वज़ीरे आज़म ऑस्ट्रेलिया टोनी अबाट ने आज एक अहम ब्यान देते हुए कहा कि अमरीका ने इराक़ी जिहादीयों के तशद्दुद से मुतास्सिरा अफ़राद के लिए बज़रीए तैयारा ग़िज़ाई पैकेट्स और पानी सरब्राह करने का जो फ़ैसला किया है, ऑस्ट्रेलिया भी अमरीका की मुआवनत करेगा।
सिडनी में अख़्बारी नुमाइंदों से बात करते हुए मिस्टर अबाट ने कहा कि अमरीका के साथ इस इंसानियत नवाज़ काम में हिस्सा लेने के लिए वो अमरीकी हुक्काम से बातचीत कर रहे हैं।
यहां इस बात का तज़किरा बेजा ना होगा कि एक तरफ़ इराक़ में फंसे हुए ईसाईयों के लिए अमरीका और ऑस्ट्रेलिया बेचैन हो गए हैं लेकिन इसराईल की जानिब से किए जा रहे मुतवातिर हमलों में ग़ाज़ा के बेक़सूर अफ़राद की जानों की मग़रिबी ममालिक को कोई परवाह नहीं है जबकि प्रिंट मीडिया के इलावा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी तबाही और बर्बादी, मासूम बच्चों की हलाकत, वसाइल ना होने की वजह से तजहीज़ वो तकफ़ीन की मुश्किलात, बच्चों की नाशों को डीप फ्रीज़र में रखने जैसे हालात की तसावीर इसराईली ज़ुल्मो जबर की मुँह बोलती दास्तान है लेकिन किसी भी मग़रिबी ममालिक ने इसराईल की मुज़म्मत नहीं की और जिन्हों ने की भी है वो महज़ ज़बानी जमा ख़र्च के सिवा कुछ नहीं।
जब मुस्लिम ममालिक ही दम साधे बैठे हैं तो मग़रिबी ममालिक को मौरिदे इल्ज़ाम ठहराने से किया फ़ायदा ? क्या मिस्र, क्या सऊदी अरब और क्या इमारात? इराक़, लीबिया और शाम भी मुज़म्मत नहीं कर सकते क्योंकि ये ममालिक ख़ुद ख़ानाजंगी में मशग़ूल हैं। उन्हें दीगर ममालिक और वहां होने वाली हलाकतों की क्या परवाह होगी।
हालाँकि मग़रिबी मीडिया ग़ाज़ा में ख़ुसूसी तौर पर बच्चों की हलाकतें देख कर दहल गया और इत्तिला के मुताबिक़ रिपोर्टिंग करने वाले रो पड़े थे लेकिन इन बातों से कोई फ़ायदा नहीं। ऑस्ट्रेलिया और अमरीका अपने हम मज़हब अफ़राद को बचाने कोशां हैं। ऐसा मालूम होता है कि ग़ाज़ा में बहने वाले फ़लस्तीनी मुसलमानों का ख़ून पानी है।