पाकिस्तान जाने वाले मुसलमान बदनसीब : डा. कुरैशी

उत्तराखंड के गवर्नर डा. अजीज कुरैशी ने कहा कि हिंदुस्तान की आजादी के बाद पाकिस्तान जाने वाले मुसलमान बदनसीब थे। वे कायदे आजम कहलाने वाले मुहम्मद अली जिन्ना के बहकावे में आ गए। उन्हें 65 साल बाद भी पाक में मुहाजिर कहा जाता है। वह बरेली कॉलेज के एडोटोरियम (Auditorium) में जंग ए आज़ादी में रुहेलखंड के ताऊन प्रोग्राम से खिताब कर रहे थे।

राजीव गांधी स्टडी सर्किल के सेमिनार में खास मेहमान डा.अजीज कुरैशी ने कहा कि जंगे आजादी की लड़ाई 1757 में शुरू हो गई थी। ईस्ट इंडिया की तंसीब के दौरान शुजाउद्दौला की मुखालिफत करने पर उन्हें मार दिया गया। इसके बाद पूरे मुल्क के मदरसों‍ स्कोलो में अंग्रेजों को मुल्क से खदेड़ने का सबक पढ़ाया जाने लगा।

उस्तादों ( टीचरों) के साथ ही बच्चों ने भी आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। हिन्दुस्तान में जेहाद का पहला फतवा अंग्रेजों के खिलाफ दिया गया। मगर इसे मुल्क की बदनसीबी कहेंगे कि मदरसों को दहशतगर्द का अड्डा कहा जाता है। उन्होंने कहा कि जब अंग्रेजों के खिलाफ मुल्क भर में बिगुल बज गया, तब अंग्रेजों ने मज़हब के नाम पर लड़ाना शुरू कर दिया।

ऐसे हालातों में आजादी मुश्किल हो गई थी, तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सभी को एकजुट कर आजादी की लड़ाई लड़ी। आजादी की लड़ाई में उर्दू का भी अहम किरदार था। लड़ाई के दौरान सभी खत और पैगाम उर्दू में ही तैयार किए जाते थे।

सेमिनार में प्रो.यूसी अरोरा, डा.जोगा सिंह होठी, प्रो.जाकिर हुसैन, प्रो.एके सिन्हा, काशी विद्यापीठ के प्रो.सतीश राय ने जंगे आजादी के शहीद नवाब खान बहादुर खान, हाफिज रहमत खां, हजरत पहलवान साहब समेत रुहेलखंड के शहीदों की मालूमात हासिल करायी।

डा.चारू मेहरोत्रा ने गवर्नर की ज़िंदगी और सियासी सफर को सामने रखा। प्रोग्राम की सदारत प्रिंसीपल डा.आरपी सिंह और कंवेनर प्रो.अलाउद्दीन खां ने किया।