पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने पुरी ताक़त लगा दी है, लेकिन आसान नहीं होगा!

लिए यूं ही बेताब नहीं हैं। हवा बहुत मुफीद है और चौंकाने वाले नतीजों से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन सवाल उठता है कि बंगाल का वो कौन सा दृश्य है जो देश के लिए अदृश्य है और जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देखा, महसूस किया और खुल्लमखुल्ला बताया।

इंडिया टीवी न्यूज़ डॉट कॉम के अनुसार, दिल्ली-मुंबई की चमक से दूर बंगाल के पिछड़े इलाकों में शुमार पुरुलिया और बांकुरा की सड़कों पर मोदी का नाम चीखते लोगों की चाहत क्या है?

पश्चिम बंगाल में 23 मई को जो होने वाला है, क्या वो इतना अप्रत्याशित है जिसकी भनक उस दीदी तक को नहीं है, जो बंगाल में मां, माटी और मानुष की रगों में घुसकर सूबे को अपनी हनक का अहसास कराती हैं?

इस सवाल का जवाब ढूंढने इंडिया टीवी पुरुलिया पहुंची। पुरुलिया पश्चिम बंगाल के उन जिलों में से एक है, जो नक्सल प्रभावित कहे जाते हैं। यहां 12 मई को छठे फेज़ में वोटिंग होनी है।

झारखंड से लगे पुरुलिया का सियासी मिजाज हमेशा से ही बंगाल की राजनीति के इतर रहा हैं। कभी लेफ्ट के अलग-अलग धड़ों का गढ़ रही इस सीट पर 2014 में टीएमसी ने पहली बार जीत हासिल की थी। 2014 में बीजेपी पुरुलिया की लड़ाई में चौथे नंबर रही थी।

करीब 86 हज़ार वोट के साथ बीजेपी को सिर्फ 7 फीसदी वोट मिले थे। तो पांच साल में बंगाल की धरती पर कौन सा चमत्कार हो गया, जिससे चौथे नंबर की पार्टी ममता बनर्जी की टीएमसी का गला पकड़ने की स्थिति में आ गई?

बंगाल में बदलती सियासी फिज़ा सूबे के पश्चिमी छोर पर बसे पुरुलिया को भी समेटने को आतुर हैं। पुरुलिया की 85 फीसदी से ज्यादा आबादी गांवों में रहती है जहां से सबसे ज्यादा वोटर हैं।

यहां ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के वोटर करीब 70 फीसदी के आसपास हैं। इन्ही वोटर्स के सहारे पहले लेफ्ट के टूटे धड़े और फिर टीएमसी की राजनीति परवान चढ़ती रही लेकिन पिछले चार साल के दौरान बीजेपी का जनाधार यहां बहुत बढ़ा है।