसके बाद हुए हर चुनाव में उसके पैरों तले की जमीन खिसकती रही। राहत की बात यह थी कि संसद के ऊपरी सदन यानी राज्यसभा में यहां से सीताराम येचुरी समेत कई नेता चुने जाते रहे। कभी कांग्रेस के समर्थन से तो कभी तृणमूल कांग्रेस के, लेकिन अबकी तो सूपड़ा ही साफ हो गया।
प्रदेश सीपीएम को सीताराम येचुरी का समर्थक माना जाता है। राज्यसभा चुनावों के एलान से बहुत पहले ही यहां के नेताओं ने येचुरी को कांग्रेस के समर्थन से उम्मीदवार बनाने संबंधी एक प्रस्ताव पारित कर उसे केंद्रीय नेतृत्व को भेज दिया था।