पाकिस्तान में अदलिया का रोल

पाकिस्तान में अब अदलिया को अहम रोल अदा करते देखा जा रहा है। फ़ौजी ग़ल्बा वाले मुल्क में हालिया दिनों के दौरान मुक़न्निना, अदलिया और फ़ौज के दरमयान इंसाफ़ की एक लंबी लकीर खींचने की कोशिश की जा रही है। वज़ीर-ए-आज़म पाकिस्तान यूसुफ़ रज़ा गिलानी को सुप्रीम कोर्ट की जानिब से मुजरिम क़रार दीए जाने के बाद उन्हें भी फ़ौरी तौर पर अपना ओहदा छोड़ देना पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने वफ़ाक़ी वुज़रा समेत 28 पर्लीमेंट्री और सुबाई असेंबली के अरकान की रुकनीयत मुअत्तल कर दी है तो ये फ़ैसला अब पाकिस्तान में शफ़्फ़ाफ़ सियासत की जानिब उठता पहला क़दम मुतसव्वर होगा।

पाकिस्तान में दस्तूरी 18 वीं तरमीम आने के बाद नामुकम्मल इलेक्शन के तहत इंतेख़ाबात में कामयाब अरकान को मुअत्तल कर दिया जाता है तो इस तरह आगे चल कर कई मुआमलों मैं अदलिया को अपना सख़्त रोल नाफ़िज़ करते हुए देखा जाय तो ये पाकिस्तान के दाख़िली सियासत के लिए फाल नेक साबित होगा।

अदालत ने ज़िमनी इंतेख़ाबात को शफ़्फ़ाफ़ वोटर फ़हरिस्त की बुनियाद पर कराने की हिदायत दी है। वैसे अदलिया के इस फ़ैसला से पाकिस्तान में हुकूमत और अदलिया के दरमयान कशीदगी में मज़ीद इज़ाफ़ा भी हो सकता है। मगर अदलिया को बहरहाल अपना रोल अदा करना है तो पाकिस्तान की सियासत में होने वाली धांदलियों को रोकने में किस हद तक कामयाबी मिलेगी ये कहना मुश्किल है क्योंकि पाकिस्तान की सियासत सुबाई ख़ानों में बट कर अपना अलग वज़न रखती है।

वज़ीर-ए-आज़म पाकिस्तान यूसुफ़ रज़ा गिलानी अब तक अदालत-ए-उज़्मा के 7 रुकनी बंच के सामने पेश होचुके हैं इस के बाद अदालत का ये फ़ैसला इस बात की दलील समझी जा रही है कि पाकिस्तान में पार्लीमैंट पर सुप्रीम कोर्ट को बरतरी हासिल है लेकिन ये भी कहा जा रहा है कि पार्लीमेंट को क़ानूनसाज़ इदारे के तौर पर कितनी ही क़ौमी सही हक़ीक़ी बालादस्ती आईन को हासिल है।

मुक़न्निना, इंतिज़ामीया और अदलिया पाकिस्तान के अहम तीन सतून हैं और उन तीनों का एक मुतय्यन दायरा कार होता है। इस लिए पाकिस्तान जैसे मुल्क में कोई सयासी , क़ानूनी या फ़ौजी तनाज़ा पैदा होता है तो इस का हल वहां के आईन के तहत ही तलाश किया जाए तो बेहतर मुतसव्वर होगा। गुज़श्ता चंद हफ़्तों से पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने अहम क़दम उठाए हैं, पहला क़दम इस का ये था कि इस ने बदनाम-ए-ज़माना मेमो मसला को निमटने की कोशिश की ये मेमो पाक ।

अमरीकी ताजिर के इस दावा की परछाई है कि पाकिस्तानी हुकूमत की जानिब से इसने अमेरीकी फ़ौजी ओहदेदार से ऐसी सूरत में मदद तलबी की गई थी जब पाकिस्तान में फ़ौजी बग़ावत हो जाए।

एबटाबाद में अलक़ायदा सरबराह ओसामा बिन लादेन की अमेरीकी फ़ौज के ज़रीया हलाकत के बाद पाकिस्तान में इमकानी फ़ौजी बग़ावत ने हकूमत-ए-पाकिस्तान को मुज़्तरिब कर दिया था इस लिए फ़ौज पर कंट्रोल करने के लिए हकूमत-ए-पाकिस्तान ने अमेरीकी फ़ौजी मदद तलब करने की कोशिश की थी। इस मेमो गेट तनाज़ा ने हकूमत-ए-पाकिस्तान की साख को कमज़ोर बना दिया और अब सुप्रीम कोर्ट ने एक एक करके कई मसाइल को ज़ेर-ए-ग़ौर लाना शुरू किया है।

