पाकिस्तान ऊंट किस करवट बैठेगा

पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में सयासी हालात इंतिहाई संगीन होते जा रहे हैं। गुज़शता साल से शुरू हुई हालात की अबतरी ऐसा लगता है कि अब उरूज पर पहूंच चुकी है और हालात किसी भी वक़्त कोई भी करवट ले सकते हैं।

पाकिस्तान की सियोल हुकूमत और ताक़तवर समझी जाने वाली फ़ौज के माबैन रसा कुशी इंतिहाई हदूद को छूने लगी है । कभी ऐसा लगता है कि हुकूमत फ़ौजी ताक़त को क़ाबू में रखते हुए अपनी गिरिफ्त को बहाल करने में कामयाब हो जाएगी और कभी ऐसे अंदेशे लाहक़ होने लगते हैं कि फ़ौज एक बार फिर मुल्क में बग़ावत करते हुए जमहूरी हुकूमत का तख़्ता उलट देगी ।

गुज़शता साल उसामा बिन लादन को ऐबट आबाद के एक महफ़ूज़ मुक़ाम पर अमरीकी फ़ौज की यकतरफ़ा कार्रवाई में हलाक कर दिए जाने के बाद से हकूमत-ए-पाकिस्तान केलिए हालात बिगड़ने शुरू हुए थे । इस कार्रवाई के बाद ख़ुद अमेरीका और पाकिस्तान के ताल्लुक़ात मुतास्सिर होते गए और वो भी अब इंतिहाई नाज़ुक दोराहे पर हैं।

ऐबटाबाद कार्रवाई के बाद ही से ये अंदेशे ख़ुद हकूमत-ए-पाकिस्तान को लाहक़ होगए थे कि मुल्क में फ़ौज हुकूमत को बेदखल करते हुए अन्नान इक़तिदार हासिल कर लेगी । इसी अंदेशे ने हुकूमत को फ़ौज के ख़िलाफ़ अमेरीका से मदद मांगने पर मजबूर करदिया और एक खु़फ़ीया मेमो एक ख़ानगी ताजिर के ज़रीया हुकूमत अमेरीका को रवाना करते हुए फ़ौजी बग़ावत की सूरत में मदद तलब की गई थी ।

ये शायद पहला मौक़ा होसकता है जब किसी भी मुल़्क की हुकूमत ने अपने ही मुल़्क की फ़ौज के ख़िलाफ़ किसी दूसरे मुल्क से मदद तलब की हो। इस खु़फ़ीया मेमो पर पहले तो सियोल हुकूमत को परेशानी का सामना करना पड़ा । अमेरीका में पाकिस्तानी सफ़ीर हुसैन हक़्क़ानी ने इस ओहदा से इस्तीफ़ा देदिया और अब उन्हें जान का ख़तरा भी लाहक़ हो गया है ।

फिर नाटो की जानिब से पाकिस्तानी हदूद में की गई फ़िज़ाई कार्रवाई और इस में पाकिस्तानी फ़ौजीयों की हलाकत ने पाकिस्तान । अमेरीका ताल्लुक़ात पर ज़रब कारी लगाई । हालाँकि इस कार्रवाई पर हकूमत-ए-पाकिस्तान ने शदीद रद्द-ए-अमल ज़ाहिर किया लेकिन पाकिस्तानी फ़ौज ने इस का सख़्त नोट लिया और हुकूमत के साथ इस के ताल्लुक़ात मज़ीद बिगड़ गए थे ।

अब ये सिलसिला मज़ीद तूल पकड़ गया है और पाकिस्तान में सर-ए-आम हुकूमत और फ़ौज एक दूसरे पर तन्क़ीदें कर रहे हैं । ये अंदेशे ज़ोर पकड़ते जा रहे हैं कि मुल्क में फ़ौजी बग़ावत भी होसकती है ।हालाँकि फ़ौज की जानिब से ऐसे अंदेशों को मुस्तर्द किया जा रहा है ।

