पहले शहरों के नाम तब्दील किए गए और अब ……

अब्बू एमल हिंदूस्तान दुनिया का सब से बड़ा जमहूरी मुलक है यहां मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब के मानने वाले रहते हैं इस मुल्क का ना मज़हब एक है ना तहज़ीब-ओ-सक़ाफ़्त ना ज़बान , फिर भी इस मुल़्क की गंगा जमनी रिवायत है कि यहां सब प्यारो मुहब्बत और अमन-ओ-सलामती के साथ रहते हैं । यहां इंसानियत का एहतिराम होता है । हर एक के दिल में दूसरे की तइं हमदर्दी , ख़ुलूस , ख़ैर ख़्वाही और रहम का जज़बा रहता है । हर मज़हब के मानने वाले दूसरे मज़ाहिब का मुकम्मल पास-ओ-लिहाज़ रखते हैं । मगर हमारी बदक़िस्मती है कि कुछ अर्सा से हमारे प्यारे मुलक को फ़िर्क़ा परस्तों और शरपसंदों की नज़र लग गई । वो मुल़्क की सलामती और अमन-ओ-अमान के लिए ख़तरा बन गए हैं ।

इन का मक़सद सिर्फ मुनाफ़िरत फैलाना और अक़लियत बेज़ारी ही नहीं बल्कि इंसानियत दुश्मनी को फ़रोग़ देना है । वो अपनी सुबह-ओ-शाम इस के पीछे सर्फ कररहे हैं । ये अनासिर सिर्फ़ अवाम ही में नहीं बल्कि हुकूमत के ढांचा में भी मौजूद हैं । उन की ये कोशिश बड़ी हद तक कामयाब होती नज़र आरही है चुनांचे पहले आप ने सुना होगा कि इन शहरों के नाम तब्दील किए गए जिन में कुछ इस्लाही झलक थी । यह वो मुस्लमानों के रखे हुए थे और उन की जगह हिंदवाने नाम रखे गए । उसे शहरों की एक लंबी फ़हरिस्त है और ये बात कोई ढकी छिपी भी नहीं है लेकिन आप को हैरत होगी कि हिंदू मज़हब ज़माना के साथ साथ इतनी तरक़्क़ी कर गया कि अब जानवर भी हिन्दू होने लगे ।

उन के नाम भी हिंदवाने तर्ज़ के रखे जाने लगे । जिस की वाज़ेह मिसाल शहर हैदराबाद का चिड़ियाघर (Nehru Zoological Park) है । आज हम यहां इस इरादे से गए कि ये मालूम करें कि जानवरों का रुख रखाव , और निगहदाशत और तरबियत किस तरह होती है । नेहरू ज़वालोजेकल पार्क का क़ियाम 6 अक्टूबर 1963 को वजूद में आया । ये मीर आलिम तालाब के पास 380 एकड़ ज़मीन पर फैला हुआ है । इस में 100 इक़साम के जानवर हैं । जिन की मजमूई तादाद 1100 है जिन में 18 बब्बर और 10 शेर हैं । जब कि सफेद शेर और हाथी 5 , 5 हैं । वहां हम ने डाक्टर से मुलाक़ात की उन्हों ने शेरों के ताल्लुक़ से कुछ मुफीद मालूमात फ़राहम की । कि जंगल में शेर की उम्र 12 से 15 साल होती है जब कि चिड़ियाघर में इन की उम्र 18 से 20 होती है । क्यों कि यहां 24 घंटे डाक्टरों की निगरानी में रहते हैं और उन्हें सेहत बख़श ग़िज़ाएं मुहय्या की जाती हैं ।

मज़ीद बताया कि शेर का इंतिहाई वज़न 180 किलो होता है और इस की खासियत ये है कि वो तन्हाई पसंद होता है । जब कि बब्बर जमात के साथ चलने को पसंद करता है । ग़िज़ा के ताल्लुक़ से उन्हों ने बताया कि रोज़ाना सुबह को आधा लीटर दूध कुछ कच्चे अंडे , और दो किलो चिकन दिया जाता है और शाम चार बजे माद्दा को छः किलो गोश्त और नर को आठ किलो दिया जाता है और ये बगैर हड्डी का होता है । हल्दी के पानी में धोकर के ले शम और विटामिन के पाउडर में मिला कर दिया जाता है । हिंदूस्तान के तमाम चिड़ियां घरों के मुक़ाबले में हमारे यहां सब से ज़्यादा बब्बर हैं । लेकिन इस वक़्त मेरी हैरत की इंतिहा होगई जब उन्हों ने शेरों और हाथियों के नाम की वज़ाहत की ।

