पाँच गुंबदों वाले काचीगुड़ा रेलवे स्टेशन की इमारत इंडियन रेलवेज़ की शान

हिंदुस्तान में साउथ सेंट्रल रेलवे को ख़ास अहमियत हासिल है और उसे इंडियन रेलवे का अहम हिस्सा समझा जाता है और साउथ सेंट्रल रेलवे की शान और इस के वक़ार की हैसियत से काचीगुड़ा रेलवे स्टेशन की पहचान है। इसे साउथ सेंट्रल रेलवे का सब से ख़ूबसूरत, फ़न तामीर का शाहकार रेलवे स्टेशन क़रार दिया जा चुका है।

5 गुंबदों वाले इस स्टेशन की तामीर 1916 में शुरू हुई और 1935 में मुकम्मल हुई लेकिन 97 बरस गुज़र जाने के बावजूद काचीगुड़ा रेलवे स्टेशन उस आनो शान से खड़ा है जिस तरह तामीर के वक़्त था। क़ारईन! क़ुतुब शाही हुक्मराँ हों यह आसिफ़ जाहि हुक्मराँ हर दो ने हैदराबाद दक्कन को एक से एक ख़ूबसूरत मिसाली और फ़न तामीर की शाहकार ख़ूबसूरत इमारतों, ज़माने से हम आहंग अवामी सहूलतों से सजाया यही वजह है कि इस दौर में भी हैदराबाद दक्कन को इंतिहाई तरक़्क़ी याफ़्ता देसी रियासत कहा जाता था।

हुज़ूर निज़ाम नवाब मीर उसमान अली ख़ान के दौर हुक्मरानी में तामीर कर्दा तारीख़ी इमारतों में काचीगुड़ा रेलवे स्टेशन को ख़ुसूसी अहमियत हासिल है। उसे एन्टाक और दीगर तनज़ीमों के इलावा आसारे क़दीमा के तहफ़्फ़ुज़ में दिलचस्पी लेने वाले मुल्की और गैर मुल्की इदारों ने ग़ैर मामूली ख़ूबसूरत इमारत का नाम दिया है। ख़ुशी की बात ये है कि साउथ सेंट्रल रेलवे ने इस स्टेशन की हईयत में तबदीली लाने से गुरेज़ किया जिस के बाइस ही इस इमारत से आसिफ़ जाहि हुक्मरानों के कारनामों, उन के तामीरी ज़ौक़ और रियाया पर्वरी का बख़ूबी अंदाज़ा होता है।

आप को बतादें कि काचीगुड़ा रेलवे स्टेशन को सब से पहले निज़ाम्स गैरेन्टेड स्टेट रेलवे स्टेशन कहा जाता था फिर उसे निज़ाम्स स्टेट रेलवे स्टेशन का नाम दिया गया और अब साउथ सेंट्रल रेलवे के इस सब से ख़ूबसूरत रेलवे स्टेशन को काचीगुड़ा रेलवे स्टेशन की हैसियत से पहचाना जाता है। काचीगुड़ा रेलवे स्टेशन की तारीख का जायज़ा लें तो पता चलता है कि इस का आग़ाज़ छोटे पैमाने पर नवाब सालार जंग अव्वल के दौरान 1870 में हो चुका था उस वक़्त ट्रेन सिर्फ़ हैदराबाद से वाड़ी तक 120 मील का फ़ासिला तए करती थी। लेकिन सर आसमान जाह बहादुर के अह्द में निज़ाम्स रेलवेज़ को वुसअत दी गई।

बहरहाल काचीगुड़ा रेलवे स्टेशन की फ़न तामीर उस की ख़ूबसूरती और पुख़्तगी हिंदुस्तान के 8500 रेलवे स्टेशनों से बिलकुल जुदागाना और मुतवज्जा करने वाली है। माहिरीन का कहना है कि 1853 में हिंदुस्तान में पहली मर्तबा रेल मुंबई ता थाने मुतआरिफ़ करवाई गई लेकिन हैदराबाद दक्कन में रेलवेज़ के आग़ाज़ ने सारी देसी रियासतों को रेलवे स्टेशन क़ायम करने की तरग़ीब दी।