पाकिस्तानी जमहूरी हुकूमत और फ़ौज

पाकिस्तान में फ़ौज और हुकूमत के दरमयान कशीदगी कोई नई बात नहीं है। जमहूरी हुकूमत और फ़ौजी इंतिज़ामियों को एक दूसरे के ख़िलाफ़ महाज़ आरा करने और इंतिशार पैदा करने वाले वाक़ियात को हवा देने वाले भी बहुत हैं। सीवीलीयन और फ़ौजी इंतिज़ामियों के दरमयान नया तनाज़ा पाकिस्तान के खु़फ़ीया मेमो से पैदा हुआ है। सदर आसिफ़ अली ज़रदारी अपनी हुकूमत बचाने की फ़िक्र में अमरीका के एडमीरल मेक मेलिन को लिखे गए एक मकतूब का शिकार होने वाले हैं। ये मकतूब उन्हों ने अमरीका में पाकिस्तानी सफ़ीर हुसैन हक़्क़ानी के ज़रीया एडमीरल को पहूँचा या था।

जिस में उसामा इस लादन की मौत के बाद फ़ौज की नाराज़गी और ज़रदारी हुकूमत को लाहक़ ख़तरा का अंदेशा ज़ाहिर किया गया था। इस ख़त को हुसैन हक़्क़ानी ने पाकिस्तानी नज़ाद अमरीकी ताजिर मंसूर एजाज़ के तवस्सुत से पहूँचा या जो बाद में एक तूफ़ान खड़ा करने का मूजिब बना। मंसूर एजाज़ की इन्किशाफ़ात ने है पाकिस्तान की सियासत में हलचल पैदा करदी और हुसैन हक़्क़ानी को सफ़ीर पाकिस्तान बराए अमरीका की हैसियत से अस्तीफ़ा देना पड़ा। पाकिस्तान में उठने वाले फ़ौज और जमहूरी हुकूमत के नए तनाज़ा को दूर करने की कोशिश की जा रही है।

अमरीकी सफ़ीर कैमरोन मनटर ने अमरीकी इंतिज़ामीया की जानिब से मेमो की तहक़ीक़ात में तआवुन की पेशकश की मगर पाकिस्तान की सियासत और फ़ौजी इंतिज़ामीया में इस वक़्त जो तनाज़ा पैदा हुआ है इस का हतमी नतीजा एक और फ़ौजी बग़ावत की शक्ल में आएगा। आसिफ़ ज़रदारी अपनी हुकूमत बचाने कोशां हैं। लेकिन उन की हुकूमत अपनी मुद्दत पूरी करेगी ये कहना मुश्किल है। अप्पोज़ीशन लीडर नवाज़ शरीफ़ ने हुकूमत की कारकर्दगी के ख़िलाफ़ मुहिम शुरू करदी है मेमो तनाज़ा की तहक़ीक़ात के लिए सुप्रीम कोर्ट से रुजू हुए हैं।

पाकिस्तान इंसाफ़ तहरीक के सदर इमरान ख़ान ने भी अपना सयासी मौक़िफ़ मज़बूत बनालिया है। पाकिस्तान में वैसे अवाम को एक जमहूरी हुकूमत में जो कुछ नसीब होना है वो उन की शिकायात से पता चलता है कि उन्हें जमहूरी फ़वाइद से महरूम रखा गया है। इस में शक नहीं कि जमहूरीयत सब से बेहतर तर्ज़ हुकूमत समझी जाती है। लेकिन आसिफ़ अली ज़रदारी की हुकूमत जनरल इशफ़ाक़ क्यानी ने पाकिस्तान के मुतनाज़ा मेमो के तनाज़ुर में आसिफ़ अली ज़रदारी हुकूमत का अर्सा हयात तंग करने का फ़ैसला किया तो फिर एक बार पाकिस्तान फ़ौजी हुकूमत की गिरिफ़त में आजाएगा।