आप भी तास्सुब की नई मिसाल देखिए और सर पीटीए , मुज़क्कर बब्बर के नाम : आतुल , करज़ी , अपरनद , वासू , ब्रह्मा , विष्णु , और विशाल हैं । जब कि मुअन्नस के नाम इस तरह हैं : सूनी , जूती , रीता , अवानी , सरस्वती , अरूना , और शेर के नाम हैं : निखिल , रोजर , अपर्णा , करीना , मणि , रोजा , बंटी , सोनी , पंच कुमार , कनाल और हाथी के नाम हैं : रजनी , वाणी , आशा , जमुना , विजय । आप इन नामों को पढ़ें और देखें कि शहरों के नाम बदलने और हिन्दू बनाने के बाद अब मासूम जानवरों को हिन्दू बनाया जाना ये सब नापाक साज़िश है । मुलक को हिन्दू राष़्ट्रा बनाने की । क्या सैकूलर अज़म और जम्हूरियत का यही तक़ाज़ा है। क्या कुछ उसे नाम नहीं रखे जा सकते थे जैसे शेर दक्कन , टीपू , बहादुर , वगैरह वगैरह । टीपू सुलतान शहेदऒ का नाम सुनते ही ज़हनके पर्दे पर शेर का तसव्वुर नुमायां होजाता है । उन्हें की इजाद करदा ये नक़ल है शेर की एक दिन की ज़िंदगी गेडर की सौ साला ज़िंदगी से बेहतर है ।

जानवरों के हिन्दुआना नाम रखने में हमें कोई तकलीफ नहीं है क्यों कि जो जैसे होते हैं वैसी ही चीज़ों को अपनी तरफ़मंसूब करते हैं । पहुंची वहीं पे ख़ाक जहां का खमीर था । मगर इस से इस नापाक ज़हनियत और गंदे नज़रिया की अक्कासी ज़रूर होती है जिस की आग में आज पूरी मुस्लिम अक़लियत झुलस रही है । आख़िर ये क्या पैग़ाम देना चाहते हैं ? कि हिंदूस्तान की हर चीज़ पर सिर्फ एक ही फ़िर्क़ा का हक़ है । दूसरे फ़िरक़ों को कोई इख़तियार नहीं । अगर यही सूरत-ए-हाल बरक़रार रही तो इस मुल़्क की जम्हूरियत का सूरज जल्द ही ग़ुरूब होजाएगा । उस की इमारत , अपनी छत के साथ ज़मीन पर आ पड़े गी । पूरे मुल्क में लाक़ानूनीयत , अनारकी , और ख़ानाजंगी फैल जाएगी ।

इस के बाद ऊंट किस करवट बैठेगा इस का फैसला तक़दीर ही करेगी । नेहरू चिड़ियाघर में दूसरी चीज़ जो बाइस तशवीश है वो ये है कि जिस दरख़्त के नीचे से भी कोई साँप हो वहीं पूजापाट शुरू करदी और आप के इलम में है कि आ हिस्सा आहिस्ता ये बड़े मंदिर के शक्ल इख़तियार करेगा जैसा कि इसी साज़िश के तहत शहर के मुख़्तलिफ़ मुक़ामात पर कई एक मंदिर वजूद में आए और हनूज़ आरहे हैं अगर एसा हुआ तो ये चिड़ियाघर ना रह कर मंदिर घर होजाएगा और अवाम यहां जानवर देखने नहीं बल्कि मंदिर के दर्शन करने आएंगे । इस जमहूरी मुल्क में हर मज़हब को अपनी इबादतगाह का बनाने की मुकम्मल इजाज़त हासिल है । जब कि वो क़ानून के दायरा में हो । अगर क़ानून को बालाए ताक़ रख कर इस जानिब कोई इक़दाम किया जाता तो वो जुर्म और क़ानून की ख़िलाफ़वरज़ी कहलाएगा जिस की इजाज़त ना मुलक देता है ना कोई मज़हब और उसे मंदिरों में राम नहीं आते जो गैरकानूनी तौर पर वजूद में आते हूँ , किसी मुस्लमान की क्या मजाल है कि वो अवामी यह सरकारी ज़मीन में किसी मस्जिद की तामीर की जुरात करसके ।

फ़ोरा आग की तरह ये ख़बर फैल जाएगी और पूरा सरकारी अमला हरकत में आजाएगा । ये इक़दाम अमन सलामती , मुलक और क़ानून के बिलकुल ख़िलाफ़ क़रार पाएगा । और होना भी चाहीए । लेकिन अफ़सोस तो उस वक़्त होता जब कि सैंकड़ों मंदिर गैरकानूनी तौर पर सरकारी मुक़ामात पर खड़े औरपुरजोश तरीका पर ये मुहिम बला इन्क़िता जारी है । बल्कि जुरात तो देखें कि मुस्लमानों के तारीख़ी मुक़ामात के साथ मंदिर का पैवंद जोड़ कर तारीख भी बदलने की कोशिश जारी है । मगर हमारी सरकार को जैसे साँप सूंघ गया हो इस हवाले से हुकूमत का कोई फैसला लेना और ठोस इक़दामात करना तो बेद लब कुशाई की भी जुरात नहीं होती ये कैसी यकतरफ़ा जम्हूरियत है ? ।।