सुप्रीम कोर्ट का दूसरा अहम क़दम ये था कि इस ने वज़ीर-ए-आज़म यूसुफ़ रज़ा गिलानी पर तहक़ीर अदालत का केस डाल दिया। सदर आसिफ़ अली ज़रदारी के ख़िलाफ़ रक़ूमात की गै़रक़ानूनी मुंतक़ली से ताल्लुक़ मुक़द्दमात को दुबारा शुरू करने सोइज़ हुक्काम को मकतूब लिखने की हिदायत की ख़िलाफ़वर्ज़ी पर सुप्रीम कोर्ट से यूसुफ़ रज़ा गिलानी अपने इजलास पर तलब भी कर लिया है।

अब वो उन की सुबकदोशी का हुक्म देता है तो इस से पाकिस्तान की सियासत ब मुक़ाबला अदलिया में एक नई नापसंदीदा जंग छिड़ जाएगी या फिर सियासतदानों को ये सबक़ दिया जाएगा कि पाकिस्तान का आईन और क़ानून बालातर है।

सुप्रीम कोर्ट ने इन दिनों तीसरा अहम काम ये भी कहा है कि इसने पाकिस्तान के फ़ौजी इंटेलीजेंस और इंटर सर्विस इंटेलीजेंस (आई एस आई) के सरबराहों को भी समन जारी करके हाज़िर अदालत होने की हिदायत दी। इन पर इल्ज़ाम है कि दहश्तगर्दी के शुबा में गिरफ़्तार अफ़राद में से कई अफ़राद लापता हैं और उन की तहवील में चार अफ़राद मुर्दा पाए गए हैं। अब पाकिस्तान को सहि रुख़ी क़ानूनी, मुक़न्निना, और इंतिज़ामी लिहाज़ पर बाला-ए-दस्ती की जंग का सामना करना पड़ रहा है।

अगर अदलिया का रवैय्या सख़्त से सख़्त हो जाता है तो फिर पाकिस्तान की हुकूमत यकलख़्त तात्तुल की शिकार होगी। गिलानी के इमकानी इख़राज की सूरत में या तो नई क़ियादत को ज़िम्मेदारी दी जा सकती है या फिर नए इंतेख़ाबात का ऐलान होता है। इमरान ख़ान अपनी सयासी पार्टी तहरीक इंसाफ़ को लेकर जिस तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं उन के हक़ में अदलिया के फ़ैसले भी मुसबत साबित होंगे। सुप्रीम कोर्ट में 13 फरवरी को होने वाली ख़ुसूसी समाअत भी अहम है जबकि अदालत की जानिब से यूसुफ़ रज़ा गिलानी पर चार्ज शीट पेश की जाएगी।

इस के बाद पाकिस्तान की सियासत में जिस तरह की उथल पुथल होगी इससे मुल्क के हक़ में बेहतरी लाएगी या अबतरी पैदा होगी ये हालात पर मुनहसिर है क्योंकि पाकिस्तानी सियासत के बारे में इस वक़्त कोई भी बात वाज़िह नहीं है। मई 2013 तक आम इंतेख़ाबात कराना ज़रूरी है तो पाकिस्तान के सियासतदानों को अदलिया और इंतिज़ामीया पर अपने ईक़ान को मज़बूत रखना होगा।

पाकिस्तानी अवाम के लिए ये ज़रूरी है कि वो अपने मुल्क के आईन की बालादस्ती को बरक़रार रखें और सियासत में शफ़्फ़ाफ़ियत को तर्जीह दें जिस से ख़ुद उन के बेहतर मुस्तक़बिल की ज़मानत मिल जाएगी। तहवील में अम्वात का भी अदलिया ने संजीदा नोट लिया है। ये शहरीयों के हक़ में ज़रूरी है कि इंटेलीजेंस के शोबों की नाहक़ ज़्यादतियों पर क़ाबू पाया जाये, पाकिस्तान को बचाने का सवाल उठने के दौरान अवाम को भी अपने वोट की ताक़त का बेहतर इस्तेमाल करने के लिए तैयार रहना होगा।