सबीहा सुमेर के साथ देखी गयी काल्कि कोएचलिन का कहना है कि ऐसी स्तिथी में जहाँ हमे पता चलता है सिर्फ भारत और पाकिस्तान के विभाजन और लड़ाई के बारे में। ऐसे में हम उस चीज़ से हट कर दोनों देशों को वैसे देखना चाहते है जैसी वो हैं।
पाकिस्तान की फ़िल्मकार जो मूल मुम्बई से है और भारतीय कलाकार एवं फ्रेंच परम्परा की अभिनेत्री मिल कर डाक्यूमेंट्री बना रही हैं।तो ऐसे में यह जानना काफी रोचक और उत्साह से भरपूर होगा की दो महिलाओं ने राजनैतिक राष्ट्रीयता ना दिखाते हुए भारत और पाकिस्तान के सामान्य नागरिकों से बात करते हुए सीमा के दोनों तरफ के भावुक दृश्यों को दिखाया है।
सुमेर बताती है कि मेरा सबसे अच्छा अनुभव था मुम्बई में दो ट्रक ड्राइवर से बात करना जिसमे से एक हिन्दू था और एक मुस्लिम। उन्होंने धार्मिक अस्मिता पर बात करते हुए उसे एक राजनैतिक मुद्दा बताया और कहा कि इसका हम लोगो के जीवन से क्या सम्बन्ध है। वो दोनों पूछते हैं कि धार्मिक अस्मिता मुम्बई की गलियों में रहने वाले दयनीय गरीबो की किस प्रकार मदद करता है।
फिल्मकार सुमेर का कहना है कि उनकी डाक्यूमेंट्री आज़माइश का विचार उनको 2013 में आया था तब पाकिस्तान में चुनाव थे, और 2014 में भारत में मोदी की जीत हुई थी। उस समय को मैं इतिहास में गिरफ्तार करना चाहती है क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि यही हमारे भविष्य को आकार देगा।
यह विचार कुछ दिन तक काफी सुस्त रहा लेकिन फिर सुमेर मुम्बई फिल्म फेस्टिवल में काल्कि कोएचलिन से मिली और सुमेर को काल्कि इस संयुक्त आईडिया के लिए बेहतरीन लगी। कोएचलिन इस साल जनवरी में पाकिस्तान घूम कर आई थी जबकि सुमेर इस साल के बीच में इंडिया घूमी।
कोएचलिन और सुमेर ने कुछ भारत और पाकिस्तानी लोकेशन जैसे पाकिस्तान से इस्लामाबाद, कराची, सुक्कुर, गोथकी और पीर जो कोठ भारत में मुंबई, थाने, नई दिल्ली, सहारनपुर, मोहाली और ग्रामीण हरयाणा में फिल्म को लेकर काम किया है।
सुमेर और कोएचलिन अब फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन के लिए क्राउड फंडिंग प्लेटफार्म विषबेरी के ज़रिये 20 लाख रूपये जुटाने में लगे हुए हैं। सुमेर का कहना है कि हमने तीन हफ्ते में करीब 12 लाख रूपये जुटा लिए हैं तो मुझे पूरा यकीन है कि 39 दिन से पहले ही हम अपने उद्देश्य पर पहुंच जाएंगे।