मौजूदा हुकूमत से अवाम इस लिए भी नाराज़ है क्यों कि वो अवाम के मुफ़ाद में काम नहीं कररही है बल्कि आसिफ़ अली ज़रदारी को सिर्फ अपनी फ़िक्र है। बेनज़ीर भुट्टो की मौत का फ़ायदा उठाकर हुकूमत बनाने की राह हमवार करने के बाद ज़रदारी का ग्रुप सिर्फ अपने मुफ़ाद में काम करने लगा। इस लिए अवाम की बड़ी तादाद इस हुकूमत पर इल्ज़ाम आइद कररही है कि ये उन का ख़ून निचोड़ रही है। इन को मसाइल की भट्टी में झोंक कर तमाशा देख रही है और ख़ुद ऐश कररही है। फ़ौज को बहरहाल जमहूरी हुकूमत के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी होगी। अवाम के अंदर ख़ामोशी से उठने वाला तूफ़ान आइन्दा कौनसा रुख इख़तियार कर जाय गाया वक़्त ही बताएगा। पाकिस्तान में जमहूरी हुकूमत से ज़्यादा फ़ौज का मौक़िफ़ मज़बूत रहा है जनरल क्यानी भी अपनी ताक़त का दायरा वसीअ करना चाहते हैं। आसिफ़ ज़रदारी की नादानियों या ख़ुद ग़रज़ियों की वजह से जनरल क्यानी सियोल जमहूरी हुकूमत पर निगहानी करने के लिए तैय्यार हैं। फ़िलहाल पाकिस्तान की सूरत-ए-हाल की तबदीली का इंतिज़ार कररहे हैं।

एक तरफ़ इमरान ख़ान इन्क़िलाब की बात कररहे हैं। दूसरी तरफ़ फ़ौज अपना मोरचा तैय्यार करने की सोच रही है। आसिफ़ अली ज़रदारी की हुकूमत की ख़राबियों से पैदा होने वाले हालात अगर फ़ौज के इक़तिदार के एहया का मूजिब बनते हैं तो पाकिस्तान की दीगर अप्पोज़ीशन पार्टीयों की उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा जो एक जमहूरी तर्ज़ की हुक्मरानी के लिए ताज़ा इंतिख़ाबात की तवक़्क़ो कररहे हैं। इमरान ख़ान ने फ़ौज के ख़िलाफ़ और आई ऐस आई पर नुक्ता चीनी की है। वो आईन और क़ानून पर सख़्ती से अमल आवरी को यक़ीनी बनाने की बात करते हैं।

इस तरह की बातों से इन्क़िलाब आजाएगा तो बहुत बड़ी बात है पाकिस्तान के हर सियासतदां की तरह इमरान ख़ान का नारा भी मुल्क में एक बड़ी सयासी तबदीली लाना चाहता है। मगर पाकिस्तान की मौजूदा सूरत-ए-हाल सीवीलीयन और फ़ौजी इंतिज़ामियों के दरमयान तसादुम से दो-चार हो रही है तो ये किसी तरह यक़ीन किया जा सकता है कि पाकिस्तान में नए जमहूरी तर्ज़ के इंतिख़ाबात होंगी। लेकिन इस वक़्त तनाज़ा मेमो गेट का है जिस को हल करने के लिए आसिफ़ ज़रदारी हुकूमत को किसी कुहनामुशक सियासतदां या ताक़तवर दोस्त की मदद की ज़रूरत होगी। अमरीका ने इस तनाज़ा को दूर करने में तआवुन की पेशकश की है हसीन हक़्क़ानी के अस्तीफ़ा के बाद ये इशारा मिल रहा है कि पाकिस्तानी फ़ौज का पल्ला भारी है।

वो पहले ही से पाकिस्तान के दाख़िली और ख़ारिजी उमूर की निगरां कार है। अब हुसैन हक़्क़ानी के अस्तीफ़ा से ये वाज़िह होता है कि फ़ौज बैरूनी पालिसी और सलामती के मुआमलों पर भी गिरिफ़त रखती है। अगर इस ने गिरिफ़त को मज़ीद मज़बूत किया तो फिर वाशिंगटन में हुसैन हक़्क़ानी की जगह नए सफ़ीर की हैसियत से शेरी रहमान का तक़र्रुर और ख़िदमात किस वक़्त तक बरक़रार रहेंगे ये वक़्त ही बताएगा। आसिफ़ ज़रदारी हुकूमत की सयासी बदइंतिज़ामी बदनज़मी के साथ साथ फ़ौज के साथ तसादुम की इमकानी सूरत-ए-हाल को रोका नहीं गया तो मसाइल मज़ीद संगीन और गहरे होते जाएंगी ।