सदर आसिफ़ अली ज़रदारी गुज़शता महीने जब ईलाज की ग़रज़ से बैरून-ए-मुल्क रवाना हुए तो कई तरह की क़ियास आराईयां शुरू होगई थीं। कहा जा रहा था कि मिस्टर ज़रदारी फ़ौज के दबाव की वजह से बैरून-ए-मुल्क रवाना होगए हैं और शायद वो वहीं से मुस्ताफ़ी भी होजाएं । ताहम मिस्टर ज़रदारी ईलाज के बाद अचानक ही पाकिस्तान वापिस होगए थे और उन के इस्तीफ़ों की क़ियास आराईयां ख़तन हुई थी ताहम अब हुकूमत और फ़ौज के माबैन रास्त टकराव की सूरत-ए-हाल पैदा होती जा रही है ।

गुज़शता दिनों से वज़ीर-ए-आज़म मिस्टर यूसुफ़ रज़ा गिलानी ये अंदेशा ज़ाहिर कररहे थे कि कुछ गोशों की जानिब से उन की जमहूरी मुंख़बा हुकूमत को बेदखल करने की साज़िशें की जा रही हैं। मिस्टर गिलानी ने ताहम उस वक़्त फ़ौज का रास्त नाम लेने से गुरेज़ किया था ।

मिस्टर गिलानी ने ये ब्यान मुल़्क की पार्लीमैंट में भी दिया था जिस पर फ़ौज को ये वज़ाहत करनी पड़ी थी कि मुल्क में फ़ौजी बग़ावत का कोई इमकान नहीं है । फ़ौज की जानिब से इस वज़ाहत के बावजूद फ़ौजी बग़ावत के अंदेशों को मुस्तर्द नहीं किया जा सकता क्योंकि हालात सुधरने की बजाय बिगड़ते ही जा रहे हैं।

एक तरफ़ फ़ौज की जानिब से हुकूमत को माज़ूल करते हुए इक़तिदार हासिल करने के अंदेशे हैं तो ऐसा लगता है कि दूसरी तरफ़ हुकूमत फ़ौजी सरबराह जनरल इशफ़ाक़ परवेज़ क्यानी और आई एस आई के सरबराह अहमद शुजाअ पाशाह को उन के ओहदों से हटाना चाहती है । दोनों जानिब एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिशें हैं और ये कोशिशें एक दूसरे से ढकी छिपी भी नहीं कही जा सकतीं ।

उन्हें कोशिशों का हिस्सा कहा जा सकता है कि वज़ीर-ए-आज़म यूसुफ़ रज़ा गिलानी ने फ़ौज से क़ुरबत रखने वाले मोतमिद दिफ़ा को बरतरफ़ करदिया है । इन का ये इक़दाम किस हद तक दरुस्त है ये एक अलग बात है लेकिन इस इक़दाम की वजह से हुकूमत और फ़ौज में इख़तिलाफ़ात और दूरियां मज़ीद बढ़ गई हैं।

जैसे ही हालात संगीन हुए सदर-ए-पाकिस्तान आसिफ़ अली ज़रदारी एक बार फिर एक रोज़ा दौरा पर दुबई रवाना होगए । इस बार भी उन के दौरा पर क़ियास आराईयां हो रही हैं । कहा जा रहा है कि आसिफ़ अली ज़रदारी का ये दौरा दुबई ख़ानगी दौरा है ।

फ़ौज और हुकूमत के माबैन टकराव की कैफ़ीयत के इलावा हुकूमत को अदालतों की फटकार का भी सामना है । पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने तो ये तक रिमार्क करदिया कि मिस्टर गिलानी कोई दयानतदार और काबिल-ए-एहतिराम शख़्सियत नहीं हैं और उन्हों ने क़ुरआन और दस्तूर के नाम पर लिए गए हलफ़ की ख़िलाफ़वर्ज़ी की है ।

मुल्क़ के अवाम भी हुकूमत से नालां दिखाई देते हैं और इमरान ख़ान की तहिरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी की रयालयों में अवाम का ज़म्म-ए-ग़फ़ीर दिखाई दे रहा है ।

ऐसे में ये वाज़िह होगया है कि हकूमत-ए-पाकिस्तान ख़ुद अपने ही मुल्क में यक्का-ओ-तन्हा होगई है और ये सूरत-ए-हाल पाकिस्तान केलिए अच्छी नहीं है । इन हालात में आइन्दा दिनों में क्या हालात पेश आ सकते हैं इस बारे में फ़िलहाल क़ियास करना आसान नहीं है क्योंकि ग़ैर मुतवक़्क़े तबदीलीयां पाकिस्तानी तारीख़ का हिस्सा रही हैं।