अफ़्सानवी पाकिस्तानी लोक गुलूकारा रेशमा जिस ने बर्रे सग़ीर हिंद के मूसीक़ी के शायक़ीन पर अपने सूफियाना गीतों के ज़रीए जैसे के दमा दम मस्त क़लंदर और लंबी जुदाई अपनी मख़सूस पुरसोज़आवाज़ में सुनाकर जादू कर दिया था। आज लाहौर में हलक़ के कैंसर की बीमारी के ख़िलाफ़ अपनी तवील जद्दो जहद के बाद इंतिक़ाल कर गई।
वो 1947 में बीकानेर (राजस्थान) के एक बंजारा ख़ानदान में पैदा हुई थी। कई साल क़ब्ल उसे हलक़ का कैंसर होने की तशख़ीस की गई थी और उसी वक़्त से वो ज़ेरे इलाज थीं।
पसमान्दगान में उस के फ़र्ज़ंद अमीर और दुख़्तर ख़दीजा शामिल हैं। वो गुज़िश्ता माह से कोमा में थी राजस्थान के रेगिस्तानी इलाक़ा से अपने ताल्लुक़ का ज़िक्र करते हुए उस ने कहा था कि हिंदुस्तान की अवाम ने मेरी दिल खोल कर सताइश की है।
पाकिस्तानी अवाम मेरा तहे दिल से एहतेराम करते हैं। पाकिस्तानी लोक गुलूकार शहराम अज़हर ने कहा कि रेशमा के इंतिक़ाल के साथ मूसीक़ी का एक दौर ख़त्म हो गया।