हज़रत साद रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व० ने फ़रमाया यक़ीनन अल्लाह तआला इस बंदा को बहुत पसंद फ़रमाता है, जो मुत्तक़ी-ओ-ग़नी और गोश्ता नशीन हो। (मुस्लिम)
मुत्तक़ी उस शख़्स को कहते हैं, जो ममनू चीज़ों से इजतिनाब करे, या यहां मुत्तक़ी से मुराद वो शख़्स है, जो अपने माल-ओ-ज़र को बुरे कामों और ऐश-ओ-तफ़रीह में ख़र्च ना करे। बाअज़ हज़रात कहते हैं कि मुत्तक़ी से मुराद वो शख़्स है, जो हराम और मुश्तबा उमूर से क्लीन इजतिनाब करे और इन चीज़ों से भी एहतियात-ओ-परहेज़ करे, जिनका ताल्लुक़ ख़ाहिशात नफ़्स और मुबाहात से है।
जबकि ग़नी से मुराद वो शख़्स है, जो मालदार और दौलतमंद हो या दिल का ग़नी हो। लेकिन इस हदीस शरीफ़ का माल और उम्र से मुहब्बत रखने का बयान के बाब में नक़ल करना इस बात को साबित करता है कि ग़नी से मुराद वो शख़्स है, जो माल-ओ-दौलत रखता हो और ये बात दिल के ग़नी होने के मुनाफ़ी नहीं है, क्योंकि ग़िना के बाब में वही शख़्स असल और कामिल तरीन है, जो ज़ाहिरी माल-ओ-दौलत के साथ दिल का गिना भी रखता हो और जिसके ज़रीया हाथ के गिना का वो तक़ाज़ा भी पूरा होता है, जो दुनिया-ओ-आख़िरत में मुरातिब-ओ-दरजात की बुलंदी का बाइस बनता है।
इस सूरत में ये बात बजा तौर पर कही जा सकती है कि यहां ग़नी से मुराद असल में शुक्रगुज़ार मालदार है।
ख़फ़ी से मुराद या तो गोशा नशीन है, यानी वो शख़्स जो सब से तर्क-ए-ताल्लुक़ के ज़रीया यकसूई और तन्हाई इख्तेयार करके अपने रब की इबादत में मशग़ूल रहे, या ये कि पोशीदा तौर पर भलाई करने वाला मुराद है। यानी वो शख़्स कि जो अल्लाह तआला की रजामंदी ओ ख़ुशनूदी के लिए नेक कामों और अपने माल को ख़र्च करने में इस तरह राज़दारी इख्तेयार करे कि किसी को इसका इल्म ना हो। इस सूरत में ख़फ़ी का इतलाक़ मुफ़लिस-ओ-नादार शख़्स पर भी हो सकता है।